मुंबई| रुपये में नरमी देखते हुए भारतीय कंपनियों की विदेशी उधारी का वह हिस्सा चिंता का सबब बना हुआ है, जिसकी हेजिंग नहीं है। मगर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने आज कहा कि बकाया बाह्य वाणिज्यिक उधारी (ईसीबी) का बड़ा हिस्सा प्रभावी तरीके से हेज किया हुआ है।
मुंबई में एक कार्यक्रम में दास ने कहा, ‘आरबीआई की जून, 2022 की वित्तीय स्थायित्व रिपोर्ट के अनुसार 180 अरब डॉलर की बकाया ईसीबी में से करीब 44 फीसदी या 79 अरब डॉलर बिना हेजिंग के थी।’ उन्होंने कहा, ‘इसमें करीब 40 अरब डॉलर की देनदारी पेट्रोलियम, रेलवे और बिजली क्षेत्र के सार्वजनिक उपक्रमों की थी, जिनकी परिसंपत्तियां स्वाभाविक तौर पर जोखिम से बची रहती है यानी हेज रहती हैं।’
बाकी करीब 39 अरब डॉलर, जो कंपनियों की कुल बकाया ईसीबी के 22 फीसदी हैं, इसलिए सुरक्षित हैं क्योंकि उन कंपनियों को विदेशी मुद्रा से आय होती है।
दास ने कहा कि इसका मतलब है कि कुल बकाया ईसीबी का काफी छोटा हिस्सा ही सही मायने में हेज किया हुआ नहीं है। आरबीआई गवर्नर ने कहा कि अगर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विदेशी मुद्रा विनिमय का जोखिम होता है तो उसका वहन सरकार द्वारा किया जा सकता है। लेकिन इस तरह के जोखिम की आशंका कम ही है।
दास ने कहा, ‘असुरक्षित विदेशी मुद्रा के लेनदेन से घबराने के बजाय उसे सही संदर्भ में देखना चाहिए।’ उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आरबीआई ने रुपये के किसी विशेष स्तर का लक्ष्य तय नहीं किया है। लेकिन केंद्रीय बैंक सुनिश्चित करना चाहता है कि आरबीआई रुपये में तेज उतार-चढ़ाव और अस्थिरता को बिल्कुल भी बरदाश्त नहीं करेगा।