जयपुर। देश के भीतर ही ज्यादा से ज्यादा व्यापार को बढ़ा कर हमारा देश आने वाले समय में पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनेगा। इसके लिए नए स्टार्टअप्स, मुद्रा योजना के जरिए आसान Loan और सभी उद्योगों के लिए ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के जरिए अवसर पैदा किए जाएंगे। हालांकि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (Global Hunger Index) (जीएचआई) 2019 ने कुछ चेतावनी भरे तथ्य उजागर किए हैं। इस इंडेक्स में भूख के आधार पर 117 देशों की रैकिंग (117 countries ranked on the basis of hunger) की गई है और इसमें भारत 102 वें स्थान पर है। ब्रिक्स देशों (BRICS countries) में भारत (India) की रैंकिंग सबसे कम है।
जीएचआई इंडेक्स पांच वर्ष से कम बच्चों पर आधारित
जीएचआई इंडेक्स पांच वर्ष से कम आयु वाले ऐसे बच्चों पर आधारित होता है, जिनका वजन और लम्बाई निर्धारित मापदण्ड से कम है। ऐसे पर्याप्त तथ्य हैं जो यह बताते हैं कि भुखमरी का शिक्षण व्यवस्था प्रभाव पड़ता है। जो दिमाग सही ढंग से विकसित नहीं हो पाते, उन्हें उचित मूलभूत ढांचे और दिमाग का सही विकास नहीं होने के कारण मूल शिक्षा भी सही ढंग से नहीं मिल पाती।
डब्लूएचओ की रिपोर्ट
डब्लूएचओ की रिपोर्ट कहती है कि पांच वर्ष से कम आयु के ऐसे 155 मिलियन बच्चे हैं, जो अपनी लम्बाई के अनुसार कम वजन के हैं और 50 मिलियन बच्चे अविकसित हैं। अपनी स्थिति और पर्याप्त शारीरिक विकास नहीं होने के कारण वे आठ वर्ष तक पढऩे की स्थिति में भी नहीं आ पाते। यही कारण है कि भोजन और शिक्षा आपस में एक दूसरे पर निर्भर है और यदि इसका प्रबंधन सही ढंग से नहीं किया गया तो नए भारत के लिए चुनौती बन सकता है।
भोजन संबंधी समस्याएं
- समूह जो भोजन करते हैं, उन्हें उसके महत्व के बारे में शिक्षित करना और उनके भोजन के अधिकार को सुरक्षित रखने के लिए उन्हें सशक्त बनाना।
- जिन प्रभावित समुदायों का भोजन की उचित आपूर्ति का अधिकार सुरक्षित नहीं रह पाता, उनकी ओर से उनकी पैरवी करना।
- प्रभावित होने वाले समुदायों की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अर्थपूर्ण पहल करना जैसे कम्युनिटी गार्डन प्रोग्राम।
- विभिन्न सम्बद्ध पक्षों के बीच ऐसी स्थितियां बनाना जो वैश्विक और स्थानीय स्तर पर खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके।
भारतीय शिक्षण व्यवस्था और भोजन
इस गम्भीर विषय की गभ्भीरता समझने के लिए इसे बिल्कुल ग्रासरूट स्तर से समझना होगा, उदाहरण के लिए शिक्षण व्यवस्था। अभी भारत में जो व्यवस्था है, उसमें कमियां हैं और यह उन बातों पर फोकस नहीं कर रही है कि हमें क्या खाना चाहिए और कितनी मात्रा में खाना चाहिए। चूंकि हमारी समझ और जानकारी किताबां और लेक्चर्स से आती है, ऐसे में भोजन और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े पाठयक्रम आज के समय की बहुत बड़ी जरूरत है।
खाई कम करना
अंतिम स्थान पर पहुंचने के लिए सिर्फ विकसित दिमाग ही नहीं, बल्कि स्वस्थ शरीर भी चाहिए। एक अध्ययन बताता है कि एशिया पैसेफिक क्षेत्र में 516.5 मिलियन कुपोषित लोग रहते हैं। वहीं 239 मिलियन कुपोषित लोग अफ्रीका के उप सहारा क्षेत्र में रहते हैं। पूरे विश्व में 821.6 मिलियन लोग ऐसे हैं जो कुपोषित हैं या भुखमरी के शिकार हैं। यह तय है कि जब संसाधन और दिमाग साथ आएंगे, तो ऐसी दिक्कतें दूर होंगी। हमें अच्छी नीतियां और नियम चाहिए जो सही ढंग से लागू किए जाएं।
नारायण सेवा संस्थान
इस लेख के लेखक प्रशांत अग्रवाल (Prashant Agrawal) नारायण सेवा संस्थान (Narayan Seva Sansthan) के अध्यक्ष हैं जो कि एक स्वयंसेवी संस्थान है जो दिव्यांगों और निर्धन लोगो की सहायता करता है।