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Metoo के बाद अब Mentoo, क्या है ये अभियान

पिछले साल अक्टूबर में Metoo अभियान की शुरुआत हुई थी जिसमें महिलाओं ने कार्यस्थल पर अपने साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के मामलों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई थी. इस आवाज़ का माध्यम बना था सोशल मीडिया, जहां महिलाओं ने संबंधित व्यक्ति को टैग करते हुए अपने साथ हुए दुर्व्यवहार के बारे में बताया था. इस साल Mentoo अभियान शुरू हुआ है. 18 मई को दिल्ली के इंडिया गेट पर पुरुषों अधिकारों के लिए काम करने वाले कुछ संगठनों ने एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन किया. इसमें उन्होंने पुरुषों के साथ होने वाले उत्पीड़न, उन पर लगने वाले झूठे आरोपों के निदान और पुरुष आयोग बनाने की मांग की.

क्या है Mentoo-

इस अभियान का नाम Metoo शब्द से ज़रूर मिलता-जुलता है लेकिन इसकी वजहें और मांगें कुछ और हैं. पुरुषों पर लगने वाले यौन उत्पीड़न के गलत आरोपों का मसला पहला भी उठता रहा है लेकिन इस अभियान की शुरुआत अभिनेता और गायक करण ओबरॉय पर लगे रेप के आरोपों के बाद हुई. करण ओबरॉय पर एक महिला ने रेप का आरोप लगाया है. इस मामले की जांच चल रही है. हाल ही में सत्र न्यायालय ने करण ओबरॉय की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. Mentoo अभियान में करण ओबरॉय का समर्थन किया गया है. Mentoo अभियान से पुरुषों की मदद के लिए काम कर रहे कुछ संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता जुड़े हैं. इन्हीं में से एक बरखा त्रेहन इस अभियान की ज़रूरत के बारे में बताती हैं. वह कहती हैं, ”हमारी लड़ाई उन क़ानूनों के ख़िलाफ़ है, जो एकतरफा हैं. जिनमें सिर्फ महिलाओं की बात को महत्व दिया जाता है और महिलाएं इन क़ानूनों का दुरुपयोग कर रही हैं. जैसे यौन उत्पीड़न, रेप और दहेज जैसे क़ानूनों का अपने निजी फायदे के लिए इस्तेमाल होता है. इन मामलों में फंसने के बाद न सिर्फ समाज में पुरुष के सम्मान को चोट पहुंचती हैं बल्कि कई सालों की क़ानूनी लड़ाई में वो मानसिक पीड़ा से भी गुजरता है. अगर वो निर्दोष साबित होता है तो उसके समय, पैसे और मानहानि की भरपाई नहीं हो सकती.” इस अभियान का समर्थन करने वाले मानते हैं कि इन क़ानूनों में पुरुषों की कोई सुनवाई नहीं है. आरोप लगते ही उनका मीडिया ट्रायल शुरू हो जाता है. पुलिस उनकी बात पर भरोसा नहीं करती और न ही उनके पास ऐसी कोई जगह है जहां से वो मदद ले सकें. इस अभियान से जुड़े कपिल सक्सेना पर उनकी जानने वाली एक महिला ने रेप का आरोप लगाया था. दो साल तक चली सुनवाई के बाद वो अंत में रिहा हो गए. उन पर साल 2016 में ये आरोप लगा था. कपिल कहते हैं, ”वो दो साल मैंने कैसे गुजारे ये मैं ही जानता हूं. आसपास वाले मुझे शक की निगाह से देखते हैं. मेरे बच्चे मुझसे ठीक से बात नहीं करते. बस मेरी पत्नी ने हमेशा मेरा साथ दिया. इन दो सालों में मैंने जो कुछ खोया है वो मैं वापस कैसे लाऊंगा.” हेल्पिंग हेंड्स फॉर मैन राइट के अध्यक्ष वीएस सिंह कहते हैं, ”हमारे पास भी ऐसे कई मामले आते हैं जिनमें पति और उसके घरवाले लंबे समय से दहेज जैसे मामलों में फंसे हैं. झगड़ा किसी और बात पर था लेकिन आरोप दहेज का लगा दिया. उस व्यक्ति ज़िंदगी वहीं ठहर जाती है. इस तरह क़ानून के दुरुपयोग पर भी रोक लगनी चाहिए.”

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