जयपुर. 2014 के आम चुनावों में भाजपा का वादा भूल जाइए, क्योंकि नौकरियां देना सरकार के हाथ में नहीं है। रोजगार तो निजी क्षेत्र में ही पैदा होते हैं। एक जमाना था जब सरकार नौकरियां बांटती थी तो रोजगार बढ़ते थे। उस समय निजी क्षेत्र उतने महत्वपूर्ण नहीं थे। लेकिन, अब रोजगार निजी क्षेत्र में ही बढ़ते हैं। सरकारी नौकरियों की बात करें तो देश के मौजूदा हालात को देखते हुए चार क्षेत्रों में रोजगार देना सरकार के हाथ में है। लगभग सभी प्रदेशों में पुलिसकर्मियों और जजों की जरूरत है। स्वास्थ्य क्षेत्र में डॉक्टरों और खासकर नर्सों की ज्यादा जरूरत है। इसी तरह माध्यमिक स्तर पर शिक्षकों की बहुत कमी है, विशेषकर साइंस, टेक्नोलॉजी और गणित के शिक्षकों की। इन चारों क्षेत्रों में नौकरी बढऩे की बहुत आवश्यकता है। लेकिन, अफसोसनाक यह है कि कोई भी सरकार इनक्षेत्रों को अधिक वित्तीय सहायता देने को तवज्जो नहीं देती है। अब बात निजी क्षेत्र की किसी भी अर्थव्यवस्था के तीन हिस्से होते हैं। कृषि, उद्योग और सेवा क्षेत्र। जैसे-जैसे विकास होता है और प्रति व्यक्ति आय बढ़ती है तो यह लाजिमी है कि कृषि में काम कर रहे लोगों की संख्या कम हो। यह अच्छी बात भी है। यह भ्रम है कि कृषि में लोग कम होंगे तो पैदावार कम हो जाएगी। ऐसा कभी नहीं होता। सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान केवल 14 फीसदी है, जबकि 2015-16 में देश की 47 फीसदी कामगार आबादी कृषि से जुड़ी थी। जब 47 फीसदी कामगार आबादी सकल घरेलू उत्पाद में केवल 14 फीसदी का योगदान दे रहे हैं तो साफ है कि उत्पादकता बहुत कम है। यह अर्थव्यवस्था की खस्ताहाली ही जाहिर करती है। बहुत जरूरी है कि लोग कृषि क्षेत्र से बाहर आएं। लेकिन, कृषि क्षेत्र लोग तभी छोड़ेंगे जब गैर-कृषि क्षेत्रों में नौकरियां बढ़ रही हों।
कंस्ट्रक्शन ने बदला सिनेरियो- 2005-12 के बीच करीब 50 लाख लोग हर साल कृषि छोड़ रहे थे। ऐसा कंस्ट्रक्शन में निवेश बढऩे के कारण हुआ। इससे मजदूरी दर भी बढ़ी। इसका फायदा यह हुआ कि गरीबी रेखा के नीचे गुजर-बसर करने वाले परिवारों की सं या कम हुई। ऐसा 2004 तक कभी नहीं हुआ था। भारत की जनसं या में गरीबों का अनुपात भले कम हो रहा था, लेकिन गरीबों की कुल संख्या में कोई कमी नहीं आ रही थी। नेशनल लेबर ब्यूरो के सैंपल सर्वे के 2015-16 के आंकड़े बताते हैं कि 2011-12 से 2015-16 के बीच लोग कृषि तो छोड़ रहे थे, लेकिन कंस्ट्रक्शन में रोजगार पाने वालों की संख्या में भारी कमी आई। यह संख्या 50 लाख से गिरकर 10 लाख हो गई। ऐसा निवेश कम होने के कारण हुआ। सरकार ऐसा माहौल नहीं बना पाई, जिससे कंस्ट्रक्शन में निवेश होता रहे।
एेसे बढ़ती है नौकरियां- नौकरियां तेजी से तब बढ़ती हैं जब निवेश की दर खासकर निजी क्षेत्र में बढ़ती है। 2002-03 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 24 फीसदी निवेश की अनुपात दर थी। यह बड़ी तेजी से बढ़कर 2007-08 में 38 फीसदी पर पहुंच गया। निवेश दर जब इतनी तेजी से बढ़ती है तो नौकरियां भी बढ़ती हैं। 2008 में वैश्विक मंदी के कारण निवेश दर गिरी। 2013-14 में यह करीब 34 फीसदी थी। इसके बाद से गिरकर आज 29 फीसदी तक आ चुकी है। 2003-04 से 2011-12 के बीच औसत विकास दर आठ फीसदी थी। उसमें भी कमी आई है। लिहाजा रोजगार में वृद्धि की दर कम हो गई है। 2004-05 से 2011-12 के बीच औसतन 75 लाख नई नौकरियां हर साल गैर कृषि क्षेत्र में पैदा हो रही थीं। आज गैर कृषि क्षेत्र में केवल सालाना 25 लाख नौकरियां पैदा हो रही हैं।
घोष एंड घोष का अध्ययन – करीब चार-पांच महीने पहले घोष एंड घोष का एक अध्ययन आया था, जिसमें दावा किया था कि 75 लाख रोजगार हर साल पैदा हो रहे हैं। इस बात में कोई दम नहीं था। असल में हुआ यह है कि जीएसटी लागू होने के बाद असंगठित क्षेत्र की छोटी-छोटी इकाइयां पंजीकृत होकर संगठित क्षेत्र में आ गई हैं। यह अच्छी बात है। लेकिन इसी आधार पर घोष एंड घोष ने नए रोजगार पैदा होने का दावा कर दिया, जबकि यह केवल असंगठित क्षेत्र का संगठित क्षेत्र में परिवर्तन था। वित्त मंत्रालय के आर्थिक सर्वेक्षण से भी इस बात की पुष्टि हुई कि जीएसटी के बाद संगठित क्षेत्र में इकाइयों की संख्या बढ़ गई। इससे संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ते दिखाई पड़ रहे हैं लेकिन ये इकाइयां रातोरात खड़ी नहीं हुई थीं और न ही नए रोजगार पैदा हुए थे। सीएमआइई के भी आंकड़े बता रहे हैं कि नौकरियों में बढ़ोतरी नहीं हो रही।
स्टार्टअप इंडिया भी फेल- स्टार्टअप इंडिया, मुद्रा जैसी योजनाओं से भी फायदा होता नहीं दिख रहा। मुद्रा के तहत काफी पैसे बांटे गए हैं। लेकिन, इस योजना में औसतन व्यक्ति को 17 हजार रुपये का कर्ज मिल रहा है। अर्ध शिक्षित युवा इतने पैसे से एकाध महीने अपना जीवन-यापन तो कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के लिए रोजगार पैदा नहीं कर सकते। यही पैसा स्वयंसेवी समूहों को देकर उन्हें सुदृढ़ किया जाए तो काफी फायदा होगा। लघु उद्योगों को कर्ज नहीं मिलता तो उनको क्यों न इसका पैसा दिया जाए। क्योंकि जैसे-जैसे उनकी उन्नति होगी वे ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार देंगे। यानी इस सरकार की कोशिशें रोजगार पैदा करने में बहुत सफल नहीं हुई हैं। लेकिन यह कहना जरूरी है कि सरकार ने असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सामूहिक सुरक्षा देने के लिए एक कानून जरूर तैयार किया है, जिसे शीघ्र लागू करना देशहित और मजदूरों के लिए बहुत अच्छा होगा ।