जयपुर। जैन धर्म में चातुर्मास सामूहिक वर्षायोग या चौमासा के रूप में भी जाना जाता है। भगवान महावीर ने चातुर्मास को इसिणां पसत्था कहा है। इस साल जैन चातुर्मास 16 जुलाई से प्रारंभ हुआ है। इसी माह की 28 तारीख को रोहिणी व्रत भी पड़ेगा। हम सभी जानते हैं कि जैन साधु-संत जनकल्याण और धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए पूरे वर्ष एक स्थान से दूसरे स्थान पर भ्रमण करते रहते हैं। अहिंसा और जीवों पर दया को ही जैन धर्म का आधार माना गया है। ऐसे में जैन मुनि इस चातुर्मास में एक जगह रुककर लोगों को सत्य, अहिंसा और ब्रम्हचर्य आदि विषयों पर सद्ज्ञान देते हैं।
जनकल्याण और जीवों पर दया से है जुड़ाव
चूंकि वर्षा ऋतु के दौरान तमाम तरह कीड़े-मकौड़े और छोटे जीव की अधिकता होती है और उन्हें किसी प्रकार का नुकसान न पहुंचने पाए, इसी सोच के साथ जैन मुनि चातुर्मास में रहते हैं। जीवों के प्रति इसी भावना और जनकल्याण के उद्देश्य से पूज्य जैन मुनि और साध्वी 4 महीने के लिए किसी एक स्थान विशेष पर रुककर तप, साधना, स्वाध्याय, प्रवचन आदि करते हैं।
चातुर्मास में ही पड़ेगा यह बड़ा पर्व
इसी चातुर्मास के दौरान 8 दिवसीय पर्युषण महापर्व भी पड़ता है, जो इस बार 27 अगस्त से प्रारंभ होकर 3 अगस्त तक चलेगा। जैन धर्म से जुड़े श्वेताम्बर संप्रदाय से जुड़ा पर्यूषण पर्व 8 दिन तक चलता है। इसके बाद दिगंबर संप्रदाय वाले 10 दिन तक पर्यूषण मनाते हैं। जिसे ‘दसलक्षण धर्म’ कहा जाता है।
इन नियमों का करना होता है पालन
चातुर्मास में तप-साधना आदि के साथ कुछ नियमों का पालन भी करना होता है। जैसे पूरी अवधि में सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करते हुए दिन में सिर्फ एक बार भी ही घर में बना भोजन करना होता है। इस पूरी अवधि में क्रोध, झूठ, ईर्ष्या, अभिमान आदि से बचना होता है। चातुर्मास के दौरान मौन साधना का विशेष महत्व है, इसलिए अधिक से अधिक मौन रखना होता है। तमाम तरह की भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग करते हुए सादा जीवन जीना, उच्च विचार की राह पर चलना होता है। इन चार महीनों हरी सब्ज्यिों का सेवन मना होता है।