जीएसटी ने तोड़ी विकास दर की कमर
थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया से पिछड़ा भारत
जयपुर. पिछले चार वर्षों में भारत का निर्यात बुरी तरह पिटा है। 2013 से पहले दो वर्षों में 40 और 22 फीसदी की रफ्तार से बढऩे वाला निर्यात बाद के पांच वर्षों में नकारात्मक से लेकर पांच फीसदी ग्रोथ के बीच झूलता रहा, पिछले वित्त वर्ष में बमुश्किल दस फीसदी की विकास दर पिछले तीन साल में एशियाई प्रतिस्पर्धी देशों थाइलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया की निर्यात वृद्धि से काफी कम है। जीडीपी में निर्यात का हिस्सा १५ साल के निचले स्तर पर भारत निर्यात के उन क्षेत्रों में पिछड़ रहा है जहां पारंपरिक तौर पर बढ़त उसके पास थी। क्रिसिल की ताजा रिपोर्ट बताती है, कच्चे माल में बढ़त होने के बावजूद परिधान और फुटवियर निर्यात में विएतनाम और बांग्लादेश ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं और बड़ा बाजार ले रहे हैं। ऑटो पुर्जे और इंजीनियरिंग निर्यात में भी बढ़ोतरी पिछले वर्षों से काफी कम रही है। भारत में जिस समय निर्यात को नई ताकत की जरूरत थी ठीक उस समय नोटबंदी और जीएसटी थोप दिए गए, नतीजतन जीडीपी में निर्यात का हिस्सा 2017-18 में 15 साल के सबसे निचले स्तर पर आ गया। सबसे ज्यादा गिरावट आई कपड़ा, चमड़ा, आभूषण जैसे क्षेत्रों में, जहां सबसे ज्यादा रोजगार हैं। एेसे में लाखों नौकरियों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।
विश्व व्यापार की दौड़ से भारत बाहर-विश्व व्यापार बढ़ा है। डब्ल्यूटीओ ने बताया कि लगभग एक दशक बाद विश्व व्यापार तीन फीसदी की औसत विकास दर को पार कर (2016 में 2.4 प्रतिशत) 2017 में 4.7 प्रतिशत की गति से बढा है, लेकिन भारत विश्व व्यापार में तेजी का कोई लाभ नहीं ले सका।
चीन ने बदली रणनीति-पिछले पांच वर्षों में चीन ने सस्ता सामान मसलन कपड़े, जूते, खिलौने आदि का उत्पादन सीमित करते हुए मझोली व उच्च तकनीक के उत्पादों पर ध्यान केंद्रित किया। यह बाजार विएतनाम, बांग्लादेश जैसे छोटे देशों के पास जा रहा है। भारत में विदेशी निवेश घटने की भी संभावना है, जबकि विदेशी निवेश के उदारीकरण में मोदी सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी है।