नई दिल्ली। कॉरपोरेट ऋणशोधन अक्षमता मामलों (Corporate insolvency disability cases) पर लगी रोक खत्म होने में महज 15 दिन बाकी हैं। ऐसे में सरकार से जुड़े सूत्रों ने संकेत दिए हैं कि इस निलंबन को आगे बढ़ाए जाने की संभावना नहीं है। वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार निलंबन अवधि बढ़ाना आर्थिक रूप से व्यवहार्य नहीं होगा क्योंकि इससे दबाव वाली कंपनियों के पुनर्गठन की संभावनाएं प्रभावित हो रही हैं। इसके साथ ही कम समय में कानून में संशोधन करना भी चुनौतीपूर्ण होगा।
विधेयक को दोनों सदनों में पारित करना होगा
ऋणशोधन अक्षमता एवं दिवालिया संहिता (Insolvency and Insolvency Code) (आईबीसी) के निलंबन से संबंधित किसी तरह के बदलाव – अवधि बढ़ाने या नियमों में किसी तरह के अपवाद के लिए विधेयक को दोनों सदनों में पारित करना होगा। अधिकारियों ने संकेत दिए कि इस बारे में कोई हलचल नहीं दिख रही है।
बजट सत्र 8 अप्रैल तक चलेगा
बजट सत्र (Budget session 2021) सोमवार को फिर शुरू होगा और 8 अप्रैल तक चलेगा। सरकार इस बारे में अध्यादेश नहीं ला सकती क्योंकि निलंबन अवधि खत्म होने तक सदन चल रहा होगा। महामारी को देखते हुए आईबीसी की धारा 19ए के तहत कंपनियों को एक साल तक के लिए दिवालिया से सुरक्षा प्रदान करने का प्रावधान किया गया था। यह अवधि 25 मार्च, 2020 से शुरू है।
रियायत की अवधि 24 मार्च, 2021 को खत्म हो रही
शुरुआत में आईबीसी को छह महीने के लिए निलंबित किया गया था, जो सितंबर 2020 को खत्म हो गया। बाद में इसे दो बार तीन-तीन महीने के लिए बढ़ाया गया था। इस रियायत की अवधि 24 मार्च, 2021 को खत्म हो रही। कानून में कहा गया है, ‘निलंबन अवधि में कॉरपोरेट कर्जदार के भुगतान में चूक करने की स्थिति में ऋणशोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया शुरू करने के लिए आवेदन दायर नहीं किए जा सकते।’
भुगतान में चूक की अधिकतम सीमा बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी
हालांकि ऐसी चिंता भी है कि राष्ट्रीय कंपनी विधि न्यायाधिकरण (एनसीएलटी) में मामलों की संख्या बढ़ेगी और निलंबन समाप्त होने के बाद इनका अंबार लग जाएगा। सितंबर 2020 तक एनसीएलटी में 1,942 निगमित दिवालिया मामले विचाराधीन थे, जिनमें 1,400 मामले 270 दिनों से अधिक समय से चल रहे थे। सरकारी अधिकारियों का मानना है कि कोविड-19 प्रोत्साहन पैकेज के हिस्से के तौर पर भुगतान में चूक की अधिकतम सीमा 1 लाख रुपये से बढ़ाकर 1 करोड़ रुपये कर दी थी, इसलिए इससे दिवालिया मामलों की संख्या काफी कम हो जाएगी। खासकर उन मामलों में कमी आएगी जिन्हें परिचालन लेनदारों ने शुरू किए हैं।