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बदलेगी मॉनसून आने-जाने की तारीख!

नई दिल्ली। देश के मॉनसून पर जलवायु परिवर्तन और अन्य विषमताओं के बढ़ते प्रभाव के कारण भारतीय मौसम विभाग देश के कुछ हिस्सों में मॉनसून की शुरुआत और वापसी की मौजूदा तारीखों में बदलाव करने पर विचार कर रहा है, लेकिन इसका कोई असर न तो बारिश की पूरी अवधि पर होगा और न ही बारिश की कुल मात्रा पर। मौसम विभाग के वरिष्ठï अधिकारियों ने कहा कि इस बदलाव से केरल में मॉनसून आगमन की तारीख पर भी शायद कोई असर न पड़े जो 1 जून होती है, लेकिन मॉनसून के बदलते रुख के बाद देश के मध्य और उत्तरी भागों में इसकी शुरुआत होने, आगे बढऩे और लौटने की तारीख में बदलाव किया जा सकता है।

1 जून को देश में प्रवेश करने के बाद बारिश 5 जून से 15 जून के बीच मध्य और पश्चिमी भारत का बड़ा हिस्सा अपनी जद में ले लेती है और 1 जुलाई से उत्तर भारत में प्रवेश करती है। इन तारीखों को कुछ आगे खिसकाया जा सकता है। फिलहाल दक्षिण-पश्चिम मॉनसून 1 जून को भारत में प्रवेश करने के बाद भारतीय प्रायद्वीप में अपना चार महीने का सफर पूरा करने के बाद 1 सितंबर से लौटना शुरू कर देता है। आम तौर पर उम्मीद की जाती है कि 15 जुलाई तक यह देश के सभी हिस्सों तक पहुंच जाएगा, लेकिन पिछले कुछेक सालों से मध्य और उत्तर भारत में इसकी प्रगति में देरी हुई है, फिर भले ही केरल तट पर यह समय पर ही क्यों न पहुंचता हो। यही वजह है कि देश के कुछ हिस्सों में इसकी शुरुआत और वापसी की नई तारीखों की उम्मीद की जा रही है।

मौसम विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक यह सुधार इसलिए किया जा रहा है ताकि किसानों को मॉनसून के आगमन और वापसी के बारे में सही जानकारी प्रदान की जा सके जिससे उन्हें खासकर बारिश पर आधारित पश्चिमी, मध्य और उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में बुआई का निर्णय लेने के लिए जानकारी दी जा सके। लेकिन कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि मॉनसून की शुरुआत और वापसी की तारीखों में बदलाव से खेती के कार्यक्रम और किसानों के फसल कटाई के समय पर काफी असर पड़ सकता है।

पूर्व कृषि सचिव शिराज हुसैन ने कहा कि अगर खरीफ फसल की बुआई में देरी हो जाए तो होगा यह कि इससे रबी का कार्यक्रम पीछे खिसक जाएगा और अगर तापमान में तेजी से इजाफा होता है तो खास तौर पर गेहूं जैसी फसलों की देरी से होने वाली बुआई के कारण आखिरी पैदावार को नुकसान पहुंच सकता है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन ने बताया कि अच्छी खबर यह है कि बारिश की कुल मात्रा 887-889 मिलीमीटर के स्तर पर बनी रहेगी और मॉनसून का मौसम चार महीने तक बना रहेगा। बारिश की बदलते प्रारूप की वजह से केवल कुछ हिस्सों में सामान्य शुरुआत और वापसी की तारीखों में बदलाव किया सकता है। इसलिए जून से सितंबर के बजाय देश के कुछ हिस्सों में मॉनसून का यह सीजन जुलाई से अक्टूबर तक या शायद जुलाई के मध्य से सितंबर के मध्य तक हो सकता है। राजीवन ने कहा कि आमतौर पर हम हर 10 साल के बाद किसी क्षेत्र में होने वाली सामान्य बारिश में परिवर्तन करते हैं और नवीनतम 50 साल का औसत लेते हैं, लेकिन लंबे समय बाद के बाद विभिन्न क्षेत्रा के लिए मॉनसून शुरुआत की तारीख पर विचार किया जा रहा है, विशेष रूप से देश के उत्तरी और मध्य भागों के लिए क्योंकि पिछले कुछेक सालों से इन भागों में मॉनसून आगमन में देरी हो रही है।
उन्होंने कहा कि मौसम विभाग द्वारा गठित विशेषज्ञों के एक उच्च-अधिकार संपन्न समूह ने देश के कुछ हिस्सों में मॉनसून की शुरुआत और वापसी की नई तारीखों के संबंध में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की है जिसका मूल्यांकन किया जा रहा है और इस पर अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि अगर ये बदलाव होते हैं तो कृषि मंत्रालय को मध्य और उत्तर भारत के लिए फसल बुआई की अपनी सलाह में परिवर्तन करना पड़ेगा। इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (आईजीआईडीआर) के निदेशक महेंद्र देव ने बताया कि कृषि मंत्रालय को बुआई कार्यक्रम में बदलाव के बारे में किसानों को जानकारी देने के लिए उचित परामर्श देना चाहिए। हमें यह बात भी ध्यान में रखनी है कि क्या लंबे समय से यह रुख चला आ रहा है। पंजाब में किसानों ने पहले से ही पहली बारिश होने के बाद ही धान की बुआई शुरू कर दी है। लेकिन मेरा मानना है कि शायद कुल फसल उत्पादन में बदलाव न हो क्योंकि यह सीजन चार महीने का ही होगा।

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