नई दिल्ली। भारत ने वोडाफोन कर मामले (Vodafone Tax Cases) में (indian Government and Vodafone) अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय के आदेश को सिंगापुर की एक अपील अदालत में चुनौती दी है। सरकार ने 22,100 करोड़ रुपये के इस कर विवाद में संप्रभुता को आधार बना कर अपील दायर की है। दिलचस्प बात है कि सरकार ने यह अपील तब दायर की जब इसकी समयसीमा लगभग समाप्त होने वाली थी। बुधवार को यह समय सीमा समाप्त हो गई।
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाट ने भारत के खिलाफ फैसला सुनाया
इससे पहले नीदरलैंड की राजधानी द हेग (The Hague, the capital of the Netherlands) में एक अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाट (International arbitration arbitration) ने सितंबर में ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन (UK telecom company Vodafone) के साथ चल रहे विवाद में भारत के खिलाफ फैसला सुनाया था। भारत को केयर्न कर विवाद मामले में भी झटका लगा है। भारत सरकार ने पिछली तारीख से लागू होने वाले कराधान के तहत केयर्न से भी कर की मांग की थी, लेकिन इसमें भी निर्णय सरकार के पक्ष में नहीं आया। भारत को ब्रिटेन की इस कंपनी को क्षति-पूर्ति के लिए 8,842 करोड़ रुपये भुगतान करने के लिए कहा गया है।
भारत ने सिंगापुर की एक अपील अदालत में अपील दायर की
वोडाफोन मामले में सरकार की पहल पर एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, ‘वोडाफोन कर मामले (Vodafone Tax Cases) में आए निर्णय को चुनौती देने के लिए भारत ने सिंगापुर की एक अपील अदालत में अपील दायर की है। भारत सरकार को कर लगाने का संप्रभु अधिकार है और कोई निजी व्यक्ति इस मसले पर कोई निर्णय नहीं ले सकता है। यह मामला द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) और अंतरराष्ट्रीय पंचाट के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है।’
वोडाफोन मामले में सरकार पर करीब 75 करोड़ रुपये देनदारी
अंतरराष्ट्रीय पंचाट (International arbitration arbitration) के निर्णय के अनुसार भारत सरकार को वोडाफोन को कानूनी प्रक्रिया पर आए खर्च का 60 प्रतिशत और समिति में मध्यस्थ की नियुक्ति पर आए 6,000 यूरो खर्च का भुगतान करने के लिए कहा गया है। इस तरह, वोडाफोन मामले में सरकार पर करीब 75 करोड़ रुपये देनदारी बन जाती है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि वोडाफोन मामले में अपील करने के सरकार के निर्णय से विदेशी निवेशकों (Foreign investors) के बीच गलत संदेश जाएगा। कुछ दूसरे विशेषज्ञों का कहना है कि निवेशकों को अब अपने निर्णय पर विचार करना पड़ सकता है क्योंकि द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआईटी) के तहत कर विवाद नहीं आते हैं।