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सरकार समर्थन मूल्य से 17 फीसदी नीचे भाव पर बेच रही है सरसों

नई दिल्ली. राजस्थान के साथ ही हरियाणा की उत्पादक मंडियों में रबी तिलहन की नई फसल की आवक बढ़ने लगी है लेकिन सार्वजनिक कंपनी नेफेड न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में सरसों 17 फीसदी तक नीचे भाव पर बेच रही है। अत: जब सरकार ही समर्थन मूल्य से नीचे भाव बेचेगी तो फिर किसानों को कैसे मिलेगा सरसों का उचित दाम? नेफेड के अनुसार निगम ने 11 मार्च को 6948 टन सरसों 3501 से 3559 रुपये प्रति क्विंटल के भाव हरियाणा और राजस्थान की मंडियों में सरसों बेची है जबकि केंद्र सरकार ने चालू रबी विपणन सीजन 2019-20 के लिए सरसों  एमएसपी 4,200 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। अत: नई सरसों की आवक शुरू होने के बाद भी नेफेड द्वारा बिक्री जारी है। नेफेड ने पिछले रबी विपणन सीजन में समर्थन मूल्य पर 8.78 लाख टन सरसों की खरीद की थी, जिसमें से 8.64 लाख टन की बिक्री की जा चुकी है।

एमएसपी से 400 से 700 रुपये नीचे बिक रही है सरसों

राजस्थान के अलवर जिले की खैरथल मंडी में सरसों बेचने आए किसान पुष्कर राज ने बताया कि मंडी में उनकी सरसों 3500 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिकी है। अलवर मंडी के सरसों कारोबारी सुरेश अग्रवाल ने बताया कि मंडी में सरसों की दैनिक आवक 18 से 20 हजार बोरियों की हो रही है। मंडी में 42 फीसदी कंडीशन (42 फीसदी तेज) की सरसों के भाव 3500 से 3800 रुपये और नोन कंडीशन की सरसों के भाव 3000 से 3400 रुपये प्रति क्विंटल है। उन्होंने बताया कि आगे नई सरसों की आवक और बढ़ेगी अत: सरकारी खरीद शुरू नहीं हुई तो भाव में और गिरावट आयेगी।

राज्य के कोटा संभाग से 15 मार्च से होगी खरीद शुरू

राज्य के कृषि निदेशालय के अनुसार चालू रबी में राज्य से एमएसपी पर 8.50 लाख टन सरसों की खरीद का लक्ष्य रखा है जबकि चालू रबी सीजन 2018-19 में राज्य में 35.88 लाख टन सरसों के उत्पादन का अनुमान है। राज्य की मंडियों से सरसों की समर्थन मूल्य पर खरीद पहली अप्रैल से शुरू होगी लेकिन कोटा लाईन की मंडियों से 15 मार्च से खरीद शुरू की जायेगी।

उत्पादन ज्यादा होने का अनुमान

कृषि मंत्रालय के दूसरे आरभिक अनुमान के अनुसार फसल सीजन 2018-19 में सरसों का उत्पादन बढ़कर 83.97 लाख टन होने का अनुमान है जबकि पिछले साल 75.40 लाख टन का उत्पादन हुआ था। मंत्रालय के अनुसार चालू रबी में सरसों की बुवाई बढ़कर 69.37 लाख हेक्टेयर में हुई है जबकि पिछले साल 67.06 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई हुई थी।

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