नई दिल्ली. सरकार एयर इंडिया कर्मचारियों की मुख्य मांगों पर सहमत हो गई है। सरकार इस बात से चिंतित है कि ऐसा न करने पर औद्योगिक विवाद पैदा हो सकता है, जिससे निजीकरण की प्रक्रिया में अचडऩ पैदा हो सकती है। इन प्रमुख मांगों में कर्मचारी भविष्य निधि के कंपनी के स्वामित्व वाले न्यासों से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) में हस्तांतरण के कारण प्रतिभूतियों की बिक्री से होने वाले नुकसान की भरपाई करना, कर्मचारियों को केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना में शामिल करना और छुट्टियों को नकदी में बदलना शामिल हैं।
एयर इंडिया की प्रक्रिया का खाका भविष्य में निजीकरण किए जाने वाले अन्य पीएसयू में भी अपनाया जाएगा। इस प्रक्रिया से जुड़े एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘एयर इंडिया पर गठित मंत्री समूह इन मांगों में से ज्यादातर पर सहमत हो गया है और अगर जरूरत पड़ी तो बजटीय मदद भी दी जाएगी ताकि स्वामित्व के हस्तांतरण से पहले इन मुद्दों का समाधान हो जाए।’
गृह मंत्री अमित शाह की अगुआई वाले मंत्री समूह की पिछले सप्ताह बैठक हुई थी, जिसने मांगें पूरी करने के लिए बजटीय मदद जारी करने का फैसला किया है। सूत्रों ने कहा कि कुल खर्च करीब 250 करोड़ रुपये आने का अनुमान है। ये मुद्दे बढ़ रहे थे और अगर कुछ कर्मचारी अदालत चले जाते तो इससे पूरी निजीकरण प्रक्रिया खटाई में पड़ जाती। सरकार इस कैलेंडर वर्ष के आखिर तक निजीकरण की प्रक्रिया पूरी करने की योजना बना रही है।
एयर इंडिया के आठ कर्मचारी संगठन सरकार से मानव संसाधन मुद्दों का समाधान करने का आग्रह कर रहे हैं, जिनमें भविष्य निधि, चिकित्सा और कल्याणकारी सुविधाएं शामिल हैं। खबरों में कहा गया है कि टाटा समूह पहले ही स्कॉटलैंड की ऊर्जा कंपनी केयर्न पीएलसी द्वारा एयर इंडिया के खिलाफ दायर मुकदमे को लेकर चिंतित है और उसने हिस्सेदारी खरीद समझौते में हर्जाने के प्रावधान की मांग की है।