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श्रीराम जनरल इंश्योरेंस ने जीता ऐतिहासिक मुकदमा - फर्जी मोटर बीमा दावे के खिलाफ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

श्रीराम जनरल इंश्योरेंस ने जीता ऐतिहासिक मुकदमा – फर्जी मोटर बीमा दावे के खिलाफ हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

अस्पताल, वकीलों और डॉक्टरों के गठजोड़ का खुलासा, कोर्ट ने एसआईटी जांच के दिए आदेश, डॉ. शरद द्विवेदी (जिला मेडिकल बोर्ड के सदस्य) के खिलाफ विभागीय जांच के आदेश, डॉ. बालकृष्ण डांग के खिलाफ मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को उचित कार्रवाई करने के निर्देश, एडवोकेट मनोज शिवहरे पर forged मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त करने का आरोप, राज्य बार काउंसिल को कार्रवाई के आदेश, पुलिस महानिदेशक (DGP) को एसआईटी (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) गठित कर मामले की जांच के निर्देश

 

जबलपुर. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में मोटर बीमा दावों में हो रही धोखाधड़ी के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए राज्य पुलिस महानिदेशक (DGP) को एक विशेष जांच दल (SIT) गठित करने के निर्देश दिए हैं। इस आदेश के बाद, श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी (SGIC) ने अपने पक्ष में एक महत्वपूर्ण कानूनी जीत दर्ज की है।

 

मामले में अस्पताल, पुलिस अधिकारियों और वकीलों के गठजोड़ का खुलासा हुआ, जो फर्जी दस्तावेजों, जाली मेडिकल प्रमाणपत्रों और दवाओं के फर्जी बिलों के आधार पर मोटर वाहन दुर्घटना बीमा राशि हड़पने की साजिश कर रहे थे। हाईकोर्ट ने दावा खारिज करते हुए श्रीराम जनरल इंश्योरेंस के पक्ष में फैसला सुनाया।

कोर्ट का कड़ा रुख:

 

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रधान सचिव को डॉ. शरद द्विवेदी के खिलाफ विभागीय जांच करने के निर्देश दिए हैं। इसके अलावा, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को डॉ. बालकृष्ण डांग पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने को कहा गया है।

इसके अलावा, राज्य बार काउंसिल को एडवोकेट मनोज शिवहरे के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया है, क्योंकि उन्होंने फर्जी मेडिकल सर्टिफिकेट प्राप्त कर बीमा दावा करने की कोशिश की थी।

कैसे पकड़ी गई धोखाधड़ी?

 

दावाकर्ता राकेश वालटिया ने एक पिकअप वाहन की दुर्घटना में घायल होने का दावा किया था। जांच के दौरान, अदालत ने पाया कि मामले में कई विसंगतियाँ थीं: डॉ. शरद द्विवेदी ने दावा करने वाले की जांच किए बिना ही विकलांगता प्रमाणपत्र जारी कर दिया। डॉ. बालकृष्ण डांग ने ‘सुधा अस्पताल’ का डिस्चार्ज कार्ड जमा किया, जबकि वह ‘सुविधा अस्पताल’ में कार्यरत थे। दाखिले और डिस्चार्ज की तिथियों में विरोधाभास था, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि दस्तावेज़ जाली थे। स्वयं दावाकर्ता ने स्वीकार किया कि उसने अस्पताल का दौरा ही नहीं किया था और उसके वकील ने सभी कागजात तैयार करवाए थे। कोर्ट ने इस आधार पर दावाकर्ता, डॉक्टरों और वकील को फर्जीवाड़े में लिप्त पाया और SIT से इस तरह के अन्य मामलों की गहन जांच करने को कहा।

श्रीराम जनरल इंश्योरेंस का बयान

 

श्रीराम जनरल इंश्योरेंस कंपनी के कार्यकारी निदेशक अश्विनी धनावत ने इस फैसले पर कहा: “यह फैसला हमारी उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है, जिससे हम बीमा प्रणाली को धोखाधड़ी से बचाने के लिए कार्यरत हैं। हमारी जिम्मेदारी है कि हम केवल उन्हीं दावों का निपटान करें जो वास्तविक हों।” उन्होंने आगे कहा कि यह फैसला मेडिकल और कानूनी पेशेवरों के लिए भी एक कड़ा संदेश है कि वे ईमानदारी और पारदर्शिता बनाए रखें।

उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मोटर दुर्घटना मुआवजा कानून जरूरतमंद लोगों की मदद के लिए है, लेकिन कुछ लोग इसका दुरुपयोग कर धोखाधड़ी करते हैं। हाईकोर्ट ने इस मामले में इसे गंभीरता से लिया और इसे न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को बनाए रखने के लिए एक आवश्यक कदम बताया।

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