जयपुर. कई सरकारी एजेंसियां और पब्लिक यूटिलिटीज (जनोपयोगी सेवाएं) वेबसाइट ई-पेमेंट पर इंसेंटिव वापस ले रही है। ये बैंक से वसूल की जाने वाली ट्रांजेक्शन कॉस्ट का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं है। यह मोदी सरकार की डिजिटल इंडिया मुहिम के लिए झटका हैं। सरकार लगातार ई-पेमेंट को बढ़ावा देने की कोशिशों में जुटी है कई ई-पोर्टल में बैंक ऑनलाइन पेमेंट की लागत ग्राहकों पर डाल रहे हैं। कुछ मामलों में लागत का बोझ न केवल गैर-कानूनी तरीके से डाला जा रहा है बल्कि मर्चेंट से कहीं ज्यादा फीस वसूली जा रही है। UPI से भुगतान करने पर दिल्ली के बिजली उपभोक्ताओं को अपने बिल पर 1 फीसदी ज्यादा पैसा देना पड़ता है। मुंबई में बिजली का बिल 2000 रुपये से ज्यादा होने पर टाटा पावर के उपभोक्ताओं को सरचार्ज देना जरूरी है। यही बात दिल्ली में 5,000 रुपये से ज्यादा के बिल पर लागू होती है। IRCTC से ट्रेन टिकट बुक करने के लिए 2000 रुपये से ज्यादा के यूपीआई ट्रांजेक्शन पर जीएसटी के साथ 10 रुपये अतिरिक्त लिए जाते हैं। ये केवल बानगी है। एजेंसियों के इस तरह के कई मामले हैं जहां ग्राहकों पर सरजार्च का बोझ डाला जाता है। IIT-बॉम्बे में गणित विभाग के आशीष दास ने डिजिटल पेमेंट में सरचार्ज पर काफी अध्ययन किया है। उनके अध्ययन से पता चलता है कि अच्छी-खासी पॉलिसी और ग्राहकों पर सरचार्ज के बोझ को न डालने के साफ दिशानिर्देशों के बावजूद बैंक लगातार इसकी अनदेखी कर रहे हैं। दास की रिपोर्ट कहती है कि ग्राहकों की तरफ खिसकाया जाने वाला सरचार्ज गैर-कानूनी है। सरकार ने इस नियम का दायरा यूपीआई से होने वाले पेमेंट के लिए भी बढ़ाया है। दास के मुताबिक सरचार्ज सर्विस चार्ज या सुविधा शुल्क से अलग है। इन चार्जेज को मर्चेंट को वसूलने की अनुमति है। सुविधा शुल्क पेमेंट के सभी तरीकों पर एक जैसा है। इसके उलट सरचार्ज पेमेंट के तरीकों पर निर्भर करता है। क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर सबसे ज्यादा सरचार्ज है।
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