नई दिल्ली। हाल में अस्तित्व में आए कृषि कानूनों पर केंद्र और पंजाब सरकार (Punjab Government) के बीच टकराव तेज हो गया है। मंगलवार को पंजाब विधानसभा ने संसद में पारित कृषि कानूनों पर उठे तूफान के बीच नए विधेयक पारित किए हैं। राज्य विधानसभा द्वारा पारित इन विधेयकों के अनुसार कि सानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे गेहूं एवं चावल की बिक्री करने के लिए बाध्य करने वालों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
अनाज मंडी से बाहर होने वाले सभी लेनदेन पर Tax
इसके साथ ही विधानसभा में पारित विधेयकों के अनुसार अनाज मंडी से बाहर होने वाले सभी लेनदेन पर कर लगाया जाएगा। जाहिर है, इन संशोधनों से राज्य ने अपने वित्तीय हित भी साधने की कोशिश की है। इस तरह, इन विधेयकों के बाद संसद में पारित तीन कृषि कानूनों का कुछ हिस्सा राज्य में निष्प्रभावी हो गया है। राज्य विधानसभा ने संसद में पारित तीनों कृषि कानूनों को राज्य एएपीएमसी अधिनियम, 1961 के अनुरूप करने के लिए इनमें संशोधन किए हैं। इस तरह, राज्य विधानसभा ने विधेयक पारित कर केंद्रीय कानूनों को दरकिनार कर दिया है।
22 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा
कारोबार सुविधा कानून और अनुबंध कृषि कानून दोनों के मामलों में राज्य विधानसभा में किए गए संशोधन गेहूं एवं धान के संबंध में लागू होते हैं। केंद्र सरकार ने लगगभ 22 फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा करती है और इनमें कई जैसे कपास एवं मक्का की बिक्री राज्य में एमएसपी से नीचे हुई है।
सामान्य धान एवं गेहूं के मामले में अनुबंध आधारित खेती
पंजाब में सामान्य धान एवं गेहूं के मामले में अनुबंध आधारित खेती कभी-कभी होती है। कानूनों के तहत पंजाब सरकार को केंद्र के मूल कानून में परिभाषित ‘कारोबार क्षेत्र’ में मंडी से बाहर होने वाले किसी लेनदेन पर कर लगाने का अधिकार दिया गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि राज्य विधानसभा में पारित कानूनों का मतलब साफ है कि भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) को पंजाब में गेहूं एवं धान की लगभग सभी खरीदारी पर 8.5 प्रतिशत शुल्क देना होगा। मोटे अनुमानों के अनुसार पंजाब ऐसी खरीदारी से करीब सालाना 500 करोड़ रुपये अर्जित करता है।