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उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा

विश्वविद्यालयों में अब होंगे कुलपति के स्थान पर कुलगुरू, निर्णय से बदलेगा मानसिक दृष्टिकोण -उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री

राजस्थान के विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) विधेयक, 2025 ध्वनिमत से पारित

जयपुर। उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमचंद बैरवा (Deputy Chief Minister and Higher Education Minister Dr. Premchand Bairwa) ने कहा कि मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा के नेतृत्व में प्रदेश सरकार उच्च शिक्षा के क्षेत्र में लगातार महत्वपूर्ण निर्णय ले रही है। उन्होंने कहा कि वंचित वर्गों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध करवाना हमारी सरकार का ध्येय है। प्रदेश सरकार द्वारा लगातार कॉलेज शिक्षकों की भर्ती की जा रही है। उन्होंने कहा कि भारत देश प्राचीन काल में ज्ञान एवं शिक्षा का वैश्विक केंद्र रहा है। राज्य सरकार शिक्षा के माध्यम से भारत का पुराना गौरव लौटाने के लिए कृतसंकल्पित है।
उप मुख्यमंत्री एवं उच्च शिक्षा मंत्री गुरूवार को विधानसभा में राजस्थान के विश्वविद्यालयों की विधियां (संशोधन) विधेयक, 2025 पर चर्चा के बाद जवाब दे रहे थे। संशोधन के अनुसार राज्य के 33 वित्त पोषित्त विश्वविद्यालयों में कुलपति एवं प्रतिकुलपति के पदनामों में बदलाव कर इन्हें क्रमशः कुलगुरू एवं प्रतिकुलगुरू किया गया है।
डॉ. बैरवा ने कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय औपचारिक प्रक्रिया ना होकर एक महान शिक्षा व्यवस्था की पुनर्स्थापना का प्रयास है। यह हमारे विश्वविद्यालयों को पुनः श्रद्धा का केंद्र बनाने की दिशा में उठाया गया कदम है। इससे भारत की महान गुरु शिष्य परंपरा का पुनर्जागरण होगा। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में भारत में विक्रमशिला, तक्षशिला, नालंदा आदि विश्वप्रसिद्ध विश्वविद्यालय विद्यमान थे। इनमें विश्वभर से विद्यार्थी अध्ययन करने आते थे। यह संशोधन भारतीय विश्वविद्यालयों को उनका पुराना गौरव लौटाने की कड़ी में एक महत्वपूर्ण कदम है।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि विद्यार्थियों के चरित्र निर्माण का कार्य भारतीय समाज में गुरु करता है। उन्होंने कहा कि कुलपति राज्य वित्त पोषित्त विश्वविद्यालयों में मुख्यकार्यपालक एवं शैक्षणिक अधिकारी होता है। जहां कुलपति शब्द प्रशासनिक है एवं स्वामित्व को दर्शाता है। वहीं गुरु शब्द के साथ में विद्वता एवं आत्मीयता भी जुड़ी है। राज्य सरकार का यह निर्णय एक शाब्दिक परिवर्तन न होकर गुरु की महिमा को पुनः स्थापित करने का प्रयास है। इसका प्रभाव मानसिक दृष्टिकोण बदलने के साथ-साथ शिक्षा की गुणवत्ता पर भी होगा।
डॉ. बैरवा ने कहा कि भारत के प्राचीन गुरुकुलों में विद्यार्थियों को आध्यात्म, विज्ञान, कला, दर्शन सहित सभी विषयों का ज्ञान दिया जाता था। यहां की शिक्षा प्रणाली पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ थीं। इसमें पुस्तकों, जीवन मूल्यों, नैतिकता, आत्म साक्षात्कार, आत्मनिर्भरता, समाजसेवा, देशभक्ति सहित विभिन्न प्रकार की शिक्षा दी जाती थी। मनुष्य के चरित्र निर्माण की दिव्य प्रक्रिया भी इन्हीं गुरुकुलों में संपन्न होती थी। उन्होंने कहा कि आक्रांताओं एवं पाश्चात्य शिक्षा नीति ने भारतीय शिक्षा परंपराओं को ध्वस्त किया। भारतीय शिक्षा में औपनिवेशिक मानसिकता को शामिल किया गया। इससे राष्ट्र गौरव की क्षति हुई।
उप मुख्यमंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा भारतीय शिक्षा नीति 2020 लाई गई, ताकि भारतीय ज्ञान एवं कौशल पर आधारित नई शिक्षा व्यवस्था खड़ी की जा सके। यह नई शिक्षा नीति विद्यार्थी के समग्र विकास, नवाचार को प्रोत्साहन देने वाली और व्यावसायिक शिक्षा को समावेशित करने वाली है। हर वर्ग के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना इसका उद्देश्य है। उन्होंने कहा कि ज्ञान, विज्ञान में प्रगति के साथ-साथ नई शिक्षा नीति युवा पीढ़ी को भारतीय मूल्यों एवं परंपराओं से भी जोड़ रही है। यह भारत को दोबारा विश्व गुरु के पद पर स्थापित करने की प्रक्रिया की नींव डाल रही है।

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