मुंबई. आर्थिक गतिविधियों में ‘टिकाऊ और निरंतर’ सुधार के संकेत दिखे तो भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) अपने नीतिगत रुख में बदलाव की सोच सकता है। मगर यह बदलाव नपा-तुला होगा ताकि बाजार को किसी तरह का झटका न लगे। आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक टेलीविजन चैनल को दिए साक्षात्कार में यह कहा।
दास ने सीएनबीसी एशिया को बताया कि क्षमता उपयोग ‘महामारी से पहले के स्तरों के नजदीक बिल्कुल नहीं है’ और ‘अर्थव्यवस्था में सुस्ती’ है। गवर्नर ने कहा, ‘हम लगातार हालात पर नजर बनाए हुए हैं और उचित समय पर कदम उठाएंगे। हमारे हिसाब से अभी उचित समय नहीं आया है।’ उन्होंने साफ किया कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) चाहेगी कि आपूर्ति पक्ष से जुड़े कारक ही अपने आप को संतुलित करें। सरकारी अधिकारियों को इस मुद्दे के समाधान के लिए सुधार के आवश्यक कदम उठाने चाहिए।
दास ने कहा कि आरबीआई अमेरिकी फेडरल रिजïïïर्व की बैठकों और दुनिया के केंद्रीय बैंकों के अन्य नीतिगत उपायों पर कड़ी नजर रख रहा है क्योंकि उनका घरेलू स्थिति पर असर पड़ता है। लेकिन रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति मुख्य रूप से घरेलू वृहद आर्थिक कारकों से तय होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि केंद्रीय बैंक ऐसे बदलाव करने की कोशिश नहीं करेगा, जिससे बाजार को झटका लगे। उन्होंने कहा, ‘हमारे सभी कदम नपे-तुले होंगे, वे सही समय पर और पूरी सतर्कता के साथ उठाए जाएंगे। इनमें उन पहलुओं को ध्यान में रखा जाएगा, जिनका आप जिक्र कर रहे हैं। हम बाजारों को अचानक कोई झटका नहीं देना चाहते हैं।’
गवर्नर ने कहा कि आर्थिक सुधार ‘मामूली संतुलित’ हैं और जब आर्थिक गतिविधियों में सुधार के ‘टिकाऊ और सतत’ होने के संकेत दिखेंगे तो वह शायद ‘हमारे लिए रुख में बदलाव करने का उचित समय’ होगा। केंद्रीय बैंक के गवर्नर को उम्मीद है कि उपभोक्ता मांग में साल के आखिर तक मौजूदा स्तरों के मुकाबले अहम बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा कि महामारी का उपभोग पर बुरा असर पड़ा है और कुल मांग अब भी सामान्य के कहीं नजदीक नहीं है।