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एनबीएफसी के लिए बनेगी नई नीति

 जयपुर. भारतीय रिजर्व बैंक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों के लिए नए दिशानिर्देश तैयार कर रहा है जिनका मकसद बैंकों की अगुआई वाली इकाइयों के लाइसेंसिंग और कारोबार पर लगाम लगाना, मुख्य कार्याधिकारियों के वेतन-भत्ते निजी बैंकों के मुताबिक बनाना और जोखिम आधारित पर्यवेक्षण (आरबीएस) प्रणाली में क्रमिक बदलाव है। इस बारे में एक प्रस्तुति को अंतिम रूप दिया जा रहा है जिसे आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास के समक्ष रखा जाएगा। गवर्नर से हरी झंडी मिलने के बाद इन दिशानिर्देशों को जारी किया जाएगा। सूत्रों के मुताबिक ये दिशानिर्देश बैंकों और उनकी सहयोगी कंपनियों ने लिए एक व्यापक नियामकीय ढांचे का हिस्सा होंगे। एक सूत्र ने कहा कि बैंकों की अगुआई वाले एनबीएफसी के बारे में रिजर्व बैंक की नीति मोटे तौर पर विवेकाधीन है और इस संबंध में कोई सुनियोजित नीति नहीं है। साथ ही बैंकिंग नियामक उन खामियों को दूर करना चाहता है जिनके तहत बैंक नवोन्मेषी वित्तपोषण ढांचे की आड़ में एनबीएफसी के जरिये ऋण देते रहते हैं।                                                                                                                               बैंकों की अगुआई वाले ऐसे एनबीएफसी पर केंद्रीय बैंक की नजर है जो अपना लेखाजोखा ऋणदाता के रूप में रखती हैं और जिनका संवेदनशील क्षेत्रों में भारी निवेश है। इसमें सबसे बड़ी चिंता कंपनियों के प्रवर्तकों के गिरवी शेयरों के दम पर ऋण का कारोबार है। ऐसे कर्ज से पूंजी और रियल्टी बाजार जोखिम में पड़ सकते हैं। बैंकों ने अपने कर्जदारों के ऋण के भुगतान के लिए नियामकीय लचीलापन हासिल करने के वास्ते एनबीएफसी का इस्तेमाल किया। ऐसे में आशंका यह है कि अगर ये एनबीएफसी संकट में फंस गईं तो प्रवर्तक बैंकों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। एनबीएफसी के मुख्य कार्याधिकारियों के वेतन-भत्ते निजी बैंक के प्रमुखों के मुताबिक बनाए जाएंगे।

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