मुंबई. भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) संभवत: बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के पक्ष में नहीं है। नवंबर 2020 में बैंक के एक आंतरिक कार्यसमूह ने औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने का सुझाव दिया था। उम्मीद की जा रही है कि बैंकिंग नियामक अगले 10 दिन में जारी होने वाली अंतिम रिपोर्ट में इस विषय पर अपना रुख साफ कर सकता है।
शीर्ष स्तर के एक सूत्र ने बताया कि बैंकिंग लाइसेंस के मामले में यथास्थिति बनी रहने की संभावना है। माना जा रहा है कि केंद्रीय बैंक अपने उस रुख पर अडिग रहेगा, जिसमें किसी ऐसे औद्योगिक समूह की की गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) को बैंकिंग लाइसेंस नहीं दिया जाएगा, जिसकी कुल परिसंपत्ति 5,000 करोड़ रुपये या ज्यादा है और समूह की कुल संपत्ति तथा सकल आय में गैर वित्तीय कारोबार की हिस्सेदारी 40 फीसदी या अधिक है। बैंकिंग लाइसेंस के लिए औद्योगिक घराने से जुड़ी एनबीएफसी को बैंकिंग लाइसेंस चाहिए तो वित्तीय सेवा कारोबार में उसकी पैठ अधिक होनी चाहिए।
केंद्रीय बैंक नकद आरक्षित अनुपात और सांविधिक तरलता अनुपात की आवश्यकता और प्राथमिक क्षेत्र के लक्ष्यों को पूरा करने वाली इकाइयों के लिए पुराने नियमन की जगह नए नियम अपना सकता है। यह बड़ा बदलाव होगा क्योंकि आईसीआईसीआई लिमिटेड-आईसीआईसीआई बैंक के रिवर्स विलय में या आईडीएफसी को आईडीएफसी फस्र्ट बैंक में बदलने के समय इस तरह की रियायत नहीं दी गई थी। हालांकि आईडीबीआई लिमिटेड और आईडीबीआई बैंक के रिवर्स विलय का मामला अपवाद है। निजी क्षेत्र के बैंकों के लिए स्वामित्व दिशा निर्देश और कॉर्पोरेट ढांचे की समीक्षा के लिए आंतरिक कार्यसमूह गठित किए जाने के बाद बड़े औद्योगिक घरानों में बैंकिंग लाइसेंस मिलने की उम्मीद जग गई थी। यह रिपोर्ट 20 नवंबर, 2020 को सौंपी गई थी और इसमें औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने के गुण-दोष का भी उल्लेख किया गया था। आरबीआई की अंतिम रिपोर्ट में परिचालन का विस्तृत ब्योरा हो सकता है मगर बड़े औद्योगिक घरानों को बैंकिंग लाइसेंस जारी नहीं करने का नीतिगत रुख बरकरार रह सकता है।