नई दिल्ली। देश में रेंटल हाउसिंग को बढ़ाने और किराएदार व मकान मालिक के अधिकारों के बीच संतुलन कायम करने के मकसद से लाए जा रहे मॉडल टेनंसी ऐक्ट (MTA) से फिलहाल उन मालिकों को राहत मिलती नहीं दिख रही, जो दिल्ली की लाखों दुकानों की दशकों पुरानी टेनंसी को व्यापारियों का अवैध कब्जा बताते रहे हैं। मकान मालिकों के संगठनों ने ड्राफ्ट टेनंसी ऐक्ट को यह कहकर सिरे से खारिज कर दिया है कि इसके दायरे से पुराने किराएदारों को बाहर रखा गया है। हालांकि इस बारे में एमटीए के पिछले ड्राफ्ट और केंद्र सरकार की ओर से हालमें जारी प्रेस नोट में अंतर है।
संगठनों का दावा है कि सरकार ने प्रेस नोट में मौजूदा टेनंसी को नए कानून के दायरे से बाहर रखने की बात डालकर एक वर्ग विशेष को खुश करने की कोशिश की है। कमिटी फॉर रिपील ऑफ दिल्ली रेंट कंट्रोल ऐक्ट (CRDRCA) की प्रेजिडेंट शोभा अग्रवाल ने कहा कि हमने इस ड्राफ्ट ऐक्ट को पूरी तरह खारिज करने का फैसला किया है, क्योंकि इसमें जानबूझकर दिल्ली और मुंबई के उन लाखों मकान मालिकों को बाहर रखा गया है, जो आज भी अपनी बहुमूल्य प्रॉपर्टीज के कब्जेदारों से नाम-मात्र पैसे लेकर खुद गरीबी में जीने को मजबूर हैं। ऐक्ट में एक और खामी यह दिख रही है कि सरकार ने नए और पुराने किराएदारों को अलग-अलग रखकर सियासी फायदा उठाने की कोशिश की है। उन्होंने बताया कि हाल में जारी सरकारी नोट में साफ कहा गया है कि मौजूदा टेनंसी पर इसका कोई असर नहीं होगा, जबकि दूसरी ओर अभी तक ड्राफ्ट के टेक्स्ट में इस साफगोई से बचने की कोशिश की गई थी। अगर यह पुरानी टेनंसी पर लागू नहीं हुआ तो इसका मकसद ही खत्म हो जाएगा।
हाउस ओनर्स असोसिएशन के सचिव वेद प्रकाश शर्मा ने बताया कि दिल्ली रेंटकंट्रोल ऐक्ट-1958 मंथली 3500 रुपये से ज्यादा के किराए पर लागू नहीं होता और आज दिल्ली में इस किराए पर एक मामूली कमरा भी नहीं मिलता। ऐसे में 6-8 दशक पहले किराए पर दी गईं प्रॉपर्टीज और उन पर मिल रहे सौ-दो सौ किराए को रेग्युलेशन के दायरे में नहीं लाया गया तो कानून का कोई मकसद पूरा नहीं होगा।