नई दिल्ली. अवैध जमाओं पर रोक लगाए एक महीना हो चुका है लेकिन अब भी कुछ सवाल अनुत्तरित हैं। सवाल ये हैं कि सराफों द्वारा ग्राहकों से ली जाने वाली जमाएं स्वीकार्य हैं विशेष रूप से उस स्थिति में जब सराफे विनियमित नहीं हैं। शुरुआत में सराफ इस बात से डरे हुए थे कि यह रोक उन पर भी लागू है क्योंकि उनकी मासिक जमा योजनाएं भी अवैध हैं। इस वजह से इस महीने की शुरुआत में करीब दो सप्ताह तक मासिक जमा योजनाओं को बंद कर दिया गया था लेकिन अब सराफों ने फिर से जमाएं स्वीकार करना शुरू कर दिया है। सोने के आभूषण विनिर्माता बहुत सी मासिक जमा योजनाएं चला रहे हैं ताकि उनके पास कार्यशील पूंजी के लिए पूंजी उपलब्धता में सुधार हो और ग्राहक योजना की परिपक्वता पर आभूषण खरीद सकेें। टाटा की कंपनी टाइटन तनिष्क ब्रांड के नाम से आभूषणों और फैशन एक्सेसरीज की बिक्री करती है। यह ग्रााहकों के लिए गोल्डन हार्वेस्ट योजना चला रही है जिसमें कम से कम 10 महीनों के लिए हर महीने 2000 रुपये जमा कराने होते हैं। कंपनी योजना को 11वें महीने में भुनाने के समय पहली किस्त 55 से 75 फीसदी के बराबर छूट देती है। इसी तरह त्रिभुवनदास भीमजी जवेरी (टीबीजेड) की योजना में ग्राहकों को 9 महीनों तक हर महीने 1,000 रुपये जमा कराने होते हैं। इसके बाद कंपनी 10वें महीने में पहली किस्त का 75 फीसदी पैसा मुहैया कराती है। एक अन्य सराफ वामन हरि पेठे ग्राहकों को 12 महीनों तक नियमित जमा पर एक महीने की किस्त के बराबर राशि मुहैया कराता है। अन्य सराफे भी ऐसी ही योजनाएं चलाते हैं जिनमें ग्राहकों को लुभाने के लिए विभिन्न पेशकश की जाती हैं। खेतान ऐंड कंपनी में पार्टनर अभिषेक ए रस्तोगी ने कहा परिभाषा के हिसाब से सराफों द्वारा स्वीकार की जाने वाली सभी जमाएं अध्यादेश के दायरे में आएंगी। इसलिए सरकार को इस बारे में विचार करना चाहिए कि वह किन्हें जमाओं की परिभाषा के दायरे में नहीं लाना चाहती है। इसके अपवादों की एक अनुसूची बनाई जानी चाहिए या दोस्तों से ऋण लेने और आभूषण योजनाओं आदि के लिए मौद्रिक सीमा तय की जानी चाहिए। देश के राष्ट्रपति ने फरवरी में अध्यादेश जारी किया है। इसमें जमाओं को परिभाषित किया गया है। इसमें कहा गया है कि किसी जमाकर्ता द्वारा अग्रिम या ऋण या अन्य किसी रूप में इस वादे के साथ धनराशि प्राप्त करना है कि वह एक निश्चित समयावधि में उसे नकद या किसी सेवा के रूप में यह धनराशि लौटाएगा। यह धनराशि ब्याज, बोनस लाभ समेत या उसके बिना हो सकती है। यह भाषा यह बताती है कि अध्यादेश के दायरे में सराफों की जमाएं भी आती हैं और इसे मंजूरी नहीं है। हालांकि सराफों ने रास्ता निकाल लिया है। वे इसे अग्रिम बिक्री के रूप में दिखा रहे हैं जिसके लिए वे मासिक किस्त के रूप में भुगतान प्राप्त कर रहे हैं। इंडिया बुलियन ऐंड ज्वैलर्स एसोसिएशन (आईबीजेए) के राष्ट्रीय सचिव सुरेंद्र मेहता ने कहा बिना ब्याज वाली एक साल के भीतर निपटाई जाने वाली सभी जमाएं वैध हैं। नए अध्यादेश के बाद सराफों ने ऐसी जमा योजनाओं के लिए अपनी रणनीति बदल दी है। अब सराफे मेकिंग चार्ज में छूट देकर ब्याज को समायोजित कर रहे हैं।
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