अलवर। यूं तो अलवर (alwar) के इतिहास में दोस्ती, दुश्मनी, बहादुरी और सबक की कई कहानियां प्रसिद्ध है। जैसे एक प्रसिद्ध कहानी है रोल्स रॉयल कार (alwar rolls royal car) की जो अलवर वासियों की जुबान से हमेशा सुनी जा सकती है, लेकिन एक कहानी ऐसी भी है। जो रोल्स रॉयल कार की कहानी (rolls royal car story alwar) की तरह ही अंग्रेजी हुकूमत के लिए एक सबक थी एक परेशानी बन गई थी। वह थी एक कुत्ते की कहानी। एक कुत्ता जिसका नाम और जिसका काम दोनों ही कई सालों तक पूरे राजपूताना में चर्चा का विषय बना रहा।
कुत्ते के नाम और काम की कहानी
वर्ष 1925 में अलवर में नींबू चना का प्रसिद्ध आंदोलन (neemboo chana ka prasiddh aandolan 1925) हुआ जिसके बाद अलवर के तत्कालीन राजा महाराजा जयसिंह (Alwar king Maharaja Jai Singh) और अंग्रेजी हुकूमत के बीच में दरार आ गई व वैचारिक मतभेद खड़े हो गये। जिसके बाद महाराजा जयसिंह (Maharaja Jai Singh) ने अंग्रेजों को सबक सिखाने की सोच ली और उनका पालतू कुत्ता जो जर्मन शेफर्ड की नस्ल का उनका बड़ा ही प्रिय कुत्ता था। जिसे वह प्यार से समीर कहकर पुकारते थे उन्होंने उसका नाम उस वक्त के ब्रिटिश सरकार के द्वारा नियुक्त राजपूताना के एजेंट लॉर्ड विक्टर (Agent lord victor) के नाम पर रख दिया।
अंग्रेजी हुकूमत और लोड विक्टर को बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी
धीरे-धीरे आसपास में यह खबर फैलने लगी और नाम का मजाक और उसकी चर्चा अलवर वासियों के बीच में खूब होने लगी। जिसकी वजह से अंग्रेजी हुकूमत और लोड विक्टर को बड़ी शर्मिंदगी उठानी पड़ी। लेकिन कहते हैं ना सनक और सबक की सीमा नहीं होती है। महाराजा जय सिंह (Maharaja Jai Singh) का भी गुस्सा वही नहीं थमा। उन्होंने लॉर्ड विक्टर (Agent lord victor) की और भी ज्यादा बेज्जती करने के लिए लोड विक्टर नाम से प्रसिद्ध हो रहे उस कुत्ते को किले पर मौजूद तोप को चलाना सिखा दिया। जिसके बाद हर दिन अलवर वासियों को समय बताने के लिए उस कुत्ते से अलवर की सबसे बड़ी तोप को दिन के तीन पहर तोप को चल वाया जाता।
तोप के अत्यधिक गर्म होने से फट गई
धीरे धीरे यह बात पूरे राजपूताना में फैल गई, अब कुत्ते का नाम और उसका काम अंग्रेजी हुकूमत के लिए एक सिर दर्द बन गया था। कुछ सालों तक कुत्ते का नाम और उसके द्वारा तोप चलाए जाना अंग्रेजों के एजेंट लोड विक्टर के लिए समस्या बना रहा। लेकिन एक दिन तोप के अत्यधिक गर्म हो जाने की वजह से तो फट गई और समीर नाम का वह कुत्ता जिससे लॉर्ड विक्टर के नाम से पहचाना जाने लगा था वह मर गया।
बाला किला के पास ही चबूतरा नुमा स्मारक
बाद में 1940 में उसकी याद में बाला किला (Bala Kila) के पास ही चबूतरा नुमा स्मारक को बनवाया गया। जो आज भी वर्तमान में बाला किला (Bala Fort) से 100 मीटर की दूरी पर स्थित है। वही पर वह फटी हुई तोप भी रखी हुई है जिसे आज लोग दूर-दूर से देखने तो आते हैं लेकिन लोग उसकी पूरी कहानी नहीं जानते हैं इसीलिए तो कहते हैं ना कुछ कहानियां बस यूं ही इतिहास में दबी रह जाती है।
जानकारी का स्त्रोत इतिहासकार एडवोकेट हरिशंकर गोयल जी की कलम से
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