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Confluence of diverse arts seen in 'Saathvaro Mela' of Adani Foundation

अदाणी फाउंडेशन के ‘साथवरो मेला’ में दिखा विविध कलाओं का संगम

अदाणी शांतिग्राम के बेलवेदर गोल्फ एंड कंट्री क्लब में हुआ आयोजन, 10 राज्यों के 80 से अधिक शिल्पकारों ने लगाए मेले में स्टॉल, शिल्पकारों को मिलता प्रदर्शन व आर्थिक लाभ का अवसर

अहमदाबाद. अदाणी फाउंडेशन द्वारा 14-15 सितंबर 2024 को अहमदाबाद के अदाणी शांतिग्राम स्थित बेलवेदर गोल्फ एंड कंट्री क्लब में ‘साथवरो मेला’ का दूसरा संस्करण आयोजित किया गया। इसमें भारत की विविध कलाओं और शिल्प का प्रदर्शन देखने को मिला। इस कार्यक्रम में देशभर के स्वयं सहायता समूहों और शिल्पकारों द्वारा बनाए गए हस्तनिर्मित उत्पादों को प्रदर्शित किया गया। शिल्पकारों को सशक्त बनाने और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ यह आयोजन शिल्पकारों और उपभोक्ताओं के बीच की दूरी को कम करने का काम भी करता है। फाउंडेशन का उद्देश्य इस मंच के माध्यम से स्थायी आजीविका और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है।

चंदेरी और पटोला साड़ियों से लेकर, बारीक कढ़ाई वाले कपड़े, पट्टचित्र और स्टोन डस्ट पेंटिंग्स, किफायती मैक्रमे से बुने हुए बैग और होम डेकोर आइटम्स, अनोखे नेल क्राफ्ट, पीतल के बर्तन, टेराकोटा आर्ट, मोतियों के आभूषण आदि इस प्रदर्शन में देखने को मिले। इस प्रदर्शनी को दर्शकों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। यहाँ पारंपरिक और आधुनिक शिल्पों का एक विशाल संग्रह मौजूद था, जिनमें से प्रत्येक भारत की सांस्कृतिक समृद्धि की कहानी बयां कर रहा था।

इस मेले के कुछ विशेष आकर्षण, प्रदर्शनी में लगे वे दुर्लभ कलाकृतियों के स्टॉल थे, जिनमें सुजनी हस्तनिर्मित लिनेन (यह एक अनोखी कला है, जिसे भारत में केवल एक ही परिवार पीढ़ियों से आगे बढ़ा रहा है), सादेली हस्तशिल्प, और गुजरात की पारंपरिक रोगन कला (जिन्हें अक्सर विलुप्त हो रही कलाओं के रूप में जाना जाता है) शामिल थे। इस दो-दिवसीय प्रदर्शनी में ‘साथवरो’ से जुड़े 140 से अधिक शिल्पकारों के साथ, 80 से अधिक कलाकारों ने हिस्सा लिया, जिनमें स्वतंत्र शिल्पकारों और स्वयं सहायता समूहों का समन्वय था, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों से यहां पहुंचे थे। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में 30 लाख रुपये से अधिक का व्यवसाय हुआ। आगंतुकों में अदाणी समूह के कर्मचारी और उनके परिवार शामिल थे। इस मेले के माध्यम से लोगों को कला (जिसमें कुछ विलुप्त हो रहे कला के रूप भी शामिल हैं) के बारे में जागरूकता मिली। 10 राज्यों के 80 से अधिक शिल्पकारों ने मेले में 43 स्टॉल लगाए, जिसमें 3,000 से अधिक लोगों ने भाग लिया।

उमरपाड़ा, गुजरात की जनजातीय कोटवाडिया समुदाय से आने वाली शिल्पकार जसोदाबेन कोटवाडिया, जिन्होंने भूसे से बनी वस्तुओं का स्टॉल लगाया था, खुशी से मुस्कराते हुए कहती हैं, “हमें नहीं पता था कि हमारा काम एक कला का रूप है। जो भूसे की टोकरी और दीवार पर सजाने वाले सामान हम पहले बिचौलियों को 20 रुपये प्रति पीस के हिसाब से थोक में बेचते थे, मेले में हमें उनके अच्छे दाम मिले। अदाणी फाउंडेशन ने खरीददारों और विक्रेताओं के बीच के इस अंतर को पाटकर, हमारे जैसी महिलाओं की बहुत मदद की है। उन्होंने हमें मार्गदर्शन दिया और एक ऐसा मंच प्रदान किया, जहाँ हम इस तरह की प्रदर्शनियों में अपने उत्पाद बेच सकते हैं और एक सम्मानजनक आजीविका कमा सकते हैं।”

अदाणी फाउंडेशन जसोदाबेन जैसे कलाकारों तक दूरदराज के गांवों में पहुंचकर उन्हें एक उपयुक्त और स्थायी आजीविका मॉडल खोजने में मदद करता है। फाउंडेशन एक तरफ कलाकारों की प्रतिभा को निखारना का एक लक्ष्य लेकर चल रहा है, वहीं सक्रिय रूप से गांवों को गोद भी ले रहा है, जहां महिलाओं को आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने के महत्व के बारे में परामर्श दिया जाता है, विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षण दिया जाता है, और उन्हें स्वयं सहायता समूहों का हिस्सा बनने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

मेले में ओडिशा के जगन्नाथ पुरी से पट्टचित्र कलाकार ओम प्रकाश महाराणा भी शामिल हुए। वह अपने उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचकर संतुष्ट नजर आए। उन्होंने कहा,  “मैंने अपनी सबसे महंगी पेंटिंग, जिसकी कीमत 60,000 रुपये थी, यहां बेची। यह पहली बार है जब हम अदाणी फाउंडेशन के साथ जुड़ें हैं, और हमें बहुत खुशी है कि वे हमारे जैसे कलाकारों तक पहुंच रहे हैं और हमें हमारे ग्राहकों तक पहुंचाने में मदद कर रहे हैं।”

फरीदाबाद, हरियाणा के स्टोन डस्ट कलाकार सूरज ओमरे ने बताया, “मैं इस प्रदर्शनी के लिए दो बड़े वॉल हैंगिंग्स के साथ कुछ छोटे फ्रेम भी लाया था। मैं अपनी सबसे बड़ी और विशेष वॉल हैंगिंग को 55,000 रुपये में बेचने में सफल रहा।”

अदाणी फाउंडेशन की चेयरपर्सन, डॉ. प्रीति अदाणी ने कहा, “साथवरो अदाणी फाउंडेशन की सबसे नई पहलों में से एक है। हमें बहुत खुशी है कि हमने साथवरो मेले का दूसरा संस्करण आयोजित किया, जिसमें 80 से अधिक शिल्पकारों ने भाग लिया। इस पहल के पीछे का उद्देश्य भारत की विलुप्त होती कला और शिल्प को प्रोत्साहित करना, उन्हें बढ़ावा देना और पुनर्जीवित करना है। मुझे यह देखकर खुशी होती है कि हमारा शिल्पकार समुदाय अधिक रचनात्मक और बाजार-उन्मुख होता जा रहा है। वे सक्रिय रूप से हमारे पास आकर अपने काम को बढ़ावा देने की पहल कर रहे हैं। हर कला की अपनी एक अनूठी पहचान होती है, और एक कलाकार अपनी कला को जीवित रखने के लिए बहुत दर्द और विचार प्रक्रिया से गुजरता है। साथवरो के माध्यम से, हम उस कला और सांस्कृतिक धरोहर के पुनरुद्धार में योगदान दे रहे हैं, जिसके पीछे मेहनत और बलिदान की लंबी कहानी है।”

प्रोजेक्ट साथवरो, अदाणी फाउंडेशन की एक पहल है, जो भारत की समृद्ध कला और शिल्प धरोहर को संरक्षित करने के साथ-साथ शिल्पकारों को सशक्त बनाने के लिए समर्पित है। यह संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के तहत आर्थिक विकास, आजीविका और सांस्कृतिक संरक्षण के उद्देश्यों के साथ मेल खाता है।

साथवरो, शिल्पकारों को आधुनिक डिज़ाइन, प्रोसेस इनोवेशन और बाज़ार से जोड़ने के जरिए सशक्त बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। साथवरो मेला ने शिल्पकारों को उभरती बाज़ार की मांगों और ग्राहकों की गुणवत्ता अपेक्षाओं को समझने का अवसर प्रदान किया। इस ज्ञान के साथ-साथ वित्तीय लाभ उन्हें डिज़ाइन की सटीकता पर ध्यान केंद्रित करने और अपने शिल्प में उच्च गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्रेरित करेगा।

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