अहमदाबाद. मैरिंगो सीआईएमएस हॉस्पिटल अहमदाबाद ने विश्व अल्ज़ाइमर दिवस के उपलक्ष्य में लोगों के बीच बड़े पैमाने पर जागरूकता फैलाने की हिमायत की, ताकि इस बीमारी से जुड़े कलंक के खिलाफ लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम आगे बढ़ाया जा सके और इसके बारे में खुले तौर पर जानकारी उपलब्ध कराई जा सके। दुनिया 20 सितंबर, 2024 को विश्व अल्ज़ाइमर दिवस मनाने की तैयारी कर रही है, और इस मौके पर अस्पताल ने ग्लोबल कम्युनिटी के साथ मिलकर अल्ज़ाइमर से पीड़ित लोगों और उनके परिवारों के बीच जागरूकता बढ़ाने और उन्हें सहारा देने का बीड़ा उठाया है।
अल्ज़ाइमर एक ऐसी बीमारी है जो दिमाग पर धीरे-धीरे असर डालती है और इंसान की याददाश्त तथा सोच-समझकर काम करने की क्षमता को कमज़ोर बना देती है। यह बुजुर्गों में डिमेन्शिया का सबसे बड़ा कारण है और दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करता है। हालाँकि इसका कोई इलाज नहीं है, लेकिन इसके बारे में जागरूकता बढ़ाने और रोकथाम के उपायों को अपनाने से सार्थक प्रभाव पड़ सकता है। मस्तिष्क में कुछ खास तरह के प्रोटीन के जमा होने पर अल्ज़ाइमर होता है, जिससे ‘प्लाक’ और ‘टेंगल्स’ नामक संरचनाएँ बन जाती हैं। इससे नर्व सेल्स, यानी तंत्रिका कोशिकाओं के बीच संपर्क टूट जाता है और अंत में ये कोशिकाएँ मर जाती हैं और मस्तिष्क में मौजूद टिश्यू नष्ट होने लगते हैं।
याददाश्त का कमज़ोर होना अल्ज़ाइमर रोग का सबसे मुख्य लक्षण है, जिससे रोज़मर्रा की ज़िंदगी पूरी तरह अस्त-व्यस्त हो जाती है, योजना बनाना या समस्याओं को हल करना मुश्किल हो जाता है, जाने-पहचाने काम को पूरा करने में कठिनाई होती है, समय या स्थान को लेकर मन में हमेशा उलझन रहती है, दिखाई देने वाली चीजों को समझने में परेशानी होती है, बोलने या लिखने में शब्दों को लेकर नई समस्याएँ आती हैं, साथ ही चीजें गलत जगह रखना और रास्ता भूल जाना, निर्णय लेने की क्षमता में कमी या अक्षमता, काम-काज सामाजिक मेलजोल से दूर रहना, तथा मूड और व्यक्तित्व में बदलाव भी इसके लक्षणों में शामिल हैं।
हालाँकि अल्ज़ाइमर के जोखिम में उम्र और आनुवंशिक कारकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है, परंतु लाइफस्टाइल से जुड़े घटक भी मस्तिष्क की सेहत पर काफी असर डाल सकते हैं। नियमित रूप से व्यायाम करने के अलावा दिमाग में खून एवं ऑक्सीजन के प्रवाह को बढ़ाने से अल्ज़ाइमर की रोकथाम में मदद मिलेगी; फलों, सब्जियों, साबुत अनाज, कम वसा वाले प्रोटीन और स्वस्थ वसा (जैसे मेडिटरेनियन डाइट) से भरपूर आहार भी इसके जोखिम को कम कर सकते हैं; इसके अलावा पढ़ने, पहेलियाँ सुलझाने, या नए कौशल या भाषा सीखने जैसी गतिविधियों से जुड़ें, क्योंकि ऐसी गतिविधियों से सोच-समझकर काम करने की क्षमता को प्रोत्साहन मिलता है। यह सबसे अहम चीज़ है जो हमें अल्ज़ाइमर रोग से दूर रहने में मदद कर सकती है। इंसान के लिए सामाजिक मेल-जोल बेहद जरूरी है, क्योंकि व्यक्तिगत रूप से सामाजिक जुड़ाव (सोशल मीडिया पर नहीं) मस्तिष्क की सेहत और सोच-समझकर काम करने की क्षमता को बढ़ावा देता है। अच्छी नींद लेना भी इसे प्रभावित करने वाले कारकों में शामिल है इसलिए हर रात 7 से 8 घंटे तक गहरी नींद सोने का लक्ष्य रखें; साथ ही तनाव को नियंत्रित करें, क्योंकि लंबे समय तक बरकरार रहने वाला तनाव मस्तिष्क को नुकसान पहुँचा सकता है, इसलिए ध्यान या योग जैसी तनाव कम करने वाली तकनीकों का अभ्यास करें। आनुवंशिक प्रवृत्ति वाले व्यक्ति को ब्लड-प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटीज के प्रति सचेत रहकर और उन्हें नियंत्रण में रखकर दिल से भी जुड़ी बीमारियों के जोखिम को भी नियंत्रण में रखना होगा; इसके लिए उन्हें धूम्रपान और अत्यधिक शराब के सेवन से बचना होगा; अपनी पूरी सेहत और सोच-समझकर काम करने की क्षमता की निगरानी के लिए नियमित रूप से डॉक्टर के पास जाना होगा।
फिलहाल सर्जरी की ऐसी कोई तकनीक नहीं है जिसके ज़रिये अल्ज़ाइमर रोग का उपचार किया जा सके, उसे ठीक कर सके या इसे बढ़ाने से रोक सके। हालाँकि, धीरे-धीरे सर्जरी की कुछ प्रक्रियाओं एवं तकनीकों का विकास हो रहा है, जिनमें इस बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने या मरीजों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने पर ध्यान दिया जाता है। डीप ब्रेन स्टिमुलेशन (डीबीएस): डीबीएस में न्यूरॉन (तंत्रिकाओं) की गतिविधि को नियंत्रित करने के लिए मस्तिष्क के कुछ खास हिस्सों में इलेक्ट्रोड्स को इम्प्लांट किया जाता है। सामान्य तौर पर इसका उपयोग पार्किंसंस रोग में किया जाता है, तथा अल्ज़ाइमर के मरीजों की याददाश्त और सोच-समझकर काम करने की क्षमता को बेहतर बनाने के लिए एक संभावित उपचार के रूप में इसका पता लगाया जा रहा है। शुरुआती अध्ययनों में कुछ आशाजनक परिणाम मिले हैं, लेकिन अभी भी इस पर जाँच चल रही है। नॉर्मल प्रेशर हाइड्रोसिफ़लस (एनपीएच) के लिए शंट सर्जरी:
कुछ दुर्लभ मामलों में, अल्ज़ाइमर के मरीजों में नॉर्मल प्रेशर हाइड्रोसिफ़लस भी हो सकता है, और ऐसी स्थिति में मस्तिष्क में फ्लूड का निर्माण होने लगता है। शंट सर्जरी की मदद से अतिरिक्त फ्लूड को निकालकर मस्तिष्क पर पड़ने वाले दबाव को कम किया जा सकता है, जिससे याददाश्त खोने और भ्रम जैसे लक्षणों को ठीक करने में मदद मिल सकती है। हालाँकि इस तकनीक से अल्ज़ाइमर का सीधे तौर पर इलाज नहीं किया जाता है। वेगस नर्व स्टिमुलेशन (वीएनएस): इस तकनीक में इम्प्लांट किए गए डिवाइस के माध्यम से वेगस नर्व को उत्तेजित किया जाता है। मस्तिष्क की प्लास्टिसिटी और याददाश्त को बढ़ाकर अल्ज़ाइमर के मरीजों में सोच-समझकर काम करने की क्षमता को बेहतर बनाने के लिए वीएनएस की जाँच की जा रही है। सर्जरी के ये सभी तरीके अभी भी प्रायोगिक चरण में हैं या इनका प्रयोग बेहद सीमित दायरे किया जाता है। आज प्राथमिक तौर पर सर्जरी के बिना अल्ज़ाइमर का उपचार किया जाता है, जिसमें दवा, लाइफस्टाइल में बदलाव और मरीजों की देखभाल पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हालाँकि, सर्जिकल तकनीकों में किए जा रहे शोध का उद्देश्य बीमारी को बेहतर ढंग से समझना और उसे नियंत्रित करना है।
“डिमेंशिया को जानें, अल्ज़ाइमर को जानें”, विश्व अल्ज़ाइमर दिवस 2024 की थीम है। ‘इंसान की लंबी उम्र की क्रांति’ और ‘इंसान की बढ़ती उम्र का टाइम बम’ को ध्यान में रखते हुए, डिमेंशिया जैसी गंभीर परेशानी को “हमारी सदी की महामारी” का नाम दिया गया है। ऐसा अनुमान है कि दुनिया भर में 57 मिलियन से अधिक लोग डिमेंशिया से पीड़ित हैं। अल्ज़ाइमर का मरीजों के साथ-साथ उनके परिवारों पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए, समय पर कार्रवाई, डायग्नोसिस और देखभाल अल्ज़ाइमर से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने में बेहद कारगर साबित हो सकती है। हम विश्व अल्ज़ाइमर दिवस 2024 मना रहे हैं, और इस अवसर पर कार्रवाई के लिए हमारी पुकार बिल्कुल स्पष्ट है: यह डिमेंशिया पर कार्रवाई करने और अल्ज़ाइमर पर कार्रवाई करने का समय है।
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि, अल्ज़ाइमर हमारे समय की सबसे गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों में से एक के रूप में उभरकर सामने आया है। दुनिया भर में हर पाँच सेकंड में अल्ज़ाइमर का एक नया मामला सामने आता है। फिलहाल पूरी दुनिया में अल्ज़ाइमर से पीड़ित लोगों की संख्या 40 मिलियन से अधिक है, जिनमें से लगभग 60% मामले 65 साल से ज़्यादा उम्र के व्यक्तियों में होते हैं। विशेषज्ञों का अनुमान है कि, अगले दशक में यह संख्या तेज़ी से बढ़कर 80 मिलियन तक पहुँच सकती है।