कूकस स्थित कान्हा होटल्स इको सेंसेटिव जोन में होने और नाहरगढ़ सेंचूरी से 95 मीटर दूरी होने के बाद भी जयपुर विकास प्राधिकरण ने दिया अप्रूवल
जयपुर. शहर के कूकस क्षेत्र में भूखण्ड संख्या 54,55,56, 54/2/2 ग्राम चिमनपुरा तहसील आमेर पर कान्हा होटल्स एंड स्पा प्राइवेट लिमिटेड द्वारा करोड़ों रूपए निवेश कर पांच सितारा होटल तैयार किया गया और टाटा कम्पनी के ताज ग्रुप को लीज पर दे दिया गया। अब चार माह पहले पर्यावरण मंत्रालय की ओर से आए पत्र ने जेडीए और वन विभाग की कार्यप्रणाली पर कई सवाल खड़े कर दिए है। होटल इको सेंसेटिव जोन में था बावजूद इसे जेडीए की ओर से अप्रूवल दिया गया। इसके बाद भी वन विभाग के कई अधिकारियों ने आपत्ति भी जताई लेकिन उच्च अधिकारियों ने इसे कोई नेगेटिव इंपेक्ट नहीं बताते हुए इसे मंजूरी दे दी। जेडीए भी पांच वर्ष तक खामोश कैसे रहा? बीपी यानि बिल्डिंग प्लान एप्रूवल की 266वीं बैठक में भी कान्हा होटल्स एंड स्पा को एजेंडा में शामिल ही नहीं किया गया है लेकिन पूर्णता प्रमाण पत्र में इसी बैठक का हवाला दिया गया है।
इको सेंसेटिव जोन में माना गया
राष्टीय वन्यजीव बोर्ड की स्थायी समिति की 78वीं बैठक 22 फरवरी को हुई थी, जिसमें दिल्ली बाइपास पर इको सेंसेटिव जोन में बने कान्हा होटल एंड स्पा प्राइवेट लिमिटेड (होटल ताज आमेर) को इको सेंसेटिव जोन में माना गया। बैठक में बिल्डिंग निर्माण को ध्वस्त कर हटाने का फैसला किया गया है। इसके बाद 18 जून को इको सेंसेटिव जोन मॉनिटरिंग कमेटी की बैठक हुई। बैठक में निर्णय की पालना को लेकर जेडीए को कार्रवाई के लिए कहा गया। वन विभाग ने ही पहले आमेर तहसील के चिमनपुरा गांव के खसरा संख्या 54, 55 और 56 में 0.0845 हैक्टेयर क्षेत्र में कान्हा होटल्स एंड स्पा प्राइवेट लिमिटेड की परियोजना के निर्माण का प्रस्ताव भेजा था। इसमें होटल ताज समूह को लीज पर दिया गया था।
एक किलोमीटर तक परमिशन नहीं
वन्यजीव अभयारण्य की सीमा से एक किलोमीटर की दूरी से परे इको-सेंसिटिव जोन की सीमा तक, नए होटल और रिसॉर्ट्स की स्थापना केवल पर्यटन मास्टर के अनुसार इकोटूरिज्म सुविधाओं के लिए पूर्व-निर्धारित और नामित क्षेत्रों में ही की जाएगी। ऐसे में कान्हा ग्रुप द्वारा बनाई गई होटल इसी सेंसेटिव जोन में आ रही है, यही कारण है कि प्रशासन इसको लेकर सक्रिय है। होटल की बिल्डिंग का निर्माण कछ साल पहले हुआ था। इसकी शरुआत साल 2023 में हुई।
नाहरगढ़ सेंचूरी में आने के बाद भी कैसे मिला अप्रूवल
होटल की जमीन नाहरगढ़ सेंचूरी से मात्र 96 मीटर की दूरी पर है बावजूद इस होटल को सभी तरह की परमिशन कैसे मिल गई? इस मामले में वन विभाग पर जिस तरह से सवाल खड़े हो रहे हैं उसी तरह जेडीए भी जिम्मेदार है कि इको सेंसेटिव जोन की पूरी जानकारी और रिपोर्ट क्यों नहीं ली गई।
अब पर्यावरण मंत्रालय ने प्रोजेक्ट को किया रिजेक्ट
किसी भी फोरेस्ट जोन की जमीन/प्रोजेक्ट को लेकिन पर्यावरण मंत्रालय से क्लिन चीट लेनी अनिवार्य है और कान्हा ग्रुप के इस होटल को पर्यावरण मंत्रालय की ओर से रिजेक्ट कर दिया गया है। गौरतलब है कि 4 मार्च 2024 को मंत्रालय की ओर से आए पत्र में इस प्रोजेक्ट की मंजूरी निरस्त की जा चुकी है। पत्र में उस बैठक का हवाला दिया गया है जिसकी चेयरमैनशिप वन मंत्री की मौजूदगी में हुई थी उस बैठक में भी इस प्रोजेक्ट को मना कर दिया गया है।
अब मिनिस्ट्री हुई सक्रिय
कान्हा के मामले में चार माह पहले पर्यावरण वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की ओर से राज्य के एडिशनल चीफ सैक्रेट्री फोरेस्ट, एनवायरमेंट एंड क्लाइमेट चैंज की एडिशनल चीफ सैक्रेट्री को पत्र जारी किया गया जिसमें कान्हा होटल्स एंड स्पा लिमिटेड प्रोजेक्ट को गलत बताया गया ओर साफ लिखा गया कि पर्यावरण मंत्राी के विभ चेयरमैनशिप में आयोजित बैठक जो कि 22 फरवरी को हुई थी जिसमें इस प्रोजेक्ट को रिजेक्ट किया गया है।
वन विभाग की भूमिका संदिग्ध
जयपुर जू के डीसीएफओ ने एक तरफ तो प्रोजेक्ट को इको सेंसेटिव जोन में माना लेकिन दूसरी तरफ क्लीन चीट भी दे डाली। जयपुर जू के डिप्टी कन्जर्वेटर आॅफ फोरेस्ट सुर्दशन शर्मा ने साइट इंसपेक्शन रिपोर्ट में ये क्लियर तो किया कि प्रोजेक्ट से नाहरगढ़ सेंचूरी की दूरी 97 मीटर है और ये प्रोजेक्ट इको सेंसेटिव जोन में है लेकिन उसके बाद रिपोर्ट में ये भी लिख दिया कि प्रोजेक्ट से कोई नेगेटिव इंपेक्ट नहीं होने वाला है और क्षेत्र कोरिडोर में नहीं है और प्रोजेक्ट को मंजूरी डे डाली।
एनजीटी में की जाएगी शिकायत
एनजीओ वी द पिपल की फाउंडर मंजू सुराणा ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को लेकिन जिन—जिन अधिकारियों ने मिलीभगती कर वाइल्ड लाइफ क्लियरेेंस किया है उसको लेकर एनजीटी में शिकायत की जाएगी साथ ही सरकार से प्रोजेक्ट को तोड़ने के लिए भी अर्जी लगाई जाएगी। सुराणा ने बताया कि इससे पहले भी वो पर्यावरण को बचाने के लिए कार्य करती आई हैं और ये वाइल्ड लाइफ सेंचूरी जोन में आने के बाद भी फोरेस्ट और जेडीए अधिकारियों की मिलीभगती से प्रोजेक्ट तैयार कर दिया गया जबकि इसको लेकर दो साल पहले ही केन्द्र मंत्री की ओर से आपत्ति दर्ज कराई गई थी।