शुक्रवार, नवंबर 01 2024 | 08:06:05 PM
Breaking News
Home / एक्सपर्ट व्यू / डेलीहंट के फाउंडर्स बोले, भारत में एंटरप्रिन्योर बनना कमजोर दिल वालों का काम नहीं
Dailyhunt's founders said, becoming an entrepreneur in India is not a job for the weak-hearted

डेलीहंट के फाउंडर्स बोले, भारत में एंटरप्रिन्योर बनना कमजोर दिल वालों का काम नहीं

जयपुर। लोकल मार्केट में अपना दबदबा बढ़ाने के बाद ‘डेलीहंट’ (Dailyhunt) ने पिछले दिनों शॉर्ट वीडियो ऐप ‘जोश’ (Josh) लॉन्च किया था, जिसे पहले हफ्ते से ही लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है। ‘डेलीहंट’ (Dailyhunt) के फाउंडर वीरेंद्र गुप्ता और को-फाउंडर उमंग बेदी ने ‘बिजनेस वर्ल्ड’ और ‘एक्सचेंज4मीडिया’ (Exchange4Media) ग्रुप के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा (Dr. anurag Batra) और ‘एक्सचेंज4 मीडिया’ ग्रुप के डायरेक्टर नवल आहूजा (Naval Ahuja) से अपनी नई पेशकश, भारतीय ऐप (Indian App) मार्केट पर बढ़ते फोकस और डिजिटल कंटेंट पब्लिशर्स के आगे बढ़ने समेत तमाम मुद्दों पर बातचीत की। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के प्रमुख अंश:

इस समय नए शॉर्ट वीडियो ऐप जोश (Short Video App Josh) को लॉन्च करने के पीछे आपकी क्या सोच रही, इस बारे में कुछ बताएं?

उमंग बेदी: हम देश के डिजिटल सिस्टम में एक बिलियन लोगों को शामिल करना चाहते हैं, जो स्थानीय भाषाओं द्वारा संचालित है। हमारा मानना है कि डेलीहंट के साथ स्थानीय भाषाओं को लेकर एक सामाजिक क्रांति शुरू हो रही है। हम सबसे बड़ा डिजिटल मीडिया बनना चाहते हैं जो एक अरब भारतीयों को इंफॉर्म करने, उनका ज्ञान बढ़ाने और मनोरंजन करने वाले कंटेंट को डिस्ट्रीब्यूट करने और कंज्यूम करने के लिए सशक्त बना रहा है।

दो वर्षों में हमने काफी ज्यादा ग्रोथ

हमारी स्ट्रैटेजी अपने यूजर्स, कंज्यूमर्स, पब्लिशर्स, पार्टनर्स और ऐडवर्टाइजर्स के लिए उनकी पसंद का ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार करना है, जो स्थानीय भाषाओं पर केंद्रित हो। हम इस बात को लेकर पूरी तरह स्पष्ट हैं कि हम स्थानीय भाषा के यूजर्स (लोकल लैंग्वेज यूजर्स) के लिए अपना माइंडशेयर (mindshare), टाइमशेयर (timeshare) और रेवेन्यू शेयर (revenue share) चाहते हैं। पिछले दो वर्षों में हमने काफी ज्यादा ग्रोथ देखी है। यहां तक कि मार्च से जब पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था, डेलीहंट ने काफी ज्यादा कंटेंट को प्राथमिकता देना और उसे बनाना शुरू कर दिया था।

शार्ट वीडियो के फॉर्मेट

जब प्रधानमंत्री ने देश को आत्मनिर्भर बनाने के बारे में बात की तो इस बात ने डेलीहंट को प्रोत्साहन के साथ एक अतिरिक्त जिम्मेदारी भी प्रदान की। जैसा कि हमने कहा है कि हम शार्ट वीडियो के फॉर्मेट द्वारा स्थानीय भाषा के यूजर्स (लोकल लैंग्वेज यूजर्स) के लिए अपना माइंडशेयर (mindshare), टाइमशेयर (timeshare) और रेवेन्यू शेयर (revenue share) चाहते हैं, हमने दो हफ्ते के समय में जोश को लॉन्च किया। हमारा यह शॉर्ट वीडियो ऐप पूरी तरह स्वदेशी है और यह देश का तेजी से बढ़ता ऐप है, जिसे लोगों द्वारा काफी पसंद किया जा रहा है।

जोश को लॉन्च किए हुए कुछ हफ्ते हो गए हैं, इसका अब तक का रिस्पॉन्स कैसा रहा है?

उमंग बेदी: जोश देश के टॉप 200 क्रिएटर्स का अनूठा संगम है, जिनका विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर सामूहिक यूजर बेस 300-400 मिलियन है। शुरुआती हफ्तों की बात करें तो जोश को बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली है। 45 दिनों में ही हम टॉप रेटेड ऐप बन गए हैं, जिसके 50 मिलियन डाउनलोड्स हो गए हैं। रोजाना इस ऐप पर 23 मिलियन लोग आते हैं और औसतन 21 मिनट व्यतीत करते हैं। इसमें रोजाना एक बिलियन वीडियो प्ले होते हैं और पांच मिलियन लोग कंटेंट बना रहे हैं। जिस हिसाब से हमारी ग्रोथ हो रही है, हमें उम्मीद है कि इस तरह अगले 60 से 90 दिनों में हम इन आंकड़ों के दोगुने तक पहुंच जाएंगे। हमने इसे पूरी तरह भारत में, भारत के लिए 14 भारतीय भाषाओं में तैयार किया है और हमारा मानना है कि यूजर बेस के मामले में इसने टिकटॉक को रिप्लेस कर दिया है।

डेलीहंट स्थानीय भाषाओं में काम कर रहा

वीरेंद्र गुप्ता: विदेशी कंपनियां जब भारत को सिर्फ अंग्रेजी भाषी मार्केट के तौर पर देखती हैं, डेलीहंट स्थानीय भाषाओं में काम कर रहा है। हम काफी समय से इस मार्केट में हैं। हमने इस मार्केट के लिए टूल्स, टेक्नोलॉजी और कंटेंट तैयार किया है। अभी तक इस मार्केट पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया था और हमने अपनी पेशकश के द्वारा इस दिशा में काफी काम किया है। जोश हमारी नवीनतम पेशकश है।

भारतीय ऐप के ईकोसिस्टम की बात करें तो इसमें रोजाना प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है, ऐसे में आप किस तरह आगे बने हुए हैं?

वीरेंद्र गुप्ता: यह बहुत अच्छी बात है कि बहुत सारी भारतीय कंपनियां नए ऐप बना रही हैं। हमें एक नए भारत की कल्पना करने की जरूरत है। हम जानते हैं कि इस खेल को कैसे जीता जाता है। मेरा मानना है कि यदि मार्केट में ज्यादा प्लेयर्स आते हैं तो इससे आगे बढ़ने में मदद मिलेगी और हमें एक-दूसरे से काफी कुछ सीखने को मिलेगा। इससे शॉर्ट वीडियो ऐप्स और अन्य ऐप्स पर काफी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि युवा एंटरप्रिन्योर्स नए-नए आइडियाज के साथ आ रहे हैं, इससे भारतीय ऐप का ईकोसिस्टम आगे बढ़ेगा।

भारतीय स्टार्ट-अप इकोसिस्टम

उमंग बेदी: भारतीय स्टार्ट-अप इकोसिस्टम को लेकर मैं बहुत प्रोत्साहित और उत्साहित हूं। मैं हमेशा से कहता हूं कि भारत में एंटरप्रिन्योर बनना कमजोर दिल वालों का काम नहीं है। इस मार्केट में काफी भीड़भाड़ है, लेकिन प्रत्येक वर्टिकल की तरह चाहे वह ऑटोमोबाइल्स हो, हैंडसेट्स हो, टेलिकॉम या ई-कॉमर्स हो, मार्केट में दो प्लेयर्स बड़े शेयर्स के साथ उभरकर सामने आते हैं। मेरा मानना है कि अगले छह महीनों में यह मार्केट नया रूप लेने जा रहा है।

यदि आप कुछ बड़ी टेक कंपनियों की तरफ देखें, जिन्होंने अपने मार्केट में स्थानीय भाषाओं पर काम किया है, ऐसे में उन्हें किस वजह के आगे निकलने का अधिकार है?

पहली बात तो यह है कि उन्हें विभिन्न भाषाओं में विभिन्न फॉर्मेट्स में कंटेंट की गहरी समझ है। कंटेंट को समझने के लिए उनके पास आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) है। दूसरी बात यह है कि वह गहरी समझ का इस्तेमाल कर रहे हैं। तीसरी बात यह है कि उनमें बड़े पैमाने पर मुद्रीकरण (monetisation) को तैयार करने की क्षमता है। हम इस बात की काफी कद्र करते हैं कि ग्लोबल कंपनियों ने किस तरह से अपना बिजनेस तैयार किया है, लेकिन हम पूरी तरह स्पष्ट हैं कि वे सिर्फ देश के खास तबके तक सीमित हैं।

देश में 19000 से ट्रैफिक मिलता

हम इस मायने में उनसे अलग हैं कि हम भारत को अच्छे से समझते हैं, हम स्थानीय भाषाओं को समझते हैं। देश में 21000 पिन कोड में से हमें 19000 से ट्रैफिक मिलता है। हमें लगता है कि दो बड़े प्लेयर्स के लिए एक-दूसरे से आगे बढ़ने के लिए मार्केट काफी बड़ा है और अपने आप को लेकर हम काफी आश्वस्त हैं।

यदि टिकटॉक की भारतीय मार्केट में दोबारा से एंट्री होती है या जियो कोई इसी तरह का प्रॉडक्ट लॉन्च कर देता है तो उस दौरान आपकी स्ट्रैटेजी क्या रहेगी?

कंप्टीशन को लेकर हम चिंतित नहीं हैं। हम प्रतिस्पर्धा का स्वागत करते हैं। हम ऐसे मार्केट में प्रतिस्पर्धा करते हैं, जहां पर डिजिटल एडवर्टाइजिंग की बात आती है तो एकाधिकार हावी हो जाता है। हमने चीन के बड़े ऐप्स के साथ प्रतिस्पर्धा की है और हमने वह लड़ाई जीती भी है। यदि टिकटॉक या इसी तरह का कोई ऐप वापस भी आ जाता है, तो भी हमें कोई दिक्कत नहीं है। हमारा मानना है कि यह मार्केट दो या तीन प्लेयर्स के लिए पर्याप्त बड़ा है और हमें पूरा विश्वास है कि हम उन दो प्लेयर्स में शामिल होंगे।

आपकी नजर में, क्या मार्च 2020 के बाद विज्ञापन खर्च में कुछ परिवर्तन आया है, मार्केट को लेकर आपका क्या कहना है?

उमंग बेदी: आप जिस क्षण डिजिटल में आते हैं, प्रत्येक मार्केटर आपकी परफॉर्मेंस मांगता है। चाहे पहुंच अथवा फ्रीक्वेंसी की बात हो, चाहे क्लिक की बात हो या फिर एडवर्टाइजिंग का प्रदर्शन हो।

गूगल, फेसबुक और डेलीहंट के अलावा कितने प्लेटफॉर्म्स हैं, जहां पर आप परफॉर्मेंस के आधार पर विज्ञापन हासिल कर सकते हैं?

जो मैंने देखा है, उसके अनुसार, कोविड-19 की तिमाही के दौरान हमारे रेवेन्यू में साल दर साल 100 प्रतिशत तक का इजाफा हुआ है। अब हम ब्रैंड एडवर्टाइजिंग में काफी उछाल देख रहे हैं। मुझे लगता है कि परफॉर्मेंस एक यात्रा है और हमने 100000 पब्लिशर्स व लोगों के साथ मिलकर डाटा इंटीग्रेशन तैयार किया है, जो हमें कंटेंट दे रहे हैं। परफॉर्मेंस की बात करें तो हमारे पास 250 एडवर्टाइजर्स हैं, जिनके साथ हमने डाटा इंटीग्रेशन (डाटा एकीकरण) किया है, जिसके द्वारा हम यूजर को ट्रैक कर सकते हैं और उसी हिसाब से टार्गेट कर सकते हैं।

रेवेन्यू के हिसाब से तीसरे स्थान पर

यही कारण है कि देश में गूगल और फेसबुक के बाद हम एकल गंतव्य (single destination) के मामले में रेवेन्यू के हिसाब से तीसरे स्थान पर हैं। हम अभी इनसे काफी दूर हैं, क्योंकि देश में ये कंपनियां रेवेन्यू और पहुंच के मामले में काफी बड़ी हैं। मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले तीन वर्षों में भारत में डिजिटल टीवी के बराबर आ जाएगा या इससे आगे निकल जाएगा।

500 मिलियन लोकल लैंग्वेज यूजर्स

वीरेंद्र गुप्ता: हमारे पास डेलीहंट के ऐप्स पर रोजाना दो घंटे से ज्यादा समय बिताने वाले 500 मिलियन लोकल लैंग्वेज यूजर्स होंगे। और जब आप ऐसा करते हैं, तो मेरा मानना ​​है कि विज्ञापन और बढ़ेंगे, क्योंकि यह भारत है और यह एक अंडरस्कोर मार्केट है। जैसा कि हम जानते हैं, विज्ञापन का पैसा बड़े पैमाने पर चलता है और यही वह जगह है, जहां हम आगे बढ़ रहे हैं।

Check Also

यह बजट सही दिशा में उठाया गया एक कदम है : अरुंधति भट्टाचार्य

नौकरियों का सृजन हो सकेगा, जो आज के समय सबसे ज्यादा जरूरी है।” – अरुंधति …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *