जयपुर। जयपुर के शिल्पग्राम, जवाहर कला केंद्र में चल रहे “आदि महोत्सव” ने जनजातीय संस्कृति, कला, और परंपराओं का प्रदर्शन किया है। ट्राइफेड, जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित यह 10 दिवसीय महोत्सव 29 नवंबर से 8 दिसंबर 2024 तक आयोजित हो रहा है। इस आयोजन को टीआरआई, उदयपुर, केंद्रीय संचार ब्यूरो, भारत सरकार, और नगर निगम ग्रेटर, जयपुर का सहयोग प्राप्त हुआ है। महोत्सव का उद्देश्य आदिवासी शिल्पकारों, कलाकारों, और उनकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय मंच प्रदान करना है।
महोत्सव की सांस्कृतिक संध्याओं में विविधता और परंपरा का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। सांस्कृतिक कार्यक्रम ने राजस्थान की समृद्ध लोक कला और परंपरा का अद्भुत प्रदर्शन किया, जिसमें बाड़मेर के सुप्रसिद्ध कलाकार गौतम परमार और उनके समूह ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
कार्यक्रम की शुरुआत देवी सरस्वती की महिमा का गुणगान करती सरस्वती वंदना से हुई, जिसने पूरे माहौल को आध्यात्मिक और पवित्र बना दिया। कलाकारों की सुमधुर गायकी और संगीत ने इस वंदना को और भी विशेष बना दिया। इसके बाद, राजस्थान के अद्वितीय भवाई लोक नृत्य का प्रदर्शन हुआ। सिर पर जलते हुए दीपकों के साथ नृत्यांगनाओं ने संतुलन और लयबद्धता का अद्भुत संगम पेश किया, जिसने हर किसी को आश्चर्यचकित कर दिया।
लोकगीतों की इस शाम को आगे बढ़ाते हुए ‘बेडला’ गीत की प्रस्तुति ने दर्शकों को राजस्थान की माटी की सोंधी खुशबू का अहसास कराया। इसके बाद, राजस्थान का प्रसिद्ध घूमर नृत्य मंच पर छा गया। घूमर की मनमोहक ताल, लहराती चुनरियों और आकर्षक चाल ने दर्शकों को रोमांचित कर दिया। इस सांस्कृतिक यात्रा के बीच देशभक्ति की भावना को समर्पित एक अनोखी प्रस्तुति रही राजस्थानी देशभक्ति गीत ने उत्साह की लहर दौड़ा दी।
कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहा पाबूजी की फड़ नृत्य-नाटिका, जिसे बाड़मेर के भील जनजातीय कलाकारों ने प्रस्तुत किया। यह प्रस्तुति राजस्थान के लोक नायक पाबूजी की वीरता और जनसेवा की गाथा को नृत्य और संगीत के माध्यम से जीवंत करती है। कलाकारों ने अपने अभिनय और भाव-भंगिमाओं से इस नाटिका को ऐसा जीवन्त रूप दिया, जिसे देखकर दर्शक भावविभोर हो उठे। कल की सांस्कृतिक संध्या में दर्शकों का उत्साह और कलाकारों की कला के प्रति उनके सम्मान ने माहौल को और भी आनंदमय बना दिया।
आदि महोत्सव में 100 से अधिक स्टॉल्स पर आदिवासी कारीगरों द्वारा उनके शिल्प और उत्पादों का प्रदर्शन किया जा रहा है। मेघालय और सिक्किम की पारम्परिक पोषाक, राजस्थान की जयपुर ब्लू पॉटरी, ओडिशा और छत्तीसगढ़ की डोकरा आर्ट, और लेह लद्दाख के पशमीना शॉल जैसे उत्पाद यहां आने वाले हर व्यक्ति को लुभा रहे हैं। प्रधानमंत्री वन धन योजना के तहत आदिवासी समुदायों द्वारा तैयार किए गए उत्पाद, जैसे जैविक शहद, हर्बल तेल, मसाले, और सुपरफूड्स, दर्शकों का विशेष आकर्षण बने हुए हैं। महोत्सव में आदिवासी और क्षेत्रीय व्यंजनों का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है। राजस्थान की प्रसिद्ध स्वादिष्ट और पौष्टिक हल्दी की सब्जी मक्के के रोटी के साथ, गुजरात की नागली रोटला, महाराष्ट्र की पूरन पोली, और हैदराबाद की बंजारा स्पेशल वेज बिरयानी जैसे स्वादिष्ट व्यंजन यहां हर आगंतुक को लुभा रहे हैं।
महोत्सव में हर दिन कुछ नया और विशेष देखने को मिल रहा है। यहां के स्टॉल्स और सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दर्शकों के लिए एक अविस्मरणीय अनुभव साबित हो रही हैं। जयपुर ब्लू पॉटरी, डोकरा आर्ट, और बांस से बने हस्तशिल्प उत्पाद जैसे शिल्प अद्वितीयता का प्रतीक हैं। सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की विविधता और क्षेत्रीय व्यंजनों की प्रामाणिकता ने इस महोत्सव को एक संपूर्ण अनुभव बना दिया है। महोत्सव में आने वाले आगंतुक इसे भारत की सांस्कृतिक विविधता और आदिवासी समुदाय की समृद्ध धरोहर का जीवंत उदाहरण मान रहे हैं। महोत्सव को सफल बनाने में टीआरआई, उदयपुर, केंद्रीय संचार ब्यूरो, और नगर निगम ग्रेटर, जयपुर का विशेष योगदान रहा है। ट्राइफेड, जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार, सभी से अपील करता है कि वे इस आयोजन का हिस्सा बनें, आदिवासी उत्पादों को खरीदकर उन्हें प्रोत्साहन दें और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों का आनंद लें। आदि महोत्सव प्रतिदिन सुबह 11:00 बजे से रात 9:00 बजे तक खुला रहता है, जबकि सांस्कृतिक कार्यक्रमों की शुरुआत शाम 6:00 बजे से होती है।