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बड़ा असर नहीं डाल सका RERA

 

रियल एस्टेट रेग्युलेशन ऐंड डिवेलपमेंट ऐक्ट (रेरा) को कई राज्यों में लागू किए हुए सालभर हो गए हैं। कुछ राज्यों में अब भी इसे लागू नहीं किया गया है। इन राज्यों की सरकारों ने या तो ऐक्ट को नोटिफाई करने में देर की है या इसके प्रावधानों को नरम कर दिया है। लियासेज फोरास के एमडी पंकज कपूर ने कहा, ‘महाराष्ट्र ने रेरा को ठीक से लागू किया है। मध्य प्रदेश भी कदम उठा रहा है, लेकिन दूसरे राज्यों में मामला सुस्त है।’अधिकतर राज्यों ने होम बायर्स की आंखों में धूल झोंकने के लिए एक अंतरिम रेग्युलेटर बैठा दिया है और उन्होंने रेरा के तहत परमानेंट रेग्युलेटर नहीं बनाया है। नाइट फ्रैंक इंडिया के चीफ इकनॉमिस्ट और नेशनल डायरेक्टर (रिसर्च) सामंतक दास ने कहा, ‘देशभर में रेरा के तहत रजिस्टर्ड हुए करीब 25000 प्रॉजेक्ट्स में से 62 प्रतिशत महाराष्ट्र में हैं।’ बंगाल ने बिल्कुल ही अलग रास्ता पकड़ लिया है और उसने अपना अलग हाउसिंग लॉ-हाउसिंग इंडस्ट्री रेग्युलेशन ऐक्ट के नाम से बना दिया है। मकानडॉटकॉम के ग्रुप सीईओ ध्रुव अग्रवाल ने कहा, ‘ये रेरा के शुरुआती दिन हैं, लिहाजा इसको लागू करने में सुस्ती पर फोकस करने से कोई फायदा नहीं है। रेरा के ही चलते 3-4 साल में रियल एस्टेट बिल्कुल ही अलग इंडस्ट्री बन जाएगा।’ रियल एस्टेट से जुड़े माहौल में बदलाव से एक्सपर्ट्स उत्साहित हैं। दास ने कहा, ‘महाराष्ट्र रेरा ने हाल में जो जजमेंट्स दिए हैं, उनसे अंडर-कंस्ट्रक्शन प्रॉजेक्ट्स पर बायर्स का भरोसा बहाल हुआ है।’

पारदर्शिता बढ़ी- रेरा ने रियल एस्टेट सेक्टर को अपेक्षाकृत पारदर्शी बना दिया है। उदाहरण के लिए, बिल्डर अब ‘बिल्ट अप’ और ‘सुपर बिल्ट अप’ एरिया का हवाला देकर किसी प्रॉपर्टी की असल साइज की गलत पिक्चर नहीं दिखा सकते हैं। अब उनके लिए सभी एग्रीमेंट्स में ‘कारपेट एरिया’ बताना अनिवार्य कर दिया गया है। बायर अपने प्रॉजेक्ट के साइट प्लान, बिकी हुई यूनिट्स, कंस्ट्रक्शनस्टेज, पजेशन डेट जैसी जानकारी रेरा की वेबसाइट पर हासिल कर सकते हैं। कपूर ने कहा, ‘एक वेबसाइट पर प्रॉजेक्ट के सभी डीटेल्स होने से ट्रांजैक्शन में ट्रांसपैरंसी बहुत बढ़ी है। होम बायर्स यह भी देख सकते हैं कि उसी बिल्डर के कितने दूसरे प्रॉजेक्ट्स चल रहे हैं और यह भी कि बिल्डर खुद को मुश्किल में तो नहीं फंसा रहा है।

सप्लाई में कमी-  नए लॉन्च में सुस्ती रेरा का एक शॉर्ट टर्म नेगेटिव इंपैक्ट था। अग्रवाल ने कहा, ‘डिवेलपर्स ने अंधाधुंध लॉन्च से तौबा कर ली है। वे नए प्रॉजेक्ट्स के बारे में बहुत सतर्क हो गए हैं। लॉन्च से पहले वे सभी अप्रूवल्स ले रहे हैं।’ सप्लाई में अब फिर तेजी आनी शुरू हो गई है। अग्रवाल ने कहा, ‘मजबूत बिल्डर्स कमजोर बिल्डर्स के प्रॉजेक्ट्स टेकओवर कर रहे हैं। ऐसे में इंडस्ट्री ऑर्गनाइज हो रही है और सप्लाई जल्द बढ़ेगी।’ क्या इस कंसॉलिडेशन से रीयल्टी बिजनस कुछ ही बिल्डर्स के हाथों में सिमट जाएगा और यह सेलर्स का मार्केट बन जाएगा? कपूर ऐसा नहीं सोचते।
उन्होंने कहा, ‘कमजोर और बदमाश बिल्डर्स के लिए रेरा सख्त है, लेकिन इसने छोटे और अच्छे बिल्डर्स के लिए राह भी बनाई है। अच्छे और छोटे बिल्डर फाइनैंशल इंस्टीट्यूशंस से कर्ज ले सकते हैं। इस तरह रेरा इस मार्केट का विस्तार करने में मदद कर रहा है।’

पजेशन की डेट- रेरा के चलते कई मामलों में पजेशन की डेट पांच साल से ज्यादा खिसक गई है। प्रॉजेक्ट में देरी के लिए बिल्डर्स पर कड़ी पेनल्टी की व्यवस्था के कारण पजेशन डेट पहले ही खिसका दी जा रही हैं। कपूर ने कहा, ‘प्रॉजेक्ट कंस्ट्रक्शन के समय कई अप्रूवल्स की जरूरत होती है। बिल्डर्स को यह भरोसा नहीं होता कि ये कब तक मिल पाएंगी, लिहाजा उन्होंने पजेशन की तारीख खिसका
दी है। नगर निगमों की मंजूरी देने वाली अथॉरिटी को रेरा के तहत लाने से करप्शन घटेगा।’

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