नई दिल्ली। किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने के लिए देश भर के किसान और आदिवासी 22 जुलाई को जतंर मंतर पर जुटेंगे। किसानों के दो प्राइवेट बिलों को पास कराने के लिए 3 अगस्त, 2019 को सभी जिला मुख्यालयों पर रैली आयोजित कर देश के राष्ट्रपति को ज्ञापन सौपेंगे। आल इंडिया किसान सभा (एआईकेएस) की अखिल भारतीय किसान परिषद ने हैदराबाद में 12 से 14 जुलाई, 2019 किसानों की स्थिति पर चर्चा की। इसमें भविष्य की रुप रेखा तैयार की गई। एआईकेएस के अध्यक्ष अशोक दलवई ने बताया कि 13 फरवरी, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के कारण लाखों आदिवासियों की बेदखली का खतरा है।
उच्चतम न्यायालय 24 जुलाई, 2019 को विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करने वाला है। अत: भाजपा सरकार भारतीय वन अधिनियम, 1927 में संशोधन का प्रस्ताव कर रही है। इसके विरोध में 1 और 2 जुलाई, 2019 को दिल्ली में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय परामर्श कर 22 जुलाई को गांव, ब्लॉक, जिले में सरकारी कार्यों और वन अधिनियम के प्रस्तावित संशोधनों की निंदा करते हुए विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का फैसला किया गया है। इसके लिए देश के विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को सुप्रीम कोर्ट में वन अधिकार अधिनियम और आदिवासियों के पक्ष में हस्तक्षेप करने के लिए लिखा गया है।अत: एआईकेएस ने 22 जुलाई, 2019 को देशभर में आदिवासी अधिकार राष्ट्रीय मंच, अखिल भारतीय कृषि श्रमिक संघ और भूमि अधिकार आंदोलन के घटकों के साथ संयुक्त रूप से दिल्ली के जंतर मंतर पर सुबह 11:30 बजे विरोध प्रदर्शन करने का फैसला किया है।
किसानों के दोनों बिलों पर संसद में चर्चा की मांग
उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के आह्वान पर 3 अगस्त, 2019 को सभी जिला कलेक्टरों पर रैलियों को आयोजन करके देश के राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपेंगे जिसमें मांग की जायेगी कि किसान संसद द्वारा पारित किसानों के दो प्राइवेट विधेयकों पर संसद में चर्चा की जाए। उन्होंने बताया कि किसानों के दो प्रावइेट बिल (स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सभी फसलों के मूल्य तय करने के साथ ही खरीद सुनिश्चित) और दूसरा किसानों को सभी ऋणों से मुक्ति है। उन्होंने बताया कि संसद में निजी बिल पारित किए जाते हैं इसलिए राष्ट्रपति से किसानों के दोनों बिलों पर संसद में चर्चा कराने की मांग की जायेगी।
अभूतपूर्व सूखे को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए
उन्होंने बताया कि एआईसीसी की बैठक में देश में असाधारण सूखे की स्थिति पर चर्चा हुई और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों की उदासीनता पर गंभीर चिंता व्यक्त की गई। उन्होंने बताया कि एआईसीसी ने केंद्र सरकार से मांग की है कि अभूतपूर्व सूखे को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाए और फसल क्षति के मुआवजे, मुफ्त राशन का प्रावधान करने के साथ ही कर्ज की माफी और मनरेगा के तहत रोजगार सृजन सहित प्रभावी राहत उपायों किए जाए। बीमा कंपनियों की संदिग्ध भूमिका जो किसानों के दावों का निपटारा नहीं कर रही हैं और भारी मुनाफा कमा रही हैं, उनकी भी आलोचना की गई। सूखे से निपटने के लिए एआईकेएस के कार्यकर्ता राहत कार्यों में शामिल होंगे।
पांच सितंबर को ट्रेड यूनियनों के लिए साथ मिलकर करेंगे विरोध
एआईकेएस ने मज़दूरों के साथ एकजुट होने और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार द्वारा मौजूदा श्रम कानूनों में लाए जा रहे बदलावों से लड़ने का संकल्प लिया है।केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा 10 जुलाई, 2019 को व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और कामकाजी सशर्त विधेयक 2019 को मंजूरी दी गई। इसके तहत दिन के काम के घंटे को 14 घंटे तक बढ़ाने की अनुमति देने का निर्णय अमानवीय है। अत: मजदूर विरोधी होने के कारण एआईकेएस ने ट्रेड यूनियनों के साथ मिलकर 5 सितंबर, 2019 को देशव्यापी विरोध का आह्वान किया है। एआईसीसी की बैठक में असम और आसपास के राज्यों में बाढ़ की गंभीर स्थिति पर चर्चा की गई और पीड़ितों को सरकार से राहत दिलाने का आह्वान किया गया।