जवाहर कला केन्द्र- बजट (2024-25) घोषणा के आलोक में आयोजित महोत्सव का शनिवार को रहा दूसरा दिन — राजस्थानी कवि सम्मेलन में हुआ काव्य पाठ — रविवार को साहित्य उत्सव का अंतिम दिन
जयपु। राजस्थानी भाषा को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के कुशल नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा नित नए प्रयास किये जा रहे हैं। इसी क्रम में जयपुर के जवाहर कला केंद्र में तीन दिवसीय विजयदान देथा साहित्य उत्सव का आयोजन किया जा रहा है। राजस्थान सरकार की बजट (2024-25) घोषणा के आलोक में जवाहर कला केंद्र की ओर से आयोजित विजयदान देथा साहित्य उत्सव का शनिवार को दूसरा दिन रहा। प्रभातकालीन संगीत सभा के साथ दिन की शुरुआत हुई। साहित्यिक सत्रों में राजस्थानी भाषा के इतिहास, साहित्य और महिला साहित्यकारों की भूमिका पर चर्चा के साथ हुई। इसके अलावा साहित्यकारों ने राजस्थानी भाषा के सम्मान पर बात की, लोक वार्ता में राजस्थान के ऐतिहासिक योगदानों पर बात हुई, आखिर में कवि सम्मेलन में प्रसिद्ध राजस्थानी कवियों ने काव्य पाठ किया।
गौरतलब है कि तीन दिवसीय महोत्सव के अंतिम दिन रविवार को प्रभातकालीन सभा में तुषार शर्मा गायन प्रस्तुति देंगे। प्रात: 10 बजे से नृसिंह राजपुरोहित सत्र में मनोहर सिंह राठौड़, दिनेश पांचाल, शिवराज भारतीय विचार रखेंगे, विजय जोशी समन्वयक रहेंगे। प्रात: 11:45 बजे ओम पुरोहित कागद सत्र में मदन गोपाल लढ़ा, रवि पुरोहित, घनश्याम नाथ कच्छावा चर्चा करेंगे, मोनिका गौड़ समन्वयक रहेंगी। दोपहर 2 बजे कन्हैया लाल सेठिया सत्र में मृदुला कोठारी, सन्दीप भूतोड़िया, गौरीशंकर भावुक, दिनेश कुमार जांगिड़ विचार रखेंगे, ललित शर्मा समन्वयक रहेंगे। दोपहर तीन बजे उत्सव का भव्य समापन होगा।
प्रभातकालीन सभा में माहौल हुआ भक्तिमय—
ग्रास रूट मीडिया फाउंडेशन के क्यूरेशन में हो रहे उत्सव की शुरुआत प्रात: कालीन संगीत सभा के साथ हुई जिसमें हुल्लास पुरोहित ने भजन गायन की प्रस्तुति दी। हुल्लास ने राग अहीर भैरव में विलम्बित तीन ताल में निबद्ध रचना ‘रसिया म्हारा अमलारा’ व तीन ताल मध्यलय में ‘पिया परवीन परम सुख चतुर’ व द्रुत लय में ‘कैसे मनालू री’ जैसी ख्याल रचनाएँ प्रस्तुत की। तबले पर अभिनव वर्मा व हारमोनियम पर अनूपराज पुरोहित ने संगत की।
महिला साहित्यकारों की अहम भूमिका—
प्रथम सत्र में शारदा कृष्ण, किरण राजपुरोहित, रेखाश्री खेराड़ी और ममता महक ने रानी लक्ष्मी कुमारी चुंडाव के साहित्यिक रचनाओं पर प्रकाश डालने के साथ महिला साहित्यकारों के योगदान पर चर्चा की। वक्ताओं ने बताया कि राजस्थानी साहित्य में महिलाओं की लेखनी ने समाज को नई दिशा दी है। इतिहास से लेकर समकालीन साहित्य तक, महिलाओं ने अपनी रचनाओं के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन को प्रेरित किया है। उनके साहित्य ने न केवल संस्कृति को संजोया बल्कि नई पीढ़ी को भी मार्गदर्शन दिया। इस सत्र का समन्वयन अभिलाषा पारीक ने किया।
घर से करनी होगी शुरुआत—
सीताराम लालस सत्र के दौरान कृष्ण कुमार ‘आशु’, सुरेश सालवी और चेतन औदिच्य ने राजस्थानी भाषा के सम्मान और भविष्य पर विचार साझा किए। कृष्ण कुमार ने कहा कि भाषा को सम्मान मिलना चाहिए और इसके शब्दकोष पर चर्चा होनी चाहिए। बच्चों को भी राजस्थानी भाषा में बात करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए। सुरेश सालवी ने कहा कि वेदों में 104 स्थानों पर राजस्थानी भाषा का उल्लेख है। यह हमारे पूर्वजों की धरोहर है और इसकी शुरुआत घरों से ही करनी होगी और शिक्षा व निजी संस्थानों में भी भाषा का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। चेतन औदिच्य ने कहा कि हमें मिलकर अपनी भाषा को मान दिलाने का प्रयास करना चाहिए यदि हम संगठित होकर प्रयास करें तो इसे आगे बढ़ाया जा सकता है। सत्र का समन्वयन हरि मोहन सारस्वत ने किया।
बच्चों को लोक परम्परा से जोड़ना सामूहिक जिम्मेदारी—
बाल साहित्यकार किशोर कल्पनाकांत को समर्पित सत्र ‘टाबरां सारू लेखन’ बच्चों को राजस्थानी भाषा व लोक परम्पराओं से जोड़ने के मुद्दे पर आशा पांडे ओझा ने कहा कि इसके लिए राजस्थानी बाल साहित्य में परम्परा से जुड़ाव बहुत जरूरी है। कीर्ति शर्मा ने राजस्थानी साहित्य के विकास व बच्चों को संस्कृति से जोड़ने के लिए लोक परम्परा में प्रचलित गीतों, कविताओं, कहानियों आदि को लिख कर सहेजने की बात कही। उन्होंने सभी से अपने बच्चों को संस्कार व परम्परा की विरासत देने की अपील की। विमला महरिया ने कहा कि बच्चों को परम्पराओं से जोड़ने की जिम्मेदारी सामूहिक है जिसमें परिवार, समाज, सरकार सबको शामिल होना चाहिए। सत्र का समन्वय सरोज बीठू ने किया।
कतरो ई करो उजास, रातां दिन नी व्है सकै….
राजस्थानी भाषा के वरिष्ठ लेखक स्व. चतरसिंह बावजी की स्मृति में आयोजित सत्र ‘लोक वार्ता’ में राजस्थानी लोक परिवेश में प्रचलित मुहावरों व कहावतों पर चर्चा की। वरिष्ठ रंगकर्मी व लेखक गोपाल आचार्य ने चतरसिंह बावजी के दोहे ”कतरो ई करो उजास, रातां दिन नी व्है सकै…., बकरी चरगी नार नैं, पालो पाती जाण…” के साथ अन्य राजस्थानी कहावतों पर प्रकाश डाला। वरिष्ठ लेखक सतीश आचार्य ने कहा कि बचपन में दादी-नानी से सुनी कहानियां जीवनभर याद रहती हैं और यही हमारी संस्कृति को सहेजने का सबसे बड़ा माध्यम हैं। सत्र समन्वयक ईश्वर दत्त माथुर ने कहा कि मातृभाषा में बात करने में कोई शर्म महसूस नहीं करनी चाहिए। सत्र में बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया।
गूंजी राजस्थानी कविताएं—
विजयदान देथा साहित्य उत्सव की यादगार संध्या में युवा और वरिष्ठ कवियों ने मंच साझा किया और अपनी रचनाएं से समां बांधा। बड़ीं संख्या में राजस्थानी भाषा के साधक इस आयोजन में शामिल हुए और कविताओं का आनंद लिया। देवीलाल महिया ने अपनी काव्य रचनाओं से कवि सम्मेलन की शुरुआत की। मुरलीधर गौड़ ने ‘छोड़ बेटी छोड़ झाड़ भुआरा न, थारा बापू चरावा ला गाया न बकरियां न’ में बालिका शिक्षा का महत्व बताया। राजूराम बिजारणिया ने राजस्थानी ग़ज़ल ‘म्हारी निज़रा थारी निज़रा सूं मिलता ही, कड़के बिजला मेघ बरसता आवै जी’ से श्रृंगार रस से सभी को सराबोर किया। प्रहलाद सिंह जोरड़ा ने अपनी पंक्तियों ‘फूल सरीखी लाडेसर सूं मावड़ली बतळा री है, काळजिये री कोर शहर माईं पढ़बा न जारी है, बाबा रे नैना री पुतली मां री राज दुलारी है’ में पुत्री प्रेम को व्यक्त किया। वरिष्ठ कवि जितेंद्र निर्मोही ने श्रृंगार रस प्रधान रचना ‘ए जी थांकी याद आवै छै, थांकी मन म आवै छै’ से वाहवाही लूटी। उपेंद्र अणु ‘बाळपणा न याद करू तो धापी जाए मन’ के जरिए बचपन के गलियारे में श्रोताओं को ले गए। वरिष्ठ कवि गिरधरदान रतनू और सत्यदेव संवितेंद्र ने अपनी प्रबुद्ध रचनाओं के साथ कवि सम्मेलन का सुखद समापन किया।