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International Seminar on Cultural Heritage and Sustainable Management in Indian Knowledge System organized at IIM Sambalpur

आईआईएम संबलपुर में भारतीय ज्ञान प्रणाली में सांस्कृतिक विरासत और सतत प्रबंधन पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन

संबलपुर. आईआईएम संबलपुर के रंगवती सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन कल्चर एंड सस्टेनेबल मैनेजमेंट ने भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICSSR), नई दिल्ली के सहयोग से एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की। संगोष्ठी का विषय था “स्वतंत्रता संग्राम के अनजान पहलू; सांस्कृतिक विरासत और भारतीय ज्ञान प्रणाली में सतत प्रबंधन”।

 

इस संगोष्ठी का उद्देश्य पश्चिमी ओडिशा के स्वतंत्रता संग्राम के कम चर्चित पहलुओं को सामने लाना था, जिसमें वीर सुरेंद्र साईं का संघर्ष और कुड़ोपाली हत्याकांड शामिल हैं। इसके अलावा, इस क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और इसके सतत प्रबंधन में योगदान पर भी चर्चा की गई। इस मंच के माध्यम से शैक्षणिक शोधपत्र, मुख्य वक्तव्य और प्रस्तुतीकरण हुए, जिनका उद्देश्य स्वदेशी ज्ञान प्रणाली को दस्तावेज़ी रूप देना, ऐतिहासिक घटनाओं को समकालीन सतत विकास के साथ जोड़ना और भारत की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक धरोहर पर अंतरविषयक शोध को बढ़ावा देना था।

इस कार्यक्रम में दुनिया भर के प्रतिष्ठित विशेषज्ञों ने भाग लिया, जिनमें शामिल थे:

• प्रो. डॉ. फीबी कौंडौरी, चेयर, यूएनएसडीएसएन ग्लोबल क्लाइमेट हब, ग्रीस
• प्रो. ओटावियानो कानुटो, द ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन और पूर्व उपाध्यक्ष, विश्व बैंक, अमेरिका
• डॉ. तमर बग्रातिया, त्बिलिसी स्टेट यूनिवर्सिटी, जॉर्जिया
• प्रो. दिल रहुत, उपाध्यक्ष, एशियन डेवलपमेंट बैंक इंस्टीट्यूट, जापान
• प्रो. महादेव जैसवाल, निदेशक, आईआईएम संबलपुर

अंतरराष्ट्रीय वक्ताओं ने आईआईएम संबलपुर के रंगवती सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन कल्चर एंड सस्टेनेबल मैनेजमेंट के प्रयासों की सराहना की, जो सांस्कृतिक और सतत प्रबंधन के कम खोजे गए क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। आईआईएम संबलपुर के निदेशक, प्रो. महादेव जैसवाल ने उद्घाटन भाषण में कहा, “रंगवती सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन कल्चर एंड सस्टेनेबल मैनेजमेंट की स्थापना के साथ, आईआईएम संबलपुर ने सांस्कृतिक और सतत प्रबंधन पर उत्कृष्ट शोध को समर्थन देने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। यह केंद्र बुनकर समुदाय की समावेशिता, स्वतंत्रता संग्राम के अज्ञात पहलू, पश्चिमी ओडिशा में सांस्कृतिक एवं सतत प्रबंधन के विभिन्न रुझानों पर शोध कर रहा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) ने भी बहु-अनुशासनिक दृष्टिकोण के माध्यम से नए ज्ञान के सृजन और प्रचार-प्रसार पर बल दिया है, जिसे यह केंद्र आगे बढ़ा रहा है।”

उन्होंने आगे कहा, “यह केंद्र उच्च गुणवत्ता वाले शोध, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों एवं सम्मेलनों के आयोजन, और नए ज्ञान के सृजन, प्रचार और प्रकाशन में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इसे भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय का समर्थन प्राप्त है।” कार्यक्रम में दो प्रमुख सत्र आयोजित किए गए जिसमे “स्वतंत्रता संग्राम और संस्कृति” में डॉ. आलोक भोई, बीरेन्द्र झंकार, और डॉ. बिभुदत्त मिश्रा जैसे विशेषज्ञों ने पश्चिमी ओडिशा के अज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के संघर्षों पर प्रकाश डाला। वही “सांस्कृतिक विरासत और सतत प्रबंधन” में श्री दुखी सेवक साहू, श्री राजेश झंकार, डॉ. श्रवण कुमार बाग, और श्री भवानी शंकर भोई ने स्वदेशी विरासत और समकालीन सतत विकास के बीच संबंधों पर अपने विचार प्रस्तुत किए।

 

इस अवसर पर एक शोध रिपोर्ट और संकलन (कॉम्पेंडियम) भी जारी किया गया। संगोष्ठी में 100 से अधिक विद्वानों, शोधकर्ताओं और छात्रों ने भाग लिया, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के कम ज्ञात पहलुओं और सांस्कृतिक विरासत के सतत प्रबंधन में योगदान पर गहन चर्चा की।
कार्यक्रम का समन्वय डॉ. सुजीत कुमार प्रसूथ, आईआईएम संबलपुर ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. हेमचंद्र पड़हान, आईआईएम संबलपुर ने दिया।

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