जयपुर। कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के बीच भारतीय कंपनी जगत (India Companies) और ऑडिटरों (Auditors) के बीच पारिश्रमिक एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है। इस साल अब तक करीब एक दर्जन कंपनियों ने फीस पर असहमति के कारण ऑडिटरों के इस्तीफों की घोषणा की है। कुछ मामलों में कंपनियों ने अपने ऑडिटरों से वह फीस कम करने को कहा है, जो वे वित्तीय दस्तावेजों के निरीक्षण के लिए वसूलते हैं।
ऑडिटरों ने फीस बढ़ाने की मांग की
हालांकि कुछ मामलों में ऑडिटरों (Auditors) ने फीस बढ़ाने की मांग की है, जिससे दोनों के बीच गतिरोध पैदा हुआ है। कुल मिलाकर इस साल कोविड-19 महामारी के बीच ऑडिटरों (Auditors) के इस्तीफे के लिए सबसे बड़ा कारण बन गया है। कुछ मामलों में कंपनियों में ऑडिटर फीस को लेकर मध्यावधि में ही हट गए हैं।
सूचीबद्ध कंपनियों में कॉरपोरेट कार्रवाई पर नजर रखने वाली
प्राइमइन्फोबेस डॉट कॉम (PrimeInfobase.com) के मुताबिक वर्ष 2020 में अब तक 96 कंपनियों में ऑडिटर बदल चुके हैं। इनमें 24 मामलों में अवधि खत्म होने के बाद ऑडिटरों को बदला गया है। आम तौर पर किसी कंपनी में ऑडिटर की नियुक्ति तीन से पांच साल के लिए होती है। अन्य 11 मामलों में कंपनियों ने नए ऑडिटर नियुक्त कर दिए और पिछले ऑडिटर को हटाने की कोई वजह नहीं बताई। अगर हम ऑडिटरों को हटने के कारणों पर विचार करते हैं तो फीस सबसे बड़ी वजह रही है। इसके बाद दूसरी वजह अधिक व्यस्तता रही है।
अयोग्य घोषित करने के कारण दिए इस्तीफे
कुछ ऑडिटरों ने कंपनियों के सहयोग न करने या उद्योग की संस्था इंस्टीट््यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया (आईसीएआई) के अयोग्य घोषित करने के कारण इस्तीफे दिए हैं। यह पहला ऐसा कैलेंडर वर्ष है, जब भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के ऑडिटरों के इस्तीफे को लेकर नए दिशानिर्देश लागू हुए हैं।
ऑडिटरों के इस्तीफे से संबंधित नियम कड़े
लगातार ऑडिटरों को हटाए जाने की घटनाओं के कारण बाजार नियामक अक्टूबर 2019 में एक परिपत्र जारी किया था, जिसमें सूचीबद्ध कंपनियों में ऑडिटरों के इस्तीफे से संबंधित नियम कड़े किए गए थे। पारिश्रमिक के लिए विशेषज्ञों को हटाने के केवल कुछ मामलों को ही तर्कसंगत ठहराया जा सकता है। हालांकि यह भी संभव है कि कुछ ऑडिटर कंपनियों में दिक्कत होने की वजह से हट रहे हों।
कंपनियां ऑडिटरों से छुटकारा पाने की कर रही कोशिश
एक वोटिंग सलाहकार कंपनी एईएस के संस्थापक और प्रबंध निदेशक जेएन गुप्ता ने कहा, ‘कुछ कंपनियों में यह तर्कसंगत हो सकता है। विशेष रूप से उन कंपनियों में, जिनमें कारोबार कम हो गया है। लेकिन ज्यादातर ऐसे मामले हैं, जिनमें कंपनियां ऑडिटरों से छुटकारा पाने की कोशिश कर रही हैं। हमें नहीं पता कि वे ऐसा क्यों कर रही हैं। पैसा बचाने के लिए या अन्य किसी मकसद के लिए। किसी कंपनी का ऑडिटर से फीस घटाने के लिए कहना उन्हें इस्तीफा देने के लिए बाध्य करने के समान है, जबकि ऑडिटरों की फीस कंपनियों के लाभ की तुलना में नगण्य होती है।’