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चुनावी बिसात पर आलू


राष्ट्रवाद, बदला और विकास के दावों के बीच उत्तर प्रदेश में आलू किसानों की बदहाली बाराबंकी से लेकर बुलंदशहर तक चुनावी मुद्दा बन रही है। उत्तर प्रदेश की आलू पट्टी कहे जाने वाले हाथरस, आगरा, अलीगढ़, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, इटावा से अवध के बाराबंकी तक आलू की गिरती कीमतें, कोल्ड स्टोरों का मंहगा किराया और बढ़ता घाटा किसानों के लिए चिंता का विषय बना हुआ है। उत्तर प्रदेश में पहले दो चरणों में पश्चिम और ब्रज के जिन इलाकों में चुनाव होना है वहां आलू किसानों की तादाद काफी है। लगातार तीसरे साल जोरदार पैदावार के बाद भी किसानों के हाथ खाली हैं और उन्हें उपज की सही कीमत नहीं मिल पा रही है। किसानों की बड़ी समस्या कोल्ड स्टोरों का मंहगा किराया भी है जिसकी वजह से वह अपना माल औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हैं। किसानों का दर्द है कि फरवरी में ऐलान किए जाने के बाद भी अब तक आलू की सरकारी खरीद शुरू नही हो पाई है और गरमी बढऩे के साथ ही खराब होने से बचाने के लिए उनके सामने उपज को कम दामों पर बेचने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है। प्रदेश में बीते साल जहां 155 लाख क्विंटल आलू उत्पादन हुआ था वहीं इस साल की पैदावार का आकलन 165 लाख टन पार जाने का है। किसानों का कहना है कि कोल्ड स्टोर में रखने का किराया 250 रुपये प्रति क्विंटल पड़ रहा है जबकि उन्हें इससे कम कीमत बाजार में मिल रही है। उनका कहना है कि इस समय अच्छी गुणवत्ता वाले आलू की उत्पादन लागत कोल्ड स्टोर का भाड़ा मिलाकर 600 रुपये प्रति क्विंटल आ रही है।

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