नई दिल्ली। संकट में फंसी दीवान हाउसिंग फाइनैंस कॉर्पोरेशन (डीएचएफएल) में निवेश वाली म्युचुअल फंड (एमएफ) इकाइयां बैंकों से अलग रुख अपनाते हुए मामले के समाधान के लिए कर्ज वसूली पंचाट (डीआरटी) में जाने के विकल्प पर विचार कर सकती है। बैंकों और म्युचुअल फंडों के बीच अपने हितों की सुरक्षा के लिए उपयुक्त राह निकालने के लिए बैठक होगी। डीएचएफ बॉन्ड के डिबेंचर न्यासियों – कैटेलिस्ट ट्रस्टीशिप और आईडीबीआई ट्रस्टीशिप भी इस पर अपनी राय दे सकते हैं। यह मसला शुक्रवार को बैंकरों और एमएफ के साथ एसबीआई कैपिटल मार्केट्स द्वारा आयोजित बैठक में उठा। एसबीआई कैपिटल डीएचएफएल की परामर्शक है। कुछ एमएफ ने कहा कि वह बैंकों के साथ साझा प्रावधानों के बजाय डीआरटी में जाने का विकल्प तलाशेंगे। डीएचएफएल में म्युचुअल फंडों का 4,000 करोड़ रुपये से अधिक फंसा हुआ है।
एक वरिष्ठ बैंकर ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर कहा कि म्युचुअल फंड अलग राह अपना सकते हैं, जिससे समाधान की पूरी प्रक्रिया पटरी से उतर सकती है। उम्मीद की जा रही थी अंतर-ऋणदाता समझौते पर काम किया जा रहा है लेकिन अभी इस पर हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं। अगर म्युचुअल फंड भी समाधान में एक पक्ष के तौर पर शामिल होते तो समाधान जल्द होने की संभावना थी। डीएचएफएल में करीब 90,000 करोड़ रुपये का निवेश है जिनमें बैंकों की हिस्सेदारी करीब 40,000 करोड़ रुपये है। बाकी पैसा म्युचुअल फंडों, भविष्य निधियों और खुदरा निवेशकों का लगा हुआ है। इसमें गैर-ऋणदाता कर्जदारों के शामिल होने से डीएचएफएल का मामला पेचीदा हो गया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के 7 जून के परिपत्र में अंतर ऋणदाता समझौते में गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों, लघु वित्त बैंक, राष्ट्रीय बैंक, नाबार्ड, एक्जिम बैंक आदि का उल्लेख है लेकिन इसमें म्युचुअल फंडों के शामिल होने की बात नहीं की गई है। एक अन्य बैंकर ने कहा, ‘म्युचुअल फंड अंतर-ऋणदाता समझौता का हिस्सा नहीं बन सकते, ऐसे में हम समान आधार पर नुकसान उठाने का रास्ता तलाश सकते हैं।’ उनको डर है कि अगर म्युचुअल फंड अपनी अलग राह अपानते हैं तो बैंकों की समाधान योजना प्रभावित हो सकती है। इसके साथ ही अगर एक साल के अंदर इस पर काम नहीं किया तो बैंकों को अतिरिक्त 35 फीसदी, 180 दिन के अंदर ऐसा नहीं होने पर 20 फीसदी का प्रावधान करना पड़ सकता है।
सूत्रों के अनुसार डीएचएफएल के कर्ज पुनर्गठन पर भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) हाल के समय में म्युचुअल फंडों के प्रवर्तकों के साथ ‘यथास्थिति’ वाले समझौते करने पर नाखुशी जता चुका है। दूसरी ओर अंतर-ऋणदाता समझौता होने से संकटग्रस्त कर्जदार को अपनी देनदारी पूरी करने के लिए मोहलत मिल जाती है। अंतर-ऋणदाता समझौता का प्रारूप बैंकों के लिए बाध्यकारी है लेकिन संस्थागत निवेशकों जैसे म्युचुअल फंडों और भविष्य निधियों के साथ ऐसी बाध्यता नहीं है। उद्योग से जुड़े अधिकारियों के अनुसार अगर म्युचुअल फंड अंतर-ऋणदाता समझौता में भागीदारी में सक्षम नहीं होते हैं तो वे निवेशकों के पैसे की वसूली के लिए कानूनी विकल्प तलाश सकते हैं। सूत्रों ने कहा कि इसीलिए कर्ज वसूली पंचाट में जाने के विकल्प पर विचार किया जा रहा है।