नई दिल्ली. किसी भी स्टार्टअप कंपनी का सपना होता है फंड जुटाना। उनकी कोशिश होती है कि ब्रांड को मजबूत बनाकर वे ज्यादा से ज्यादा फंड हासिल कर सकें। लेकिन इस मामले में ओला थोड़ी अलग कंपनी निकली।
क्या है मामला?
बात यह है कि ओला ने चीन सॉफ्टबैंक की फंडिंग लेने से इनकार कर दिया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि ओला के फाउंडर भाविश अग्रवाल ने जापान के सॉफ्टबैंक से फंड नहीं लिया। दरअसल अग्रवाल नहीं चाहते थे कि ओला में उनकी स्वतंत्रता कम हो। मासायोशी सन की लीडरशिप में सॉफ्टबैंक शुरुआती दौर में ओला में निवेश कर चुका है। लेकिन अग्रवाल अब कोई पैसा नहीं लेना चाहते हैं क्योंकि और पैसा लेने का मतलब कंपनी में जापानी ग्रुप का दबदबा बढ़ना। अग्रवाल के फिक्र की दूसरी वजह यह थी कि सॉफ्टूबैंक ने ऊबर में भी स्टेक ले रखा है। और वह दोनों कंपनियों को मर्जर के लिए प्रोत्साहित कर रहा था।
क्या था सॉफ्टबैंक का प्लान?
सॉफ्टबैंक 1.1 अरब डॉलर यानी 7.6 अरब रुपए का नया निवेश करके ओला में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर 40 फीसदी करना चाहता है। लेकिन अग्रवाल चाहते थे कि कंपनी पर उनका नियंत्रण बना रहे। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इस पर दोनों के बीच बात बिगड़ गई। अग्रवाल सॉफ्टबैंक से पैसा ना लेकर छोटे-छोटे निवेशकों को जोड़ रहे हैं। इस साल वह ह्यूंडई से 30 करोड़ डॉलर का फंड हासिल कर चुके हैं। इसके साथ ही फ्लिपकार्ट ऑनलाइन सर्विसेज के को-फाउंडर सचिन बंसल से 9 करोड़ डॉलर का फंड जुटा चुके हैं। हालांकि बेंगलुरु की कंपनी ओला ने इस बात से इनकार कर दिया कि जापानी कंपनी के साथ कोई मतभेद है। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि जब भी मिस्टर सन भारत आते हैं अग्रवाल उनसे दूरी बनाकर रखते हैं। ईटी के मुताबिक कुछ हफ्ते पहले ही सॉफ्टबैंक के निवेश वाली कंपनियों के फाउंडर्स की मुलाकात थी। इस में सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी शामिल थे। लेकिन अग्रवाल इस बैठक में नहीं आए थे। इस बारे में अग्रवाल का कहना है कि उन्होंने सॉफ्टबैंक के निमंत्रण को सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि वह दिल्ली नहीं आए थे। लोगों का यह भी कहना है कि सॉफ्टबैंक के मामले में सलाह लेने अग्रवाल स्नैपडील के फाउंडर्स से भी मिले थे। स्नैपडील और फ्लिपकार्ट का मामला भी बिल्कुल ओला और उबर की तरह था। सॉफ्टबैंक ने दोनों ई-कॉमर्स कंपनियों में निवेश किया और स्नैपडील पर फ्लिपकार्ट के साथ मर्जर का दबाव बनाया। नतीजा स्नैपडील का नाम खत्म हो गया। अग्रवाल यह नहीं चाहते कि सॉफ्टबैंक अपनी हिस्सेदारी बढ़ाकर ओला को ऊबर में मिला दें।