मुंबई: कोविड-19 महामारी नियंत्रित करने में परंपरागत चिकित्सा पद्धति काफी कारगर रही है। इसे देखते हुए सरकार आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्घ, सोवा-रिग्पा और होमियोपैथी (आयुष) को दुनिया के दूसरे देशों में पहुंचाने के लिए कमर कस ली है। इसे अंजाम देने के लिए सरकार ने कंपनियों एवं वैश्विक इकाइयों से समझौता किया है। आयुर्वेद को जांची-परखी दवा के तौर पर बढ़ावा देने और दूसरे देशों में इसका निर्यात करने के लिए अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ने लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन (एलएसएचटीएम) के साथ एक समझौता किया है। इसके तहत तहत अश्वगंधा (प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाली दवा) पर ब्रिटेन में यह जानने के लिए परीक्षण किया जाएगा कि कोविड-19 संक्रमण से उबरने में यह कैसे मदद करता है।
आयुष के सचिव राजेश कोटेचा ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में कहा, ‘ब्रिटेन में यह जानने के लिए बड़े पैमाने पर परीक्षण होंगे कि अश्वगंधा किस तरह कोविड संक्रमण से लडऩे एवं ठीक होने में मदद करता है। हमें लगता है कि इससे यह जानने में काफी हद तक मदद मिल जाएगी कि अश्वगंधा को कोविड संक्रमण से लडऩे में जांची-परखी दवा के तौर पर स्थापित किया जा सकता है या नहीं।’ ब्रिटेन में अश्वगंधा के क्लिनिकल परीक्षण में 2,000 से अधिक लोग हिस्सा लेंगे।
मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक देश के ज्यादातर राज्यों में आयुष दवाओं के जरिये कोविड संक्रमण से निजात पाने की दर 90 प्रतिशत से अधिक रही है। कोविड-19 संक्रमण के इलाज में भारत में बड़े पैमाने पर आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक दवाओं का इस्तेमाल हुआ था। कम से कम 9 राज्यों ने आयुर्वेदिक एवं होमियोपैथिक कोविड चिकित्सा केंद्र बनाए थे। ये राज्य हरियाणा, मणिपुर, मिजोरम, तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात, कर्नाटक, केरल और पुदुच्चेरी हैं। पहले चरण में आयुष का प्रभावी इस्तेमाल करने वाले केरल में ऐसे सबसे अधिक 1,206 केंद्र हैं। आयुष मंत्रालय ने जुलाई तक जो आंकड़े दिए हैं, उनसे पुष्टि होती है कि ऐसी उपचार पद्घतियां कोविड महामारी नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त हैं। उदाहरण के लिए केरल में आयुर्रक्षा क्लिनिक नाम से 1,206 केंद्रों में 3.5 लाख लोगों का इलाज हुआ था। इनमें 99.96 प्रतिशत लोग कोविड संक्रमण से पूरी तरह उबर गए। तमिलनाडु और मिजोरम में इस संक्रमण से उबरने की दर 100 प्रतिशत तक रही जबकि तेलंगाना में यह दर करीब 95 प्रतिशत रही।