बिहार की 40 सीटों को लेकर जो एग्ज़िट पोल के नतीजे बता रहे हैं अगर वो असल नतीजे में तब्दील हो जाते हैं तो इसका सबसे बड़ा सियासी फ़ायदा नीतीश कुमार को होगा और अगर नतीजे एग्ज़िट पोल के परिणाम के उलट होते हैं तो फिर सबसे ज़्यादा नुकसान भी नीतीश कुमार को ही होना है. ये स्थिति तब है जब 2014 से पहले प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में शुमार नीतीश कुमार अब महज नरेंद्र मोदी-अमित शाह की अगुवाई वाली बीजेपी के एक सहयोगी भर हैं और इस बार बिहार के चुनाव में उनका अपना काम और सुशासन बाबू की छवि कहीं नजर नहीं आई. नीतीश कुमार खुद नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगते नजर आए. राष्ट्रीय जनता दल के उपाध्यक्ष और वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी बताते हैं, “पहले तो बिहार में कहा जा रहा था कि देश भर में मोदी के नाम पर वोट मांगे जाएंगे लेकिन बिहार में चेहरा नीतीश कुमार होंगे. पहले एकाध चरण में तो नीतीश ने मोदी का नाम नहीं लिया लेकिन हालात का अंदाज़ा होने के बाद वे अपनी सभाओं में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगने लगे.” चुनावी अभियान के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के तेजस्वी यादव ने इस बात को भी मुद्दा बनाया कि नीतीश कुमार अपनी पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र तक जारी नहीं कर पाए. इस बात की चर्चा भी होती रही कि बीजेपी के दबाव के चलते जदयू अपना घोषणा पत्र जारी नहीं कर सकी. तेजस्वी यादव ने अपने पूरे चुनावी अभियान में जितना बीजेपी को टारगेट किया उससे कहीं ज़्यादा उन्होंने नीतीश कुमार को निशाने पर लिया और उन्हें ‘पलटू चाचा’ कह कर जनादेश का अपमान करने वाला नेता बताया. तेजस्वी कहते हैं, “नीतीश चाचा जो बात कहते थे, उस सबसे पलट गए हैं, ये बिहार की जनता देख रही है. वे कहते थे मिट जाएंगे लेकिन मिलेंगे नहीं, आप देखिए क्या स्थिति है. कहते थे कि राजनीति लोक-लाज से चलने वाली चीज है लेकिन जनादेश का ऐसा अपमान किसने किया होगा. इतना ही नहीं वे बीजेपी का फुल फॉर्म बताते थे बड़का झुट्ठा पार्टी.”