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गिरती कीमत और अधिक पैदावार के संकट में फंस गया किसान

 

 

राजस्थान के हाड़ौती (कोटा, झालावाड़ और बूंदी) इलाके से किसानों की आत्महत्या की खबरें आई थी। राजस्थान के बाकी हिस्सों के मुकाबले यहां पानी की स्थिति ठीक-ठाक है इसलिए किसानों ने यहां नकदी फसलों की ओर रुख किया और लहसुन उगाने लगे। 2016 में उन्हें 60 रुपए किलो का भाव मिला था, जो 2017 में 30 रुपये रह गया लेकिन इस साल तो यह 12 से 14 रुपये किलो पर आ गया। यहां किसानों ने ड्रिप इरीगेशन पर अच्छा खासा निवेश किया है। जब फसल का दाम तीन साल में एक-चौथाई रह जाए तो किसानों की हालत का आप अंदाजा लगा सकते हैं।

दालों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे चल रहे हैं, वह भी तब जब सरकारी स्टाक में भी 40 लाख टन दाल है। खपत से 100 लाख टन चीनी के स्टॉक ज्यादा होने के चलते गन्ना किसानों का हाल सबके सामने है तो एक समय उपभोक्ताओं को रुलाने वाला प्याज अब महाराष्ट्र के किसानों को रुला रहा है क्योंकि मिट्टी के भाव बिक रहे प्याज के चलते वह भारी संकट में हैं।- पंजाब के युवा डेयरी किसानों का हाल दूध की खरीद कीमत में भारी गिरावट के चलते बहुत बुरा हो गया है।

जयपुर. आज हर राज्य में किसानों की हालत पतली बनी हुई है। वह भी तब जब पैदावार के नए रिकॉर्ड बन रहे हैं। यानी किसान गिरती कीमतों और अधिक पैदावार के ऐसे संकट में फंस गया है, जिसका हल सरकार नहीं कर पा रही है। दर्जनों योजनाओं की घोषणा और पुरानी योजनाओं में बदलाव का कोई नतीजा नहीं निकल रहा है। सरकार अपने अंतिम साल में है। देश का राजनैतिक  इतिहास रहा है कि पांचवें साल में मजबूत से मजबूत बहुमत वाली सरकार के सामने संकट और चुनौतियां बढ़ी हैं जो उसे सत्ता में लौटने के रास्ते में बड़ी बाधा बनी हैं। इस बात को प्रधानमंत्री से लेकर उनकी पार्टी के रणनीतिकार भी समझ रहे हैं कि सरकार को परेशान करने वाला कोई मुद्दा है तो वह है किसानों की बदतर होती हालत। ऊपर से किसान और राजनीतिक विरोधी नरेंद्र मोदी को उनका वह चुनावी वादा याद दिला रहे हैं जिसमें उन्होंने फसल की लागत पर 50 फीसदी मुनाफा देने की बात कही थी। दूसरी ओर, फसलों के आंकड़े साबित कर रहे हैं कि बेहतर दाम को लेकर नाउम्मीद होते किसानों ने फसलों का पैटर्न ही बदल लिया है। वह उन फसलों की ओर जा रहे हैं जहां दाम गिरने के बावजूद घाटा कम रहने की उम्मीद है। तभी तो 22 हजार करोड़ रुपए के रिकॉर्ड बकाया गन्ना भुगतान के बावजूद उत्तर प्रदेश समेत दूसरे राज्यों में गन्ने का रकबा बढ़ा है। इसी तरह पंजाब में किसानों ने कपास को छोडक़र धान का रकबा बढ़ाया है। 2019 पर गहरा साया यह अब लगभग तय हो गया है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के लिए 2019 के लोकसभा चुनाव में खेती-किसानी का संकट ही सबसे बड़ा मुद्दा बनने वाला है, जो भाजपा और नरेंद्र मोदी के लिए सबसे कमजोर कड़ी के रूप में दिख रहा है। यूपीए-2 के लिए जो चुनौती 2जी घोटाला, कोयला घोटाला और दूसरे भ्रष्टाचार के मामलों ने पैदा की थी, कुछ उसी तर्ज पर कृषि संकट मोदी के लिए चुनौती पैदा करता जा रहा है। इस बात को विपक्ष भी अच्छी तरह से भांप चुका है। यही वजह है कि राहुल गांधी से लेकर शरद पवार तक और एनडीए में भाजपा की सहयोगी शिवसेना समेत तमाम क्षेत्रीय दल किसानों के मुद्दों पर सरकार को घेरते नजर आते हैं। पिछले एक दशक में करीब 3.5 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यह सिलसिला थम नहीं रहा है, हालांकि सरकार ने चालाकी बरतते हुए पिछले दो साल के ऐसी वारदातों के आंकड़े जारी ही नहीं किए हैं।

2022 का लक्ष्य दूर-केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार का दावा है कि वह साल 2022 तक देश के किसानों की आय दो गुना करने के लक्ष्य को पूरा करेगी। उन्होंने यह घोषणा 28 फरवरी, 2016 को उत्तर प्रदेश के बरेली में एक रैली के दौरान की थी। इस बीच सरकार का दावा है कि उसने दर्जनों ऐसी योजनाएं लागू की हैं जो किसानों को फायदा पहुंचा रही हैं। कई राज्यों ने किसानों के 50 हजार रुपये से एक लाख रुपये तक किसान कर्ज माफ भी किए हैं। लेकिन देश का किसान आंदोलित है और खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। उसे बेहतर फसल उपज के बावजूद अनिश्चितता ने घेर लिया है।

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