नई दिल्ली. कॉरपोरेट जगत में कर्ज चूक के बढ़ते मामलों को देखते हुए बैंकों सहित अन्य वित्तीय कर्जदाताओं ने सख्ती बरतनी शुरू कर दी है। इससे शेयर गिरवी रख कर्ज लेने वाली कंपनियों की मुश्किलें बढ़ रही हैं। कर्ज देने वाले वित्तीय संस्थान न सिर्फ गिरवी रखे शेयरों को बेच रहे हैं बल्कि नया कर्ज देना भी बंद कर दिया है। मामले से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि कंपनियों के संस्थापकों में शेयर गिरवी रख कर्ज लेने की प्रकृति काफी बढ़ गई है। हाल में अनिल अंबानी की कंपनियों और एस्सेल समूह में कर्ज चूक के मामले सामने आने के बाद बैंकों ने इस तरह के कर्ज पर लगाम कस दी है। इस तरह के कर्ज में पहली बार छह महीने से ज्यादा का सूखा पड़ा है। विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के कर्ज का बकाया करीब 1 लाख करोड़ रुपये है जिसमें अब तेजी से गिरावट आ रही है। कंपनी के संस्थापकों ने कर्ज की राशि का उपयोग कारोबार बढ़ाने में किया लेकिन गिरवी रखे शेयरों में गिरावट की वजह से उन्हें ज्यादा महंगी शर्तों पर दोबारा फंड जुटाना पड़ा। इसका भारतीय बाजार की साख पर भी बुरा असर दिखा।
कर्जदाताओं के सख्त कदम
कर्जचूक के बाद अनिल अंबानी की कंपनियों के शेयर गिरने लगे तो कर्जदाताओं ने उन्हें बेचना शुरू कर दिया। अंबानी ने इसे गैरकानूनी कदम बताते हुए इसका विरोध किया और कर्जदाता के खिलाफ अपील दायर की। इसी तरह एस्सेल समूह के संस्थापक सुभाष चंद्रा ने गिरवी शेयरों को बचाने के लिए कर्जदाता के साथ एक करार किया जिसमें समूह के शेयर 30 सितंबर 2019 तक नहीं बेचे जाने की शर्त थी। दरअसल जब कंपनी के शेयर चढ़ रहे होते हैं तो ऐसे लोन आसानी से मिल जाते हैं। वहीं शेयरों में गिरावट आने पर कर्जदाता अपना घाटा पाटने के लिए कंपनी से और शेयर की मांग करते हैं, जो देना मुमकिन नहीं होता।