गुरुवार, नवंबर 21 2024 | 11:09:01 PM
Breaking News
Home / धर्म समाज / चातुर्मास होने वाला है शुरू, चार माह रहेंगे संत एक ही स्थान पर

चातुर्मास होने वाला है शुरू, चार माह रहेंगे संत एक ही स्थान पर

जयपुर. जैन धर्म में इसे सामूहिक वर्षायोग तथा चातुर्मास के रूप में जाना जाता है। मान्यता है कि बारिश के मौसम के दौरान अनगिनत कीड़े- मकौड़े और छोटे जीव होते हैं तथा वर्षा के मौसम के दौरान जीवों की उत्पत्ति भी सर्वाधिक होती है। चलन.हिलन की ज्यादा क्रियाएं इन मासूम जीवों को ज्यादा परेशान करती है। अन्य प्राणियों को साधुओं के निमित्त से कम हिंसा हो तथा उन जीवों को ज्यादा अभयदान मिले, उसके दृष्टिगोचर कम से कम तो वे 4 महीने के लिए एक गांव या एक ठिकाने में रहने के लिए अर्थात विशेष परिस्थितियों के अलावा एक ही जगह पर रहकर स्वकल्याण के उद्देश्य से ज्यादा से ज्यादा स्वाध्याय, संवर, पौषद, प्रतिक्रमण, तप, प्रवचन तथा जिनवाणी के प्रचार-प्रसार को महत्व देते हैं। इस दौरान सभी साधू-संत एक ही शहर में रहते हैं।
यह सर्वविदित ही कि जैन साधुओं का कोई स्थायी ठौर-ठिकाना नहीं होता तथा जनकल्याण की भावना संजोए वे वर्षभर एक स्थल से दूसरे स्थल तक पैदल चल-चलकर श्रावक.श्राविकाओं को अहिंसा, सत्य, ब्रम्हचर्य का विशेष ज्ञान बांटते रहते हैं तथा पूरे चातुर्मास अर्थात 4 महीने तक एक क्षेत्र की मर्यादा में स्थायी रूप से निवासित रहते हुए जैन दर्शन के अनुसार मौन, साधना, ध्यान, उपवास, स्व अवलोकन की प्रक्रिया, सामयिक और प्रतिक्रमण की विशेष साधना, धार्मिक उद्बोधन, संस्कार शिविरों से हर शख्स के मन मंदिर में जनकल्याण की भावना जाग्रत करने का सुप्रयास जारी रहता है। तीर्थंकरों और सिद्धपुरुषों की जीवनियों से अवगत कराने की प्रक्रिया इस पूरे वर्षावास के दरमियान निरंतर गतिमान रहती है तथा परिणति सुश्रावकों तथा सुश्राविकाओं के द्वारा अनगिनत उपकार कार्यों के रूप में होती है। 
क्या है पयुर्षण पर्व- चातुमार्स के दौरान ही एक सबसे महत्वपूर्ण त्योहार पर्युषण पर्व आता है। पर्युषण के दिनों में जैनी की गतिविधि विशेष रहती है तथा जो जैनी वर्षभर या पूरे 4 माह तक कतिपय कारणों से जैन दर्शन में ज्यादा समय नहीं प्रदान कर पाते वे इन पर्युषण के 8 दिनों में अवश्य ही रात्रि भोजन का त्याग, ब्रम्हचर्य, ज्यादा स्वाध्याय, मांगलिक प्रवचनों का लाभ तथा साधु-संतों की सेवा में रहते हैं। चातुर्मास का सही मूल्यांकन श्रावकों और श्राविकाओं द्वारा लिए गए स्थायी संकल्पों एवं व्रत प्रत्याखानों से होता है। यह समय आध्यात्मिक क्षेत्र में लगातार नई ऊंचाइयों को छूने हेतु प्रेरित करने के लिए है। अध्यात्म जीवन विकास की वह पगडंडी है जिस पर अग्रसर होकर हम अपने आत्मस्वरूप को पहचानने की चेष्टा कर सकते हैं।

Check Also

The Chief Minister gave approval, the renovation and development work of Shri Gopal Ji Temple of Rojda will be done

मुख्यमंत्री ने दी स्वीकृति, रोजदा के श्री गोपाल जी मंदिर का होगा जीर्णोद्धार एवं विकास कार्य

धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 2 करोड़ रुपए स्वीकृत जयपुर। राज्य सरकार धार्मिक …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *