नई दिल्ली। भारत और 129 अन्य देशों ने गूगल (Google), फेसबुक (Facebook) और नेटफ्लिक्स (Netflix) जैसी बड़ी डिजिटल कंपनियों पर कर के बहुपक्षीय समाधान (multilateral tax solution) की रूपरेखा तैयार करने पर सहमति जताई है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना है कि ये कंपनियां उन देशों में ज्यादा कर चुकाएं, जहां उनके ग्राहक या उपयोगकर्ता हैं। बजाय उन देशों के, जहां उनका परिचालन है। भारत का इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करना अचंभित कर सकता है क्योंकि इसके दायरे में शीर्ष 100 वैश्विक कंपनियां आएंगी, जबकि भारत कर के निचले दायरे का पक्षधर था। इस प्रस्तावित समाधान के दो पहलू हैं। पहला, बाजार क्षेत्रों को लाभ में अतिरिक्त हिस्सेदारी का फिर से आवंटन। दूसरे पहलू में न्यूनतम कर और कर की दर 15 फीसदी है।
भारत और अन्य विकासशील देश 20 अरब यूरो के अंतिम प्रस्ताव
भारत और अन्य विकासशील देश 20 अरब यूरो के अंतिम प्रस्ताव के बजाय कम से कम एक अरब यूरो के राजस्व और 10 फीसदी से अधिक लाभ मार्जिन वाली कंपनियों को शामिल करने के लिए लड़ रहे हैं। भारत की प्रस्तावित सीमा से करीब 5,000 वैश्विक कंपनियां डिजिटल कर के दायरे में आतीं, जबकि अंतिम प्रस्ताव में करीब 100 कंपनियां ही शामिल हैं। हालांकि सरकार का इस पर सहमति के पक्ष में तर्क है कि कर की ऊंची सीमा भारत में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों से अपना राजस्व सुरक्षित करना है।
कर की सीमा पर सात साल बाद समीक्षा
केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, ‘सीमा ज्यादा रखने से भारतीय कंपनियों को काफी कम मिलने की संभावना है। हमारा विचार यह देखना है कि राजस्व पर कोई असर नहीं पड़े। हम अपने संप्रभु अधिकारों और कर राजस्व की सुरक्षा करेंगे।’ कर की सीमा पर सात साल बाद समीक्षा की जाएगी और इसे घटाकर 1 करोड़ यूरो की जाएगी।
कर समझौता 2023 से प्रभावी
उन्होंने कहा कि वैश्विक डिजिटल कर व्यवस्था (global digital tax regime) के पीछे मूल मकसद उन कंपनियों को पकडऩा है जो कर मध्यस्थता का लाभ उठाते हैं और साथ कर व्यवस्था की खामियों को दूर करना है। यह कर समझौता 2023 से प्रभावी होगा। अधिकांश भारतीय बहुराष्ट्रीय कंपनियों जैसे कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) या इन्फोसिस देश से बाहर अपने उत्पाद और सेवाओं की बिक्री करते हैं और अगर उनका सारा मुनाफा देश से बाहर जाता है तो भारत को कर राजस्व का नुकसान होगा। सीबीडीटी के पूर्व सदस्य और ओईसीडी में भारत के पूर्व मुख्य वार्ताकार अखिलेश रंजन ने कहा, ‘अमेरिका के साथ ऐसा नहीं है। गूगल अपना मुनाफा आयरलैंड में लगाती है, इसलिए अमेरिका को इस समझौते से राजस्व का कोई नुकसान नहीं होगा।’