जयपुर। मध्य प्रदेश के सीहोर जिले का शरबती गेहूं (Farming sharbati Wheat) अपने स्वाद, सोने जैसी चमक और एक समान दाने के कारण देश भर में अपनी एक अलग पहचान बना चुका है. गेहूं की किस्म की मांग गुजरात, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना और दिल्ली समेत कई राज्यों में रहती है. इसकी चपाती खाने में स्वादिष्ट , मुलायम और पौष्टिक होती है. लेकिन इसके बावजूद जिले के किसानों में इसकी खेती के प्रति रूझान घट रहा है. तो आइए जानते हैं कि आखिर किसानों (Farmers) का रूझान क्यों घट रहा है.
‘द गोल्डन ग्रेन’ के नाम से विख्यात
शरबती (sharbati Wheat) देश में उपलब्ध गेहूं की सबसे प्रीमियम वैरायटी मानी जाती है. यह प्रदेश के सीहोर जिले की काली और जलोढ़ उपजाउ मिटटी में खूब पैदा होता है. इसका दाना देखने में सुनहरा और आकार में एक समान होता है, वहीं स्वाद में यह मीठा होता है. यह देश में ‘द गोल्डन ग्रेन’ के नाम से विख्यात है. गेहूं की अन्य किस्मों की तुलना में शरबती में ग्लूकोज और सुक्रोज जैसे सरल शर्करा की मात्रा ज्यादा होती है. मध्य प्रदेश में शरबती गेहूं की खेती सीहोर जिले के अलावा विदिशा, होशंगाबाद, नरसिंहपुर, हरदा, अशोक नगर, भोपाल और मालवा क्षेत्र के जिलों में होती है.
दाम नहीं मिल पाता है
सीहोर जिले में शरबती गेहूं (sharbati Wheat) के कम रकबे की वजह लोकवन की तरफ किसानों का बढ़ता रूझान बढ़ा है. दरअसल, शरबती की गेहूं (sharbati Wheat) कि तुलना में लोकवन और डुप्लीकेट शरबती की पैदावार ज्यादा होती है. इस वजह से किसानों में इन दोनों किस्मों को उगाने में दिलचस्पी बढ़ी है. जहां गेहूं कि अन्य किस्मों प्रति हेक्टेयेर 70 से 80 क्विंटल की होती है, वहीं शरबती गेहूं की पैदावार प्रति हेक्टेयर 50 से 55 क्विंटल की हो पाती है. वहीं किसानों को शरबती गेहूं (sharbati Wheat) का दाम भी उतना नहीं मिल पाता है जितना मिलना चाहिए. किसानों से बड़ी कंपनियां 1600 से 2100 के भाव में खरीदती है और उसे ज्यादा दामों में बेचती है. वहीं इसी भाव में गेहूं की अन्य किस्म भी बिक जाती है
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