नई दिल्ली। पेट्रोल व डीजल को माल एवं सेवा कर (जीएसटी) के तहत लाने की स्थिति में पर 28 प्रतिशत की उच्चतम दर के साथ साथ राज्यों की तरफ से कुछ स्थानीय बिक्री कर या मूल्य वर्धित कर (वैट) लगाया जा सकता है। इस विषय के साथ जनदीकी से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने यह बात कही।
अधिकारी ने कहा कि दोनों ईंधनों को जीएसटी के दायरे में लाने से पहले केंद्र को यह भी सोचना होगा कि क्या वह इन पर इन-पुट कर क्रेडिट (उत्पादन के साधन पर जमा कर) का लाभ न देने से हो रहे 20,000 करोड़ रुपए के राजस्व लाभ को छोड़ने को तैयार है। पेट्रोल, डीजल, प्राकृतिक गैस और कच्चे तेल को माल एवं सेवा कर व्यवस्था से बाहर रखने की वजह से इन पर इनपुट टैक्स का क्रेडिट नहीं मिलता है।जीएसटी एक जुलाई, 2017 से लागू हुआ है। जीएसटी के क्रियान्वयन से जुड़े इस अधिकारी ने कहा, ‘दुनिया में कहीं भी पेट्रोल, डीजल पर शुद्ध जीएसटी नहीं लगता है। भारत में भी जीएसटी के साथ वैट लगाया जाएगा।’ उसने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में शामिल करना राजनीतिक फैसला होगा और केंद्र और राज्यों को सामूहिक रूप से इस पर निर्णय करना होगा।
फिलहाल केंद्र की ओर से पेट्रोल पर 19.48 रुपए प्रति लीटर और डीजल पर 15.33 रुपए प्रति लीटर का उत्पाद शुल्क लगाया जाता है। इसके अलावा राज्यों द्वारा ईंधन पर वैट लगाया जाता है। इसमें सबसे कम दर अंडमान निकोबार द्वीप समूह में है। वहां दोनों ईंधनों पर छह प्रतिशत का बिक्रीकर लगता है। मुंबई में पेट्रोल पर सबसे अधिक 39.12 प्रतिशत का वैट लगाया जाता है। डीजल पर सबसे अधिक 26 प्रतिशत वैट तेलंगाना में लगता है। दिल्ली में पेट्रोल पर वैट की दर 27 प्रतिशत और डीजल पर 17.24 प्रतिशत है। पेट्रोल पर कुल 45 से 50 प्रतिशत और डीजल पर 35 से 40 प्रतिशत का कर लगता है। अधिकारी ने कहा कि जीएसटी के तहत किसी वस्तु या सेवा पर कुल कराधान उसी स्तर पर रखा जाता है, जो एक जुलाई, 2017 से पहले केंद्र और राज्य सरकार के शुल्कों को मिलाकर रहता था। इसके लिए किसी उत्पाद या सेवा को चार 5,12, 18 और 28 प्रतिशत के कर स्लैब में से किसी एक स्लैब में रखा जाता है।