मुंबई. मुद्रा बाजार विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रिों का अनुमान है कि रुपया दबाव में रहेगा, लेकिन उन्हें नहीं लगता कि इसमें बहुत अधिक गिरावट आएगी। बिज़नेस स्टैंडर्ड के 12 विशेषज्ञों के पोल के मुताबिक दिसंबर में जो दवाब है, वह मार्च तक कुछ कम हो सकता है। वे इसकी वजह यह मानते हैं कि बाजार अमेरिकी फेडरल की बॉन्ड खरीद में कमी के अभ्यस्त हो जाएंगे और आरबीआई किसी उतार-चढ़ाव को खत्म करने के लिए अपने बड़े विदेशी मुद्रा भंडार का इस्तेमाल करेगा। इससे रुपया मजबूत भी हो सकता है।
रुपया शुक्रवार को 75.78 प्रति डॉलर पर बंद हुआ, जो उसका 18 महीने का सबसे निचला स्तर है। पोल के भागीदारों को नहीं लगता कि रुपये में बड़ी गिरावट आएगी, लेकिन यह मार्च के अंत तक 76.50 प्रति डॉलर के आसपास रह सकता है। वहीं कुछ ने अनुमान जताया कि उस समय तक रुपया मजबूत होकर 74.50 प्रति डॉलर पर आ जाएगा। अन्य का अनुमान है कि रुपया मार्च तक 77 और जून तक 78 पर भी पहुंच सकता है। हाल में रुपया कई वजहों से दबाव में आ गया है। हालांकि एक अहम मसला यह भी है कि अंतर-बैंक कारोबार में साल के अंत में कमी आ रही है। बहुत से विदेशी बैंक साल के आखिर तक अपनी पोजिशन में कटौती करते हैं और जनवरी के मध्य तक लौटते हैं। कम कारोबार के नतीजतन मुद्रा बाजारों में उतार-चढ़ाव बढ़ता है। इसकी कुछ बुनियादी वजह भी हैं।
इंडसइंड बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री गौरव कपूर के मुताबिक बढ़ते वस्तु व्यापार घाटे, बढ़ती वैश्विक महंगाई एवं अधिक मूल्यांकन से अस्थिर पोर्टफोलियो प्रवाह, डॉलर, डॉलर की तरफ मजबूत होते रुझान और महामारी के उभार की चिंताओं के कारण निकट अवधि और वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में रुपये पर दबाव बना रहेगा। इससे रुपया और गिरकर 76.20 से 76.30 प्रति डॉलर के स्तर पर पहुंच सकता है। खास तौर पर इसलिए क्योंकि अमेरिकी फेड अगले सप्ताह से मौद्रिक प्रोत्साहनों को वापस लेने में तेजी के संकेत दे सकता
है।