मध्यम वर्ग के करोड़ों लोगों पर महंगाई की मार… आटा, दाम, चीनी, चावल सब पर अब लगेगा जीएसटी.. भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल ने की कड़ी निंदा… होगा राष्ट्रव्यापी आंदोलन…
आटा, दाल, चावल आदि पर जीएसटी लगाने से देषभर के व्यापारियों ने की घोर निंदा… सरकार से अपील वापिस ले फैसला
जयपुर। जीएसटी काउंसिल की चंडीगढ़ मंे हुई दो दिवसीय 47वीं मीटिंग में प्री-पैक्ड और प्री-लेबल्ड यानि पैक और लेबल वाले ब्राण्डेड पर जीएसटी लगाने का फैसला हुआ जिसमें उन्होंने दही, लस्सी, मक्खन, दूध को भी शामिल किया है। भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल के सदस्यों ने इस फैसले की घोर निंदा की है। भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल के राष्ट्रीय चेयरमेन बाबूलाल गुप्ता बताया कि छोटी चक्कियों वाले, छोटी दाल मिल वाले, छोटी चावल मिल वाले, छोटे-छोटे ट्रेडर्स के मार्फत उपभोक्ता को गेहूं, आटा, दाल, चावल पहुंचाते थे। और वह उपभोक्ता तक पहंुच जाता था। अब मजबूरन आटा, चावल, दाल सभी पर जीएसटी देकर ही उपभोक्ता इन कृषि जिंसों को खरीद सकेगा। गुप्ता ने केन्द्र सरकार से मांग की है कि गेहूं, आटा, चावल, दाल पर कोई जीएसटी नहीं लगाये। तथा आटा, चावल, दाल बनाने वाली मशीनों पर 5 प्रतिशत से 18 प्रतिशत बढ़ाये गये जीएसटी को वापिस लें। तेल की पैकिंग पर मिल रहे रिफण्ड को चालू रखें। यदि 11 जुलाई तक इसे वापिस नहीं लिया गया तो भारतीय उद्योग व्यापार मण्डल की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को बाध्य होकर देशव्यापी आंदोलन का निर्णय लेना पड़ेगा। इसकी सारी जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की होगी।
गौरतलब है कि देश की 7300 मण्डियां, 13 हजार दाल, 9600 चावल ,8 हजार आटा मील और 30 लाख चक्कियों सहित 3 करोड़ खुदरा व्यापारी ने इस जीएसटी काउंसिल की अनुशंषा को गलत ठहराया है। उनका कहना है कि आटे, चावल, दाल पर जो आम आदमी की खाने की वस्तु है। इन्हें भी जीएसटी के दायरे में लाया गया है। इसे तुरन्त प्रभाव से वापिस लिया जाना चाहिए।
60 करोड़ के लिए लगाया गया कर- केन्द्र सरकार के अनुसार 80 करोड़ लोगों को सरकार अनाज वितरण करती हैं तो बाकी 60 करोड़ के लिए यह कर लगाया गया है। जिसमें मध्यम वर्ग की संख्या 55 करोड़ है। 5 करोड़ तो इलीट क्लास है। इसे कर देने में कोई दिक्कत नहीं होगी। सबसे बड़ी दिक्कत तो मध्यम वर्ग हो होगी। जिसका खर्चा बढ़ रहा है, आय नहीं। इसमें छोटे और मध्यम श्रेणी के उद्योग तथा व्यापारी भी शामिल है।
आम आदमी की जेब पर असर– जीएसटी काउंसिल की बैठक लिए गए फैसले का सीधा असर आम आदमी की जेब पड़ेगा। पूरे भारत में व्यापारी इस फैसले का कड़ा विरोध कर रहे हैं और सरकार से फैसला वापस लेने की मांग कर रहे हैं। सरकार का ये फैसला गरीब व मध्यम वर्गीय परिवारों की कमर तोड़ने वाला है। इससे रसोई में उपयोग होने वाली सभी वस्तुएं महंगी होंगी।
फिर से होगा जीएसटी पंजीकरण- जुलाई 2017 में जब नॉन ब्रांडेड आटा, दाल, चावल व अन्य अनाज पर सरकार ने जीएसटी जीरो प्रतिशत किया था। उस वक्त उपरोक्त वस्तुओं का व्यापार करने वाले व्यापारियों ने अपना जीएसटी पंजीकरण सरेंडर कर दिया था। ऐसे में उन व्यापारियों को अब दुबारा पंजीकरण कराना होगा।
2 से 5 रुपये तक बढ़ गए दाम– आटा, दाल, बेसन, चना समेत अन्य अनाज के कट्टे पर पांच प्रतिशत तक टैक्स लगने के फैसले से इन वस्तुओं के भाव बढ़ गए हैं। इस फैसले के विरोध में गुरूवार को हुई व्यापारियों के संगठनों की बैठक में सरकार से फैसला वापिस लेने के लिए कहा जाएगा।
62 प्रतिषत जनता पर सीधा असर- सरकार ने खुद कोरोना के वक्त 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन दिया। यह सरकारी आंकड़ा है। इसका मतलब सरकार खुद मानती है कि इस वर्ग को फ्री राशन की जरूरत है। ऐसे में इस तरह का टैक्स लगाना बिल्कुल सही नहीं है। यह टैक्स सीधा 62 प्रतिशत जनता पर असर डालेगा। सीधे गेहूं, आटा, चावल, दाल पर जीएसटी लगाकर एक बहुत बड़ा भार जीएसटी का ट्रेड और उद्योग पर डाला जा रहा है। इसके साथ ही इसी जीएसटी काउंसिल में दाल, गेहूं, चावल को साफ करने वाली मशीन पर 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 18 प्रतिशत जीएसटी संधारित कर दिया है। यही नहीं तेल के पैकिंग पर लगने वाली जीएसटी का रिफण्ड भी समाप्त कर दिया है। सीधी भाषा में यह कहा जा सकता है कि मण्डी में गेहूं, चावल, दलहन किसान लेकर आयेगा; एफएसएसएआई के कारण पैकिंग में माल बिकना जरूरी है। क्वालिटी डिफरेन्स का लेबल लगाना होगा और जीएसटी लगाना होगा। मण्डी में गेहूं चाहे बड़ी मिल वाला खरीदे या छोटी चक्की वाला उसे जीएसटी लगा हुआ ही गेहूं मिलेगा। यही स्थिति चावल व दालों की है।
फोर्टी ने लिखा पत्र- उधर, फोर्टी संरक्षक सुरजाराम मील का कहना है कि आटा, दाल, चावल आम आदमी का प्राथमिक भोजन है और ज्यादातर गरीब वर्ग के लोग खुले आटा दाल और चावल का इस्तेमाल करते हैं, उस पर भी जीएसटी लगाना गरीब के रसोई के बजट पर कुठाराघात है, इसलिए फोर्टी ने जीएसटी काउंसिल में राजस्थान का प्रतिनिधित्व करने वाले यूडीएच मंत्री शांति धारीवाल को पत्र लिखकर विरोध जताया है।