आरबीआई और भारत सरकार के बीच लंबे समय से सरप्लस फंड को लेकर विवाद चल रहा था। वित्त मंत्रालय चाहता था कि केंद्रीय बैंक वैश्विक मानकों का पालन करे और सरकार को सरप्लस ट्रांसफर करे। इसी मतभेद के बाद उर्जित पटेल ने आरबीआई के गवर्नर पद से इस्तीफा दिया था। उसके बाद शक्तिकांत दास नए गवर्नर नियुक्त किए गए थे। आरबीआई को अपने रिजर्व फंड में कितना पैसा रखना चाहिए और कितनी रकम सरकार को ट्रांसफर करनी चाहिए, यह तय करने के लिए सरकार ने पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में 26 दिसंबर 2018 को 6 सदस्यीय समिति बनाई थी।
क्या है सरप्लस फंड?
देश के कमर्शियल बैंक सीआरआर के रूप में अपनी कुल जमा का कुछ हिस्सा आरबीआई के पास जमा करते हैं। आरबीआई इस जमा पर बैंकों को कोई ब्याज नहीं देता है। इसके अलावा बैंकों पर पेनाल्टी भी लगाता है। इसकी वजह से इसके पास हर साल बड़ी मात्रा में अतिरिक्त धन इकठ्ठा हो जाता है जिसे सरप्लस फंड कहा जाता है। यही अतिरिक्त धन आरबीआई सरकार को भेज देती है। विभिन्न अनुमानों के अनुसार आरबीआई के पास 9 लाख करोड़ रुपये का सरप्लस फंड है। यह आरबीआई के कुल एसेट का लगभग 28 फीसदी है। सरकार का कहना था कि दूसरे बड़े देशों के केंद्रीय बैंक अपने एसेट का 14 फीसदी रिजर्व फंड में रखते हैं।
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क्या था पूरा विवाद
10 दिसंबर 2018 को भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा दिया था। उनका कार्यकाल पूरा होने में भी 9 महीने बाकी थे। उर्जित पटेल और केंद्र सरकार के बीच उस दौरान केंद्रीय बैंक की स्वायत्तता के मसले पर टकराव की स्थिति पैदा हो गई थी। उस दौरान यह खबर आई थी कि सरकार रिजर्व बैंक से 3.60 लाख करोड़ रुपये की मांग कर रही है, जिसका आरबीआई ने विरोध किया था। हालात ये हो गए कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि उन्होंने इस्तीफे को लेकर लिखा था, ”निजी कारणों से मैंने तुरंत ही अपने मौजूदा पद से इस्तीफ़ा देने का फैसला किया है। ये मेरे लिए सम्मान की बात है कि भारतीय रिजर्व बैंक में मुझे कई वर्षों तक कई पदों पर काम करने का मौका मिला। हाल के वर्षों में आरबीआई की उल्लेखनीय उपलब्धियों की वजह आरबीआई के कर्मचारियों, अफसरों की कड़ी मेहनत और प्रबंधन का सहयोग रहा है। मैं इस अवसर पर अपने सहयोगियों और सेंट्रल बोर्ड के निदेशकों के प्रति आभार प्रकट करता हूं। उन्हें अच्छे भविष्य की शुभकामनाएं देता हूं।’
विरल आचार्य के इस्तीफे के पीछे भी थी यही वजह?
पटेल के इस्स्तीफे के 7 महीने के बाद जून में केंद्रीय बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। आचार्य 23 जनवरी 2017 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर बने थे। डिप्टी गवर्नर के पद पर 3 साल का कार्यकाल जनवरी 2020 में पूरा होना था। जिस दौरान सरप्लस फंड को लेकर विवाद चल रहा था तब यह भी खबर चर्चा में थी कि डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए कह दिया था कि वहां की सरकार भी रिजर्व बैंक के खजाने को हथियाना चाहती थी, विरोध में गवर्नर ने इस्तीफा दिया और वहां तबाही आ गई। आचार्य के इस्तीफे के पीछे इस बात को भी जोड़कर देखा गया। हालांकि रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास और उनके डिप्टी विरल आचार्य के बीच राजकोषीय घाटे के आकलन की गणना को भी लेकर विवाद था। विरल आचार्य का मानना था कि इस आकलन के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के कर्ज की गणना भी होनी चाहिए। लेकिन, गवर्नर शक्तिकांत दास इससे सहमत नहीं थे।
रिजर्व फंड तय करने पहले भी बनी थीं समितियां
आरबीआई का रिजर्व फंड तय करने के लिए पहले भी तीन समितियां बनी थीं- वी सुब्रमण्यम (1997), उषा थोराट (2004) और वाई.एस. मालेगाम (2013) समिति। सुब्रमण्यम समिति ने 12% और थोराट समिति ने 18% रिजर्व की सिफारिश की थी। आरबीआई के बोर्ड ने थोराट समिति की सिफारिश नहीं मानी थी। बल्कि, सुब्रमण्यम समिति की सिफारिश को ही जारी रखा था। मालेगाम समिति ने कोई आंकड़ा नहीं बताया था लेकिन कहा था कि आरबीआई को हर साल पर्याप्त रकम ट्रांसफर करनी चाहिए।