कानपुर. कानपुर में होली दहन से रंग खेलने का जो सिलसिला शुरू होता है वह करीब एक हफ्ते चलता है। व्यापारियों के यहां आजादी के दीवाने और क्रांतिकारी डेरा जमाते और आंदोलन की रणनीति बनाते थे।
मैदान में जलती थी होली
फागुन की रंगीन हवाएं सबको मस्त कर देती हैं। हालांकि पहले और आज की होली में वक्त के साथ कई तरह के बदलाव होते गए है। अब तो हर गली मुहल्ले के नुक्कड़ पर होली जलाई जाती है। तब किसी एक मैदान में होली जलती थी और होली जलने के दौरान सब अपने-अपने घरों से निकलकर मैदान की ओर जाते थे।
मेलजोल और सौहार्द का प्रतीक
पहले लोग खूब फाग गाते थे। और जब से गंगा मेला शुरू हुआ तब से तो भले ही होली वाले दिन कम रंग चले लेकिन गंगा मेला शामिल होने सब के सब हटिया पहुंच जाया करते थे।