TTP खून से संबंधित एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी है, जो दुनिया भर में 10 लाख लोगों में से किसी एक को अपनी चपेट में लेता है, मरीज को कई अंगों में खराबी के कारण बहुत ही गंभीर हालत में अस्पताल में लाया गया था
अहमदाबाद. मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल में डॉक्टरों की टीम ने थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा से पीड़ित एक महिला का सफलतापूर्वक इलाज करके एक बार फिर से चिकित्सा सेवाओं के क्षेत्र में उत्कृष्ट की मिसाल कायम की है। थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा खून से संबंधित एक दुर्लभ और जानलेवा बीमारी है, जो दुनिया भर में 10 लाख लोगों में से किसी एक को अपनी चपेट में लेता है। मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल में हेमेटोलॉजी विभाग के सीनियर कंसल्टेंट, डॉ. कौमिल पटेल इस मरीज का इलाज करने वाली टीम की कमान संभाल रहे थे।
थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा खून से संबंधित एक दुर्लभ बीमारी है, जिसमें पूरे शरीर में छोटे ब्लड वेसल्स में खून के थक्के बनने लगते हैं। इन थक्कों के कारण प्लेटलेट की संख्या में कमी (थ्रोम्बोसाइटोपेनिया) हो सकती है, रेड ब्लड सेल्स नष्ट (हेमोलिटिक एनीमिया) हो सकते हैं और सीमित मात्रा में खून के बहन की वजह से शरीर के अंगों को नुकसान हो सकता है। चिकित्सा जगत में TTP को एक आपात स्थिति माना जाता है, तथा इससे जुड़ी गंभीर जटिलताओं या मौत को रोकने के लिए तुरंत इलाज करना बेहद जरूरी हो जाता है। प्लाज़्मा एक्सचेंज थेरेपी (प्लाज़्माफेरेसिस) इसका प्राथमिक उपचार है, जिसमें बीमारी के लिए जिम्मेदार एंटीबॉडीज़ को शरीर से बाहर निकालकर उन्हें स्वस्थ प्लाज़्मा से बदल दिया जाता है।
61 साल की सीमा देवी इस बीमारी से पीड़ित थीं, जिन्हें हीमोग्लोबिन और प्लेटलेट के गंभीर रूप से कम स्तर के साथ मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल के आपातकालीन सेवा विभाग में लाया गया था। जब उसे डॉक्टरों के पास लाया गया, तो उसमें गंभीर रूप से कमजोरी, त्वचा पर नीले निशान और कई अंगों में खराबी के लक्षण दिखाई दे रहे थे। शुरुआती जाँच और चिकित्सकीय कौशल से जल्दी ही पता चल गया कि वह TTP से पीड़ित थीं। TTP की वजह से मरीज अस्पताल में भर्ती होते समय कई तरह की जटिलताओं का सामना कर रही थीं, जिसका असर उनके फेफड़ों, किडनी, हार्ट और ब्रेन पर भी पड़ा था।
उनका इलाज करने वाले हेमेटोलॉजिस्ट, डॉ. कौमिल पटेल और समर्पित आईसीयू टीम ने यह सुनिश्चित किया कि उनकी बीमारी से जुड़ी हर जटिलता का विशेषज्ञ तरीके से इलाज किया जाए। उनकी हालत को स्थिर करने और अधिक बिगड़ने से रोकने के लिए उपचार के विभिन्न क्षेत्र के चिकित्सा विशेषज्ञों का सहयोग बेहद जरूरी था। प्लाज़्मा एक्सचेंज थेरेपी (प्लाज़्माफेरेसिस) तुरंत शुरू की गई, जो TTP के इलाज का एकमात्र कारगर तरीका है। उपचार की इस विधि में, मरीज के खून से प्लाज़्मा निकाला जाता है और उन्हें स्वस्थ प्लाज़्मा से बदल दिया जाता है। उनकी सेहत में सुधार लाने में पल्मोनोलॉजी, नेफ्रोलॉजी, कार्डियोलॉजी और न्यूरोलॉजी सहित विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों द्वारा साथ मिलकर किए गए प्रयास ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
TTOP से पीड़ित मरीजों का ठीक होना बहुत मुश्किल होता है, जिसमें उन्हें इलाज के लिए 58 दिनों तक लंबे समय तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ता है। इस अवधि के दौरान, मरीज को कई बार प्लाज्मा एक्सचेंज सेशन, गहन निगरानी तथा विशेष अंगों की जटिलताओं के लिए उपचार की प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसमें पीड़ित मरीजों के ठीक होने में चिकित्सकों की टीम की लगातार कोशिश और मरीज की शारीरिक क्षमता सबसे ज्यादा मायने रखती है। अस्पताल से छुट्टी मिलते समय मरीज की सेहत काफी अच्छी होती है, और इस मरीज के मामले में भी ऐसा ही था। अस्पताल से छुट्टी मिलते समय उनके हीमोग्लोबिन एवं प्लेटलेट का स्तर स्थिर था, साथ ही अंगों में खराबी के कोई लक्षण नहीं थे। उनकी सेहत उल्लेखनीय रूप से बेहतर हुई, जो मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल में उपलब्ध अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं तथा अस्पताल द्वारा बड़े पैमाने पर मरीजों की भलाई के लिए अपनाये गए तरीकों की मिसाल है।
डॉ. कौमिल पटेल, सीनियर कंसल्टेंट, हेमेटोलॉजी विभाग, ने कहा, “थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा का इलाज करना चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ बेहतर परिणाम देने वाला भी है। इस बीमारी में बड़े पैमाने पर माइक्रोवैस्कुलर क्लॉटिंग होती है, और अगर इसका तुरंत इलाज नहीं किया जाए तो यह तेज़ी से जानलेवा बन सकती है। हम प्लाज़्मा एक्सचेंज थेरेपी की मदद से इसका प्राथमिक उपचार करते हैं। यह इलाज की एक महत्वपूर्ण विधि है, जो तथा मृत्यु दर को काफी हद तक कम करने के साथ-साथ लंबे समय के परिणामों में सुधार कर सकती है। इसमें बीमारी पैदा करने वाले एंटीबॉडीज़ को शरीर से बाहर निकालकर उन्हें स्वस्थ प्लाज़्मा से बदल दिया जाता है, जो प्लेटलेट्स और रेड ब्लड सेल्स को नष्ट होने से रोकने में मदद करता है। हालाँकि इसके उपचार की प्रक्रिया काफी गहन है और इसके लिए विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत होती है, लेकिन पूरी तरह स्वस्थ होने की संभावना इसे और भी अधिक आवश्यक बना देती है। TTP से पीड़ित किसी मरीज को ठीक होते हुए देखना, सही मायने में हीमेटोलॉजी में सबसे संतोषजनक अनुभवों में से एक है।”
डॉ. कौमिल पटेल ने TTP जैसी खून से संबंधित बीमारियों को ठीक करने में शुरुआत में इसकी पहचान के साथ-साथ तुरंत उपचार शुरू करने की अहमियत पर जोर दिया। उन्होंने कहा, “इसके लक्षणों का संदेह होने पर जल्द-से-जल्द इसकी पहचान करना और बिना देरी के तुरंत इलाज शुरू करना, मरीज के लिए परिणामों को बेहतर बनाने में सबसे ज्यादा मायने रखते हैं। विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों का साथ मिलकर काम करना भी बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि अलग-अलग क्षेत्रों के विशेषज्ञ डॉक्टर जब एकजुट होकर कोशिश करते हैं, तो इस तरह के मामलों की जटिलताओं को संभालने और मरीज के लिए सबसे बेहतर परिणाम सुनिश्चित करने में काफी मदद मिलती है।”
मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल्स के रीजनल डायरेक्टर, गौरव रेखी ने कहा, “मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल बीते कुछ सालों में एक ऐसे स्वास्थ्य सेवा प्रदाता के रूप में उभरकर सामने आया है, जिस पर हर तरह की बीमारियों और चुनौतियों के लिए सबसे बेहतर चिकित्सा समाधान के लिए भरोसा किया जा सकता है। हाल के दिनों में हमने ‘मरीज सर्वोपरि’ के सिद्धांत पर विशेष ध्यान देते हुए नई-नई तकनीकों और टेक्नोलॉजी को पेश किया है। हमें गर्व है कि हमारे डॉक्टरों ने खून से संबंधित इस दुर्लभ बीमारी से पीड़ित मरीज की जान बचाने में कामयाबी हासिल की है। हमें उम्मीद है कि हम हर उस मरीज का इलाज करना जारी रखेंगे, जिन्हें हम पर भरोसा और विश्वास है।”
थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (TTP) खून से संबंधित एक दुर्लभ बीमारी है, और हर दस लाख में 6 से 10 लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। एक अन्य अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि, थ्रोम्बोटिक थ्रोम्बोसाइटोपेनिक परप्यूरा (TTP) बहुत ही ज्यादा दुर्लभ बीमारी है जो अक्सर जानलेवा होती है, और अनुमानित तौर पर हर दस लाख में 3.7 मामले इससे संबंधित (0.0004%) हैं। वर्तमान में, हर साल प्रति दस लाख लोगों में लगभग 3.7 लोगों के TTP से पीड़ित होने के मामले सामने आते हैं। एक अनुमान के अनुसार कुल 100,000 व्यक्तियों में से चार लोगों के इससे पीड़ित होने के मामले सामने आते हैं। iTTP से पीड़ित दो-तिहाई मरीज महिलाएँ हैं। मौजूदा अध्ययन से यह बात सामने आई है कि, भारत के विभिन्न शहरों में नवजात बच्चों में थ्रोम्बोसाइटोपेनिया के प्रसार की दर 3.4% थी।