जयपुर। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) (GST) मुआवजे में कमी की भरपाई के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित दोनों विकल्पों को पश्चिम बंगाल, पंजाब, छत्तीसगढ़ और केरल सहित विपक्ष शासित राज्यों ने खारिज कर दिया। इन राज्यों के प्रमुख अब सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये बैठक कर आगे की योजना तैयार करेंगे। आगे की रणनीति के तहत केंद्र-राज्य विवाद निपटान तंत्र को संचालित करने पर भी चर्चा की जा सकती है। वित्त मंत्रालय के अधिकारियों द्वारा मुआवजे में कमी की भरपाई के लिए उधारी के दो विकल्पों का खाका साझा किए जाने के एक दिन बाद ही राज्यों ने यह कदम उठाया है।
ये हैं दो विकल्प
पहले विकल्प में भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) की विशेष सुविधा के जरिये 97,000 करोड़ रुपये की उधारी लेना है और दूसरे विकल्प में कोविड के कारण हुए नुकसान के लिए बाजार से 2.35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज जुटाने का प्रस्ताव दिया गया है। पहले विकल्प में ब्याज का भुगतान मुआवजा उपकर संग्रह से किया जाएगा और राजकोषीय विस्तार को अतिरिक्त 0.5 फीसदी बढ़ाया जाएगा। दूसरे विकल्प में ब्याज का भुगतान राज्यों को करना होगा और अतिरिक्त राजकोषीय विस्तार की गुंजाइश नहीं होगी।
दोनों ही विकल्प अजीब
केरल के वित्त मंत्री थॉमस आइजक ने कहा कि उनके राज्य ने दोनों विकल्प खारिज कर दिए हैं। उन्होंने कहा, ‘दोनों ही विकल्प अजीब हैं। पहले विकल्प में मुझे मुआवजे में कोविड और गैर-कोविड का विभेद स्वीकार नहीं है। अटॉर्नी जनरल ने भी अपनी राय में इसका उल्लेख नहीं किया है। दूसरे विकल्प के मामले में ब्याज मद का भुगतान उपकर संग्रह से क्यों नहीं किया जा
सकता।’
राजकोषीय घाटे की सीमा का आवंटन गलत
उन्होंने कहा कि राजकोषीय घाटे की सीमा का आवंटन गलत है क्योंकि विभिन्न राज्यों की मुआवजे की जरूरत अलग-अलग है। आइजक ने कहा, ‘आप केरल, तेलंगाना या पूर्वोत्तर के राज्यों के लिए एकसमान राजकोषीय घाटे की सीमा कैसे तय कर सकते हैं? पूर्वोत्तर के राज्य हाल तक अधिशेष में थे और संभव है कि उन्हें अब इसकी मामूली जरूरत हो।’ उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा उधारी जुटाया जाना इसका समाधान है।
राज्यों ने दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया
पंजाब के वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने कहा कि पंजाब सहित कांग्रेस एवं विपक्षी दलों द्वारा शासित सभी राज्यों ने दोनों विकल्पों को खारिज कर दिया है। सभी राज्य इस मसले पर व्यापक परामर्श करेंगे। उन्होंने कहा कि दोनों ही विकल्प राज्यों को आकर्षक नहीं लग रहे हैं। दूसरे विकल्प में राजकोषीय घाटे की सीमा नहीं बढ़ाई गई है और ब्याज भुगतान का बोझ राज्यों पर डालने की बात कही गई है। केंद्र सरकार अपने वायदे से पीछे हट रही है।
राज्यों पर भारी कर्ज बोझ डाला
पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा, ‘दैवीय आपदा के नाम पर राज्यों पर भारी कर्ज बोझ डाला जा रहा है। इससे राज्यों की वित्तीय स्थिति खराब होगी और संघीय ढांचे को नुकसान होगा।’ राज्यों ने यह तर्क भी खारिज कर दिया कि केंद्र द्वारा अतिरिक्त उधारी लिए जाने से सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल बढ़ जाएगा और देश की आर्थिक स्थिति पर नकारात्मक असर पड़ेगा।