नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय ने प्रवर्तकों के खिलाफ ऋणशोधन अक्षमता कार्रवाई के राष्ट्रीय कंपनी विधि अपील पंचाट (एनसीएलएटी) के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिका आज खारिज कर दी। इससे ऋणदाता के लिए उन प्रवर्तकों, निदेशकों, कंपनी के चेयरमैन के खिलाफ ऋणशोधन अक्षमता कार्रवाई शुरू करने का रास्ता साफ हो गया है, जिन्होंने कंपनी को कर्ज दिलाने के लिए व्यक्तिगत गारंटी दी थी। ऋणशोधन एवं दिवालिया संहिता के तहत कॉर्पोरेट कर्जदार के खिलाफ मामला चलने पर भी ऋणदाता कार्रवाई कर सकते हैं।
अदालत के इस निर्णय से ऋणदाता अपने फंसे कर्ज की अधिकतम वसूली कर पाएंगे और उन्हें कर्ज पर भारी नुकसान नहीं उठाना पड़ेगा। इसके साथ ही चूक करने वाले भी कर्ज की रकम का दुरुपयोग करने से बचेंगे।
मामला भारतीय स्टेट बैंक बनाम महेंद्र कुमार जाजोडिया मुकदमे में पंचाट के फैसले से जुड़ा है। मार्च के उस फैसले में पंचाट ने कहा था कि कंपनी को कर्ज दिलाते समय निजी गारंटी देने वाले व्यक्ति के खिलाफ ऋणशोधन अक्षमता की कार्रवाई शुरू की जा सकती है और उसके लिए पहले कंपनी के खिलाफ ऋणशोधन कार्रवाई शुरू होना जरूरी नहीं है। जाजोडिया इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए थे।
आईबीसी के तहत व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए कॉर्पोरेट कर्जदार के खिलाफ कॉर्पोरेट समाधान प्रक्रिया या परिसमापन कार्रवाई शुरू करने की जरूरत होती है।
पिछले कुछ फैसलों और आईबीसी के प्रावधानों को देखते हुए शीर्ष अदालत ने अप्रैल की शुरुआत में एनसीएलएटी के आदेश पर रोक लगा दी थी। दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद अदालत ने 6 मई को कहा, ‘हमें इसकी अपील पर सुनवाई का वाजिब कारण नजर नहीं आता। एलसीएलएटी के आदेश में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है।’
अदालत के आदेश का मतलब है कि व्यक्तिगत गारंटर के खिलाफ कार्रवाई मुख्य कर्जदार (कंपनी) पर निर्भर नहीं है यानी निजी गारंटी देने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है चाहे कॉर्पोरेट ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया शुरू नहीं हुई हो, चल रही हो या पूरी हो चुकी हो।
आईबीसी के वकील ने कहा कि कई मामलों में वसूली प्रक्रिया और उसके बाद ऋणशोधन अक्षमता प्रक्रिया शुरू हो गई। कुछ मामलों में समाधान योजना के लिए आवेदन को मंजूरी नहीं मिली है और कहीं-कहीं सुनवाई पूरी हो चुकी है। इसलिए कार्रवाई अलग-अलग चरणों में होने के बावजूद फैसला स्पष्ट कहता है कि जिम्मेदारी व्यक्तिगत गारंटर की है। शीर्ष अदालत का यह दूसरा आदेश है जिसमें व्यक्तिगत गारंटर को वसूली के लिए जवाबदेह ठहराया गया है। इससे पहले 2019 में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार की 2019 की अधिसूचना के पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके अनुसार समाधान योजना के तहत बकाया कर्ज का भुगतान नहीं होने की स्थिति में व्यक्तिगत गारंटर को इसके भुगतान के लिए जिम्मेदार होगा।