jaipur: पिछले दो साल से कोरोना के कहर से अधखुली छतरी इस बार पूरी तरह पंख फैलाने को तैयार है। बेहतर मॉनसून तथा स्कूल और दफ्तर पूरी तरह खुलने की वजह से इस बार छतरी इतराने को बेताब है। छतरी के पंखों पर सवार होकर छोटी-बड़ी कंपनियां भी बाजार में फैलना चाह रही हैं। बाजार में चीनी छतरियों के नदारद होने और मांग के मुताबिक आपूर्ति न होने के कारण छतरी पर भी महंगाई की मार पड़ी है।
देश में मॉनसूनी फुहार शुरू होते ही रंग बिरंगी छतरियों का बाजार सज गया। मॉनसून की आहट आते ही बाजार में छतरियों की मांग इस कदर बढ़ी जिसकी कारोबारियों को भी उम्मीद नहीं थी। अंब्रेला मैन्युफैक्चरर्स ऐंड ट्रेडर्स एसोसिएशन, मुंबई के पूर्व अध्यक्ष महेंद्र जैन कहते हैं कि इस बार सबसे ज्यादा मांग कॉर्पोरेट सेक्टर की तरफ से हो रही है। सामान्यतः बाजार की कुल मांग का एक-दो फीसदी छतरियां उद्योग घराने खरीदते थे लेकिन इस बार यह मांग 6-7 फीसदी तक पहुंच गई है। दो साल बाद स्कूल-कॉलेज और दफ्तर भी पूरी तरह खुल गए हैं जिसके चलते थोक मांग के साथ रिटेल मांग भी तेज रहने वाली है। उनके मुताबिक शुरुआती मांग को देखकर कहा जा सकता है कि छतरियों की मांग को पूरा कर पाना मुश्किल है।
बाजार में छतिरयों की कमी पर कारोबारियों का कहना है कि कोरोना के चलते पिछले दो साल छतरी कारोबार के लिए बहुत बुरा था। उत्पादक इकाइयों को डर था कि कहीं इस बार भी ऐसा ही हाल न हो इसलिए शुरुआत में उत्पादन पर खास ध्यान नहीं दिया गया, कंपनियों ने जनवरी से उत्पादन शुरू किया। इस बीच चीन में कोरोना दोबारा फैलने से छतरी व छतरी तैयार में होने में लगने वाले सामान का आयात बाधित हो गया जिसके कारण उत्पादन कम हुआ। छतरी तैयार करने में लगने वाले सामान पर आयात शुल्क बढ़ने व ईंधन की कीमतें महंगी होने के कारण उत्पादन लागत बढ़ी, जिसके कारण छतरियों के दाम 25-30 फीसदी तक अधिक हो गए। इस बार थोक बाजार में छतरी 125-300 रुपये तक मिल रही है जबकि पिछले साल यह 90-200 रुपये तक में बेची जा रही थी।